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SPECIAL : कोटा की बहनें बेमिसाल, देशभर में शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोगों की कर रहीं मदद

कोटा की दो बहनें शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे देश भर में अलख जगाने का काम कर रही हैं. दोनों बहनें राजस्थान, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के 41 स्कूलों में 11 हजरा स्कूली बच्चों की शिक्षा में मदद अपनी एनजीओ समर्पण के जरिए कर चुकी है. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने गृह जिले कोटा को ही चुना था.

Ruma and Megha are example for people,  Kota latest news,  Kota's Ruma and Megha
कोटा की 2 बहनें बेमिसाल
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Published : Sep 18, 2020, 4:48 PM IST

कोटा. कोटा की 2 बहन डॉ. रूमा और डॉ. मेघा को अधिकांश लोग नहीं जानते हैं, लेकिन वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे देश भर में अलख जगाने का काम कर रही हैं. डॉ. मेघा सिविल सर्विसेज में हैं और उनकी बड़ी बहन डॉ. रूमा पेशे से डॉक्टर हैं. दोनों बहनें राजस्थान, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के 41 स्कूलों में 11 हजार स्कूली बच्चों की शिक्षा में मदद अपनी एनजीओ समर्पण के जरिए कर चुकी है. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने गृह जिले कोटा को ही चुना था. इस पूरे अभियान में दोनों बहनें जुटी हुई हैं.

कोटा की 2 बहनें बेमिसाल

इसके साथ ही उनकी मां मंजू भार्गव भी पूरा योगदान करती है. शहर के तलवंडी इलाके की निवासी दोनों बहनों का जन्म शिक्षा नगरी कोटा में ही हुआ और यहीं से स्कूलिंग हुई. इसके बाद डॉ. रूमा ने कर्नाटका के मणिपाल डेंटिस्ट्री की पढ़ाई की. साथ ही दिल्ली से पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन पब्लिक हेल्थ किया. इसके बाद सिंगापुर से एमबीए किया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ कई प्रोजेक्ट में काम किया. बाद में कुआलालंपुर में इंटरनेशनल रेड क्रॉस में भी सेवाएं दी.

पढ़ें- Special: संकट में पाली के अन्नदाता, खेतों में खड़ी फसलें खराब, आर्थिक संकट में किसान

वर्तमान में वे मुंबई में ही हैं और समर्पण का पूरा काम वहीं से संचालित कर रही हैं. उनकी छोटी बहन डॉ. मेघा ने मुंबई से डेंटिस्ट्री की पढ़ाई की. इसके बाद सिविल सर्विसेज में उनका चयन हुआ और वह इंडियन रेवेन्यू सर्विस में हैं. वर्तमान में मुंबई शहर में डिप्टी कमिश्नर इनकम टैक्स के पद पर तैनात हैं. उनके पिता रामानंद भार्गव इंस्ट्रूमेंट लिमिटेड से सेवानिवृत्त हुए हैं. वहीं, मां मंजू निजी स्कूल में प्रिंसिपल रही हैं.

स्कूल की दयनीय स्थिति देखी तो बनाई NGO

डॉ. रुमा और डॉ. मेघा कोटा आई थीं और यहां पर उन्होंने अपने परिजनों के साथ लाडपुरा ब्लॉक के कुछ स्कूलों को देखा. वहां पर स्कूलों की हालात को देखकर मदद करने का निश्चय किया और उसके बाद ही 2016 में समर्पण संस्था बनाकर इसकी शुरुआत भी कर दी. इसके जरिए उनका उद्देश्य ग्रामीण और आदिवासी बच्चों को स्वास्थ्य और शिक्षा देने की थी. इस पूरे प्रकल्प में उनकी मां रिटायर्ड शिक्षिका मंजू भार्गव भी सेवाएं दे रही हैं.

डॉ. मेघा का कहना है कि उनकी पूरी पढ़ाई कोटा में हुई है. यहां अच्छे स्कूल हैं. एजुकेशन सिटी के नाम से कोटा को जाना जाता है, लेकिन कोटा से 20 किलोमीटर दूर के स्कूलों के भी हालात काफी खराब थे. हम पहली बार जब वहां गए तो हमें लगा कि शहर और गांव के शिक्षा और स्वास्थ्य में कितना अंतर है. इसको दूर करने के लिए हमने ये प्रयत्न शुरू किए हैं.

साफ पानी से लेकर सोलर लालटेन तक की व्यवस्था

डॉ. मेघा भार्गव का कहना है कि उन्होंने समर्पण के जरिए शिक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कई प्रयास कोटा के लाडपुरा एरिया में किए हैं. करीब 25 से ज्यादा स्कूलों में उन्होंने सेवाएं दी है. इसके अलावा हजारों स्कूली विद्यार्थियों को स्कूल ड्रेस और स्वेटर दिए हैं. वहीं पीने के पानी की व्यवस्थाएं स्कूल में नहीं थी, ऐसे में 25 स्कूलों में वाटर प्यूरीफायर भी स्थापित किए हैं.

पढ़ें- SPECIAL: सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक और तनाछेदक कैटरपिलर का प्रकोप, चिंता में किसान

इसके अलावा कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व एरिया में आने वाले कोलीपुरा गांव में भी 65 परिवारों को सोलर लालटेन उपलब्ध करवाए हैं ताकि उनके बच्चे घरों पर भी पढ़ सकें. अब समर्पण चिन्हित करके जीर्ण शीर्ण अवस्था के स्कूलों को सुदृढ़ करवाने, उनमें नए कमरे बनवाने का संकल्प लिया है. साथ ही स्टूडेंट्स को 1 साल की कॉपी-किताबें और स्टेशनरी के साथ स्कूल बैग देने का भी लक्ष्य रखा है.

गर्मी में बच्चे स्कूल मिस नहीं करें... इसलिए लगाएंगे सोलर

समर्पण संस्था से जुड़े सभी लोग किसी भी सेवा कार्य को शुरू करने के पहले उसकी पूरी योजना बनाते हैं. उसके लिए डाटा जुटाया जाता है. साथ ही उस डाटा के अनुसार ही मदद की जाती है. वहीं, यह ध्यान भी रखा जाता है कि किन लोगों को पहले मदद की जरूरत है, ताकि वहां पर पहुंचा जा सके. इसी के तहत डॉ. मेघा बताती है कि करीब 600 स्कूल राजस्थान में ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है. बिजली नहीं आने पर गर्मी के चलते बच्चे स्कूल नहीं आते हैं और पढ़ाई छोड़ देते हैं. इसके लिए वे राजस्थान के कोटा जिले में ही बतौर पायलट प्रोजेक्ट 3 स्कूलों को सोलर पैनल लगाकर इलेक्ट्रिसिटी देंगे. इसका प्रस्ताव भी उन्होंने सरकार को भेजा है.

सिविल सर्विसेज और डॉक्टर भी जुड़े...

समर्पण से काफी संख्या में सिविल सर्विसेज, बिजनेसमैन, डॉक्टर और शिक्षक भी जुड़े हैं. समर्पण की संस्थापक रूमा भार्गव की मां मंजू भार्गव के साथ बच्चों को पढ़ाने वाले कई शिक्षक-शिक्षिकाएं भी शामिल है. समर्पण ने हाल ही में नॉर्थ ईस्ट के अरुणाचल प्रदेश में अपनी योजना शुरू की है. इसके तहत उन्होंने सेनेटरी पैड बनाने की मशीन ग्रामीणों को सौंपी और इसके जरिए ग्रामीणों से बने हुए सेनेटरी पैड खरीद कर वहां की स्थानीय महिलाओं को वितरित किए हैं. इस पर डॉ. रूमा भार्गव का कहना है कि इस स्कीम के जरिए जिन लोगों का रोजगार लॉकडाउन में चला गया था, वह उन्हें मिल रहा है. साथ ही ग्रामीण महिलाओं को भी बेहतर स्वास्थ्य के लिए सेनेटरी पैड उपलब्ध हो रहे हैं.

पढ़ें- Special : कोरोना की मार झेल रहे सब्जी क्रेता और विक्रेता, भीलवाड़ा में फलों से भी महंगी बिक रहीं सब्जियां

कोरोना में भी NGO ने लोगों तक पहुंचाई मदद

कोरोना संक्रमण के दौरान भी उनकी संस्था ने मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली, जोधपुर, उज्जैन, लातूर और आनंद में खाने के पैकेट वितरण किए हैं. इसके अलावा झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को राशन किट, सैनिटाइजेशन के लिए साबुन और मास्क दिए गए हैं. साथ ही श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में भी मजदूरों की मदद की गई है. छोटे बच्चों के लिए दूध के पैकेट और पोषक आहार भी हजारों की मात्रा में लोगों तक पहुंचाए हैं. इस पूरे काम में समर्पण से जुड़े वॉलिंटियर्स अभी भी जुटे हुए हैं.

कोटा. कोटा की 2 बहन डॉ. रूमा और डॉ. मेघा को अधिकांश लोग नहीं जानते हैं, लेकिन वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे देश भर में अलख जगाने का काम कर रही हैं. डॉ. मेघा सिविल सर्विसेज में हैं और उनकी बड़ी बहन डॉ. रूमा पेशे से डॉक्टर हैं. दोनों बहनें राजस्थान, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के 41 स्कूलों में 11 हजार स्कूली बच्चों की शिक्षा में मदद अपनी एनजीओ समर्पण के जरिए कर चुकी है. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने गृह जिले कोटा को ही चुना था. इस पूरे अभियान में दोनों बहनें जुटी हुई हैं.

कोटा की 2 बहनें बेमिसाल

इसके साथ ही उनकी मां मंजू भार्गव भी पूरा योगदान करती है. शहर के तलवंडी इलाके की निवासी दोनों बहनों का जन्म शिक्षा नगरी कोटा में ही हुआ और यहीं से स्कूलिंग हुई. इसके बाद डॉ. रूमा ने कर्नाटका के मणिपाल डेंटिस्ट्री की पढ़ाई की. साथ ही दिल्ली से पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन पब्लिक हेल्थ किया. इसके बाद सिंगापुर से एमबीए किया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ कई प्रोजेक्ट में काम किया. बाद में कुआलालंपुर में इंटरनेशनल रेड क्रॉस में भी सेवाएं दी.

पढ़ें- Special: संकट में पाली के अन्नदाता, खेतों में खड़ी फसलें खराब, आर्थिक संकट में किसान

वर्तमान में वे मुंबई में ही हैं और समर्पण का पूरा काम वहीं से संचालित कर रही हैं. उनकी छोटी बहन डॉ. मेघा ने मुंबई से डेंटिस्ट्री की पढ़ाई की. इसके बाद सिविल सर्विसेज में उनका चयन हुआ और वह इंडियन रेवेन्यू सर्विस में हैं. वर्तमान में मुंबई शहर में डिप्टी कमिश्नर इनकम टैक्स के पद पर तैनात हैं. उनके पिता रामानंद भार्गव इंस्ट्रूमेंट लिमिटेड से सेवानिवृत्त हुए हैं. वहीं, मां मंजू निजी स्कूल में प्रिंसिपल रही हैं.

स्कूल की दयनीय स्थिति देखी तो बनाई NGO

डॉ. रुमा और डॉ. मेघा कोटा आई थीं और यहां पर उन्होंने अपने परिजनों के साथ लाडपुरा ब्लॉक के कुछ स्कूलों को देखा. वहां पर स्कूलों की हालात को देखकर मदद करने का निश्चय किया और उसके बाद ही 2016 में समर्पण संस्था बनाकर इसकी शुरुआत भी कर दी. इसके जरिए उनका उद्देश्य ग्रामीण और आदिवासी बच्चों को स्वास्थ्य और शिक्षा देने की थी. इस पूरे प्रकल्प में उनकी मां रिटायर्ड शिक्षिका मंजू भार्गव भी सेवाएं दे रही हैं.

डॉ. मेघा का कहना है कि उनकी पूरी पढ़ाई कोटा में हुई है. यहां अच्छे स्कूल हैं. एजुकेशन सिटी के नाम से कोटा को जाना जाता है, लेकिन कोटा से 20 किलोमीटर दूर के स्कूलों के भी हालात काफी खराब थे. हम पहली बार जब वहां गए तो हमें लगा कि शहर और गांव के शिक्षा और स्वास्थ्य में कितना अंतर है. इसको दूर करने के लिए हमने ये प्रयत्न शुरू किए हैं.

साफ पानी से लेकर सोलर लालटेन तक की व्यवस्था

डॉ. मेघा भार्गव का कहना है कि उन्होंने समर्पण के जरिए शिक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कई प्रयास कोटा के लाडपुरा एरिया में किए हैं. करीब 25 से ज्यादा स्कूलों में उन्होंने सेवाएं दी है. इसके अलावा हजारों स्कूली विद्यार्थियों को स्कूल ड्रेस और स्वेटर दिए हैं. वहीं पीने के पानी की व्यवस्थाएं स्कूल में नहीं थी, ऐसे में 25 स्कूलों में वाटर प्यूरीफायर भी स्थापित किए हैं.

पढ़ें- SPECIAL: सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक और तनाछेदक कैटरपिलर का प्रकोप, चिंता में किसान

इसके अलावा कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व एरिया में आने वाले कोलीपुरा गांव में भी 65 परिवारों को सोलर लालटेन उपलब्ध करवाए हैं ताकि उनके बच्चे घरों पर भी पढ़ सकें. अब समर्पण चिन्हित करके जीर्ण शीर्ण अवस्था के स्कूलों को सुदृढ़ करवाने, उनमें नए कमरे बनवाने का संकल्प लिया है. साथ ही स्टूडेंट्स को 1 साल की कॉपी-किताबें और स्टेशनरी के साथ स्कूल बैग देने का भी लक्ष्य रखा है.

गर्मी में बच्चे स्कूल मिस नहीं करें... इसलिए लगाएंगे सोलर

समर्पण संस्था से जुड़े सभी लोग किसी भी सेवा कार्य को शुरू करने के पहले उसकी पूरी योजना बनाते हैं. उसके लिए डाटा जुटाया जाता है. साथ ही उस डाटा के अनुसार ही मदद की जाती है. वहीं, यह ध्यान भी रखा जाता है कि किन लोगों को पहले मदद की जरूरत है, ताकि वहां पर पहुंचा जा सके. इसी के तहत डॉ. मेघा बताती है कि करीब 600 स्कूल राजस्थान में ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है. बिजली नहीं आने पर गर्मी के चलते बच्चे स्कूल नहीं आते हैं और पढ़ाई छोड़ देते हैं. इसके लिए वे राजस्थान के कोटा जिले में ही बतौर पायलट प्रोजेक्ट 3 स्कूलों को सोलर पैनल लगाकर इलेक्ट्रिसिटी देंगे. इसका प्रस्ताव भी उन्होंने सरकार को भेजा है.

सिविल सर्विसेज और डॉक्टर भी जुड़े...

समर्पण से काफी संख्या में सिविल सर्विसेज, बिजनेसमैन, डॉक्टर और शिक्षक भी जुड़े हैं. समर्पण की संस्थापक रूमा भार्गव की मां मंजू भार्गव के साथ बच्चों को पढ़ाने वाले कई शिक्षक-शिक्षिकाएं भी शामिल है. समर्पण ने हाल ही में नॉर्थ ईस्ट के अरुणाचल प्रदेश में अपनी योजना शुरू की है. इसके तहत उन्होंने सेनेटरी पैड बनाने की मशीन ग्रामीणों को सौंपी और इसके जरिए ग्रामीणों से बने हुए सेनेटरी पैड खरीद कर वहां की स्थानीय महिलाओं को वितरित किए हैं. इस पर डॉ. रूमा भार्गव का कहना है कि इस स्कीम के जरिए जिन लोगों का रोजगार लॉकडाउन में चला गया था, वह उन्हें मिल रहा है. साथ ही ग्रामीण महिलाओं को भी बेहतर स्वास्थ्य के लिए सेनेटरी पैड उपलब्ध हो रहे हैं.

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कोरोना में भी NGO ने लोगों तक पहुंचाई मदद

कोरोना संक्रमण के दौरान भी उनकी संस्था ने मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली, जोधपुर, उज्जैन, लातूर और आनंद में खाने के पैकेट वितरण किए हैं. इसके अलावा झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को राशन किट, सैनिटाइजेशन के लिए साबुन और मास्क दिए गए हैं. साथ ही श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में भी मजदूरों की मदद की गई है. छोटे बच्चों के लिए दूध के पैकेट और पोषक आहार भी हजारों की मात्रा में लोगों तक पहुंचाए हैं. इस पूरे काम में समर्पण से जुड़े वॉलिंटियर्स अभी भी जुटे हुए हैं.

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