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कोटा में पत्नी के जेवर बेचकर पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए प्रवासी मजदूर

कोटा से हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपने गृह राज्यों को रवाना हो रहे हैं. गुरुवार भी ऐसे ही कुछ श्रमिक कोटा से पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए हैं. इन श्रमिकों में किसी ने किराया उधार लिया है, तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर को गिरवी रख कर पैसा लिया है. कुछ ने अपने गांव से किराया मंगवाया है.

कोटा न्यूज, प्रवासी मजदूर, kota news, migrant labores
पश्चिम बंगाल रवाना हुए मजदूर
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Published : May 22, 2020, 1:03 PM IST

Updated : May 22, 2020, 2:30 PM IST

कोटा. बसों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस और भाजपा जमकर राजनीति कर रही है. यूपी में पैदल चलते श्रमिकों के लिए बस उपलब्ध करवाने की बात कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी कर रही हैं, लेकिन कोटा से ही हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपनी गृह राज्यों की ओर रवाना हो रहे हैं.

पश्चिम बंगाल रवाना हुए मजदूर

बता दें, कि गुरुवार ऐसे ही कुछ श्रमिक कोटा से पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए हैं. इन श्रमिकों में किसी ने किराया उधार लिया है, तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर को गिरवी रख कर पैसा लिया है. कुछ ने अपने गांव से किराया मंगवाया है. यहां काम बंद होने से भूखे मरने की नौबत थी. बताया जा रहा, कि पश्चिम बंगाल गई सभी बसों को कोटा जिला कलेक्ट्रेट से परमिशन मिली है.

सरकारों से लेकर जिला प्रशासन तक से मांगी मदद

बंगाल जा रहे मजदूरों का कहना है, कि उन्होंने सरकार से भी काफी मदद मांगी. जिला कलेक्टर और थाने में जाकर पुलिस से भी संपर्क किया. सर्राफा व्यवसायियों से भी बात की थी कि उनके लिए बस या ट्रेन का इंतजाम किया जाए, लेकिन कोई व्यवस्था उनके लिए नहीं की गई. उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार से भी आग्रह किया था, लेकिन ममता बनर्जी ने भी किसी तरह की कोई मदद उन लोगों की नहीं की है. इसके बाद जो भी लोग जाना चाहते थे, उन सब ने पैसा इकट्ठा कर बसों का इंतजाम किया है. इसमें 7 बसों के जरिए 210 आदमी पश्चिम बंगाल गए हैं.

पढ़ेंः CM गहलोत का महत्वपूर्ण निर्णय, कृषक कल्याण शुल्क में दी बड़ी राहत


एक व्यक्ति को 5500 रुपए देना पड़ा किराया

कोटा से पश्चिम बंगाल जा रहा है ज्वेलरी का काम करने वाले शेख अरसद अली का कहना है, कि उनके परिवारों का रहन-सहन और खान-पान भी अलग है. कोटा में परदेसी लोग होने के चलते हम डर के कारण बाहर भी नहीं निकल रहे थे. ऐसे में यहां लॉकडाउन में वह फंस गए थे, बीते 1 साल से उनकी मजदूरी एक्साइज ड्यूटी लगने और सोना महंगा होने के चलते नहीं चल पा रही है. हमारे पास पैसा भी नहीं था, ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी पत्नी के जेवरात गिरवी रखकर पैसा लिया है और पश्चिम बंगाल जा रहे हैं.

पढ़ेंः कर्मकांडी पंडितों पर लॉकडाउन का असर, रोजी-रोटी के संकट के बीच सरकार से लगाई मदद की गुहार


किसी ने उधार लिया तो किसी ने गांव से मंगाए पैसे

बस में सवार सुजीता का कहना है, कि लॉकडाउन में हम सब परेशान हो रहे थे. खाने-पीने की कोई सुविधा नहीं थी. हम बस का किराया देकर जा रहे हैं, क्योंकि बच्चे काफी परेशान हो रहे थे. उन्हें खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था. इसी तरह से मजदूर सुनोत का कहना है, कि 3 महीने से हम भूख सहन कर रहे हैं मजबूरी में एक टाइम खाना खा पा रहे थे. खाने के पैसे भी सेठ लोग नहीं दे रहे थे, इसीलिए किराया उधार करके जा रहे हैं.

कोटा. बसों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस और भाजपा जमकर राजनीति कर रही है. यूपी में पैदल चलते श्रमिकों के लिए बस उपलब्ध करवाने की बात कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी कर रही हैं, लेकिन कोटा से ही हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपनी गृह राज्यों की ओर रवाना हो रहे हैं.

पश्चिम बंगाल रवाना हुए मजदूर

बता दें, कि गुरुवार ऐसे ही कुछ श्रमिक कोटा से पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए हैं. इन श्रमिकों में किसी ने किराया उधार लिया है, तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर को गिरवी रख कर पैसा लिया है. कुछ ने अपने गांव से किराया मंगवाया है. यहां काम बंद होने से भूखे मरने की नौबत थी. बताया जा रहा, कि पश्चिम बंगाल गई सभी बसों को कोटा जिला कलेक्ट्रेट से परमिशन मिली है.

सरकारों से लेकर जिला प्रशासन तक से मांगी मदद

बंगाल जा रहे मजदूरों का कहना है, कि उन्होंने सरकार से भी काफी मदद मांगी. जिला कलेक्टर और थाने में जाकर पुलिस से भी संपर्क किया. सर्राफा व्यवसायियों से भी बात की थी कि उनके लिए बस या ट्रेन का इंतजाम किया जाए, लेकिन कोई व्यवस्था उनके लिए नहीं की गई. उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार से भी आग्रह किया था, लेकिन ममता बनर्जी ने भी किसी तरह की कोई मदद उन लोगों की नहीं की है. इसके बाद जो भी लोग जाना चाहते थे, उन सब ने पैसा इकट्ठा कर बसों का इंतजाम किया है. इसमें 7 बसों के जरिए 210 आदमी पश्चिम बंगाल गए हैं.

पढ़ेंः CM गहलोत का महत्वपूर्ण निर्णय, कृषक कल्याण शुल्क में दी बड़ी राहत


एक व्यक्ति को 5500 रुपए देना पड़ा किराया

कोटा से पश्चिम बंगाल जा रहा है ज्वेलरी का काम करने वाले शेख अरसद अली का कहना है, कि उनके परिवारों का रहन-सहन और खान-पान भी अलग है. कोटा में परदेसी लोग होने के चलते हम डर के कारण बाहर भी नहीं निकल रहे थे. ऐसे में यहां लॉकडाउन में वह फंस गए थे, बीते 1 साल से उनकी मजदूरी एक्साइज ड्यूटी लगने और सोना महंगा होने के चलते नहीं चल पा रही है. हमारे पास पैसा भी नहीं था, ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी पत्नी के जेवरात गिरवी रखकर पैसा लिया है और पश्चिम बंगाल जा रहे हैं.

पढ़ेंः कर्मकांडी पंडितों पर लॉकडाउन का असर, रोजी-रोटी के संकट के बीच सरकार से लगाई मदद की गुहार


किसी ने उधार लिया तो किसी ने गांव से मंगाए पैसे

बस में सवार सुजीता का कहना है, कि लॉकडाउन में हम सब परेशान हो रहे थे. खाने-पीने की कोई सुविधा नहीं थी. हम बस का किराया देकर जा रहे हैं, क्योंकि बच्चे काफी परेशान हो रहे थे. उन्हें खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था. इसी तरह से मजदूर सुनोत का कहना है, कि 3 महीने से हम भूख सहन कर रहे हैं मजबूरी में एक टाइम खाना खा पा रहे थे. खाने के पैसे भी सेठ लोग नहीं दे रहे थे, इसीलिए किराया उधार करके जा रहे हैं.

Last Updated : May 22, 2020, 2:30 PM IST
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