कोटा. लहसुन उत्पादक किसानों के इस साल बुरे हाल हैं. क्योंकि मंडी में उनकी फसलों को पूरा दाम नहीं मिल पा रहा है. दाम इतने कम लगाए जा रहे हैं कि उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है. मंडी में लहसुन दो से 25 रुपए किलो ही बिक रहा (Very low price of garlic in Kota mandi this year) है. ऐसे में कई किसान माल मंडी में ही छोड़कर जा रहे हैं.
कुछ व्यापारियों ने लहसुन खरीद लिया था, लेकिन अब इसे आगे बेच नहीं पा रहे हैं. उनका माल भी मंडियों में पड़ा हुआ है. आगामी दिनों में इस माल को भी फेंका जाएगा. बीते 5 सालों में इस बार सर्वाधिक लहसुन उत्पादन हाड़ौती में हुआ है, लेकिन हालात बीते दो सालों जैसे बिल्कुल भी नहीं है. बीते साल किसानों को लहसुन के 150 से 200 रुपए किलो तक दाम मिले थे. इसी के चलते किसानों का रुख लहसुन की तरफ फिर बढ़ा. हालांकि हालात विपरीत हैं. एक समय किसानों को उनकी लागत से 5 से 10 गुना ज्यादा भाव मिल रहा था. अब हालात ऐसे हैं कि लागत का 50 प्रतिशत भी नहीं मिल रहा है.
ज्यादातर किसानों को मिल रहा 13 से 20 रुपए किलो का दाम: मंडी में माल बेचने आए किसानों का लहसुन 1200 रुपए प्रति क्विंटल बिका है. उनका कहना है कि एक कट्टे पर 625 रुपए मिले हैं. जबकि मंडी तक लाने में ही उनका 300 रुपए का खर्चा हो गया. पिछले साल लहसुन 5000 से 7000 प्रति क्विंटल तक बिका था. छोटी कलियों वाला लहसुन 2-3 रुपए किलो बिक रहा है. जबकि मोटा माल जो अच्छा है, वह 15 से 20 रुपए किलो बिक रहा है. इसी तरह सांगोद से 10 किलोमीटर आगे से अपनी फसल बेचने आए किसान का कहना है कि वह 23 कट्टे लहसुन लेकर आया था. इसका किराया 4000 रुपए है, लेकिन उसका लहसुन 1700 रुपए क्विंटल बिका है. इसके चलते उसे 11000 रुपए ही मिलेंगे.
80 रुपए किलो खरीदा बीज, अब बिका 17 के भाव : इन किसानों में से अधिकांश ने जब फसल 6 महीने पहले की तैयारी की थी, तब बीज की खरीद की थी. कुछ ने अपने पास से ही बीज लगाया था. उस समय बीज का भाव 60 से 80 रुपए किलो के आसपास था. अब जब किसान के पास अच्छी फसल हो गई है, लेकिन मंडी में उसके दाम नहीं मिल पा रहे हैं. ऐसे ही एक किसान का कहना है कि उन्हें मंडी में लहसुन के दाम 1700 रुपए क्विंटल मिले हैं.
लहसुन से की तौबा : बूंदी जिले के नमाना इलाके से लहसुन बेचने आए किसान का कहना है कि बीते साल उनका 2 बीघा का लहसुन डेढ़ लाख में बिका था. इस साल लहसुन 40 हजार में ही बिका है. जबकि खर्चा इससे ज्यादा था. काफी मेहनत व मजदूरी लगती है. महंगाई बढ़ने से ट्रैक्टर वाले भी ज्यादा दाम लेते हैं और मजदूरी भी ज्यादा हो गई. उनका कहना है कि पूरा लहसुन बेच दिया है. बीज के लिए भी नहीं बचाया. अगली बार से इस फसल को नहीं करूंगा.
माल नहीं बिका, वापस कैसे ले जाएं : लक्ष्मीपुरा सांगोद से कोटा मंडी में लहसुन बेचने आए किसान को लहसुन का भाव तीन रुपए किलो मिला है. कुछ लहसुन का भाव 13 रुपए किलो भी है. इसके अलावा कुछ लहसुन बिका ही नहीं है. उनका कहना है कि जमीन की बुवाई से लेकर लागत करीब 40 हजार रुपए बीघा है. उनके करीब 7 से 8 क्विंटल प्रति बीघा उत्पादन लहसुन का हुआ था. आज मंडी में लहसुन का दाम करीब 6000 रुपए के आसपास मिला है. थोड़ा कम क्वालिटी का था, उसको तो किसी ने खरीदा भी नहीं है. अब वापस ले जाने की स्थिति भी नहीं हैं. किसान मंडी में जिस कट्टे में लहसुन लेकर आता है, वह 25 रुपए का आता है. इसमें करीब 40 किलो लहसुन आ जाता है, लेकिन जो सस्ता लहसुन मंडी में बिक रहा है, उसके 80 रुपए भी नहीं मिल रहे हैं. जबकि उसे लाने का किराया ही 50 से 100 रुपए के बीच है. ऐसे में कट्टे को मंडी तक लाने की लागत भी किसान को नहीं मिल रही है, फसल उगाने की लागत की तो बात अलग है.
25000 के आसपास बैठ रहा है किसानों का खर्चा : कृषि अधिकारियों के अनुसार लहसुन उगाने में काफी मेहनत करनी पड़ती है. जब किसानों ने बीज खरीदा था, तब 60 से 80 किलो के आसपास का था. इसके अलावा ट्रैक्टर से हकाई, जुताई और बुवाई के साथ-साथ मजदूर ज्यादा लगते हैं. खेत में कचरा साफ करना व निंराई-गुड़ाई भी काफी बार होती है, ये मेहनत कटाई तक जारी रहती है. लेबर का खर्चा भी इसमें होता है. करीब लागत 5000 रुपए बीघा तक हो जाती है. इसके साथ ही यूरिया, डीएपी और दवाइयों का खर्चा भी 4000 बीघा के आसपास होता है. इस तरह लहसुन के उत्पादन में 25 से 30 हजार रुपए बीघा का खर्चा होता है.
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इसलिए कम हुए है दाम, हालात 2017-18 जैसे: कोटा संभाग में इस बार 115000 हेक्टेयर में लहसुन की फसल हुई. इससे करीब सात लाख मैट्रिक टन का उत्पादन हुआ. इसी के चलते भाव नीचे गिर गए हैं. लहसुन की प्रदेश के अन्य राज्यों में कम मांग है. ऐसे में इस बार हालात साल 2017-18 जैसे बन रहे हैं. जब किसानों को लहसुन का भाव 2 से लेकर 20 रुपए किलो तक मिला था. इसके चलते हाड़ौती संभाग में एक दर्जन किसानों ने आत्महत्या भी की थी. किसानों की लागत भी नहीं निकली थी. जिन किसानों ने कर्जा लेकर फसल की थी, वह कर्ज के बोझ के तले दब गए.
बाजार हस्तक्षेप स्कीम लागू करने की मांग : किसानों ने मांग उठाई है कि बाजार हस्तक्षेप स्कीम के तहत उनके माल को खरीदा जाए, ताकि मंडी में भी लहसुन के ज्यादा मिलें. इससे किसानों को फायदा तो नहीं होगा, लेकिन नुकसान भी नहीं होगा. अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर हालात विकट हो जाएंगे. कई किसानों ने कर्जा लेकर फसल की है. ऐसे में उन्हें काफी नुकसान का सामना करना पड़ेगा और कर्ज नहीं चुकाने के चक्कर में वह अगले कई सालों तक परेशान रहेंगे. यहां तक कि जो मंडी में उन्हें दाम मिल रहे हैं, उससे खेत का किराया भी नहीं दिया जा सकेगा.