नागौर. जम्मू-कश्मीर में 1999 के करगिल युद्ध में नागौर जिले के सात जवानों ने दुश्मन से लोहा लेते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. इंदास गांव के प्रभुराम चोटिया उनमें से एक थे. 18 ग्रेनेडियर में बतौर नायक तैनात प्रभुराम चोटिया बहादुरी, साहस और सूझबूझ के साथ तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़ रहे थे. अचानक दुश्मन ने ऊंचाई से गोलाबारी शुरू कर दी. प्रभुराम आखिरी सांस तक दुश्मन से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहे. आखिरकार सेना ने 13 जून को तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहरा दिया. लेकिन भारत माता ने प्रभुराम चोटिया के रूप में अपना सपूत खो दिया था.
बेटी निरमा कुछ यूं बयां करती है पिता की शौर्य गाथा:
शहीद की वीरांगना रुकीदेवी बताती हैं कि उनकी शहादत के वक्त उनकी बड़ी बेटी साढ़े चार साल की, बेटा तीन साल का और छोटी बेटी महज डेढ़ साल की थी. अब बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है. बेटा और बेटी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. बेटी निरमा बताती है कि पिता प्रभुराम चोटिया 10 सितंबर 1987 को सेना में भर्ती हुए थे. कश्मीर में तैनाती के दौरान कई बार अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन से लोहा लिया.
श्रीलंका में लिट्टे से संघर्ष के समय शांति सेना में थे शामिल:
श्रीलंका में लिट्टे से संघर्ष के समय देश की शांति सेना में भी शामिल रहे. करगिल युद्ध हुआ तो वहां की भौगोलिक स्थिति से परिचित होने के कारण एक बार फिर कश्मीर में पोस्टिंग मिली. तोलोलिंग चोटी फतेह करने निकले 18 ग्रेनेडियर की यूनिट में बतौर नायक अपने साथियों के साथ बहादुरी से दुश्मन को खदेड़ा और शहीद हो गए हुए.
युवाओं को देश सेवा के लिए हमेशा करते थे प्रेरित:
भतीजे भैराराम बताते हैं कि प्रभुराम हमेशा युवाओं को देश सेवा के लिए फौज में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते थे. प्रभुराम के बचपन के साथी निम्बाराम का कहना है कि वे बेहद मिलनसार और सामाजिक सरोकार निभाने वाले व्यक्ति थे. युवाओं को देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने की प्रेरणा देते थे. इंदास गांव में प्रभुराम की बहादुरी के किस्से आज भी युवाओं में जोश और उत्साह का संचार करते हैं. सेना भर्ती की तैयारी करने वाले युवा आज भी उनकी प्रतिमा को नमन कर अभ्यास करते हैं.