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रजिस्ट्रेशन और सूचियों के चक्कर में धैर्य डगमगाने लगा साहब...फिर साइकिल खरीदी और मंजिल पर निकल पड़ेः बेबस मजदूर

संकट की घड़ी में लगातार मजदूरों का पलायन जारी है. मजदूर अपने घर जाने के लिए तरह-तरह के जतन कर रहा है. ऐसे में मजदूर जब सरकारी सहायता की आस लगाए थक गया तो वह साइकिल खरीदा और अपने परिवार को लेकर घर की ओर निकल पड़ा.

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बूंदी से एमपी साइकिल से जा रहे मजदूर
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Published : May 20, 2020, 1:01 PM IST

कोटा. दो जून की रोटी की खातिर मीलों दूर संघर्ष करते रहे, लेकिन अब जब महामारी के दौर में जेबों में सुराख होने लगे तो रोटी की भूख में मजदूरों को अपने घर वापसी में ही सार नजर आने लगा. ऐसे में बूंदी जिले के तालेड़ा से झाबुआ (मध्य प्रदेश) जा रहे एक मजदूर को जब सरकारी सहायता नहीं मिली तो वह साइकिल खरीदा और गृहस्थी के सामान सहित परिवार को लेकर अपनी राह पर निकल पड़े.

बूंदी से एमपी साइकिल से जा रहे मजदूर

दरअसल, ये नजारा कोटा के हैंगिंग ब्रिज के पास देखने को मिला. इनको देखकर एक बात को तो साफ पता चलता है कि अभी भी सरकारी तंत्र लचीला है. तमाम प्रशासनिक दावों के बीच उलझी हुई सरकारी सहायता इस मजदूर परिवार को दूर की कौड़ी दिखाई दी, तो वे अपने परिवार के साथ साइकिलों के सहारे ही अपना सफर शुरू कर दिए.
ऐसे ही कुछ मजदूर परिवार बूंदी के तालेड़ा से मध्य प्रदेश के लिए रवाना हुए.

यह भी पढ़ेंः परिजनों से रुपए मंगवाकर 4 हजार की खरीदी साइकिल, 1200 किमी के सफर पर निकले यूपी के 6 मजदूर

चिलचिलाती धूप में अपने छोटे बच्चों और महिलाओं को साइकिल पर इतने लंबे सफर पर ले जाने के पीछे की मजबूरी और सरकारी सहायता पर जब इनसे सवाल किया गया तो इनका कहना था कि घर वापसी अब आखिरी रास्ता नजर आता है. क्योंकि 2 महीने के लंबे इंतजार के बाद भी फिलहाल रोजगार के कोई अवसर नजर नही आ रहे हैं. साथ ही सरकारी सहायता के संदर्भ में उन्होंने बताया कि उसने एसडीएम कार्यलय में संपर्क किया था, लेकिन कोई उचित जवाब नहीं मिला और मदद की अंतिम आस टूटते नजर आई तो फिर 2-2 हजार रुपये खर्चकर साइकिलें खरीदने का फैसला किया. और वे अपना सामान साइकिलों से बांधकर परिवार सहित 400 किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़े.

बता दें कि इन्हें एमपी पहुंचने में 4-5 दिनों तक का समय लगेगा. हालांकि छोटे बच्चों और महिलाओं के साथ ये सफर किसी भी लिहाज से उचित नहीं कहा जा सकता. लेकिन रजिस्ट्रेशन, सूचियों के फेर में कहीं न कहीं अब इन मजदूरों का धैर्य भी डगमगाने लगा है. ऐसे में अब ये श्रमिक कहीं पैदल तो कहीं साइकिलों के सहारे अपनी मंजिलों की ओर कूच कर रहे हैं. ये रास्ते के शूलों की परवाह किये बगैर अब किसी भी तरह जल्द अपने परिजनों तक पहुंचना चाहते हैं. कोटा में प्रशासन द्वारा बोरखंडी में श्रमिकों के लिए रुकने और खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन पलायन की ये तस्वीरें बताती हैं कि सरकारी सहायता अभी भी इनके लिए दूर की कौड़ी बनी हुई है. जो कि अंतिम व्यक्ति तक कि पहुंच से काफी दूर है.

कोटा. दो जून की रोटी की खातिर मीलों दूर संघर्ष करते रहे, लेकिन अब जब महामारी के दौर में जेबों में सुराख होने लगे तो रोटी की भूख में मजदूरों को अपने घर वापसी में ही सार नजर आने लगा. ऐसे में बूंदी जिले के तालेड़ा से झाबुआ (मध्य प्रदेश) जा रहे एक मजदूर को जब सरकारी सहायता नहीं मिली तो वह साइकिल खरीदा और गृहस्थी के सामान सहित परिवार को लेकर अपनी राह पर निकल पड़े.

बूंदी से एमपी साइकिल से जा रहे मजदूर

दरअसल, ये नजारा कोटा के हैंगिंग ब्रिज के पास देखने को मिला. इनको देखकर एक बात को तो साफ पता चलता है कि अभी भी सरकारी तंत्र लचीला है. तमाम प्रशासनिक दावों के बीच उलझी हुई सरकारी सहायता इस मजदूर परिवार को दूर की कौड़ी दिखाई दी, तो वे अपने परिवार के साथ साइकिलों के सहारे ही अपना सफर शुरू कर दिए.
ऐसे ही कुछ मजदूर परिवार बूंदी के तालेड़ा से मध्य प्रदेश के लिए रवाना हुए.

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चिलचिलाती धूप में अपने छोटे बच्चों और महिलाओं को साइकिल पर इतने लंबे सफर पर ले जाने के पीछे की मजबूरी और सरकारी सहायता पर जब इनसे सवाल किया गया तो इनका कहना था कि घर वापसी अब आखिरी रास्ता नजर आता है. क्योंकि 2 महीने के लंबे इंतजार के बाद भी फिलहाल रोजगार के कोई अवसर नजर नही आ रहे हैं. साथ ही सरकारी सहायता के संदर्भ में उन्होंने बताया कि उसने एसडीएम कार्यलय में संपर्क किया था, लेकिन कोई उचित जवाब नहीं मिला और मदद की अंतिम आस टूटते नजर आई तो फिर 2-2 हजार रुपये खर्चकर साइकिलें खरीदने का फैसला किया. और वे अपना सामान साइकिलों से बांधकर परिवार सहित 400 किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़े.

बता दें कि इन्हें एमपी पहुंचने में 4-5 दिनों तक का समय लगेगा. हालांकि छोटे बच्चों और महिलाओं के साथ ये सफर किसी भी लिहाज से उचित नहीं कहा जा सकता. लेकिन रजिस्ट्रेशन, सूचियों के फेर में कहीं न कहीं अब इन मजदूरों का धैर्य भी डगमगाने लगा है. ऐसे में अब ये श्रमिक कहीं पैदल तो कहीं साइकिलों के सहारे अपनी मंजिलों की ओर कूच कर रहे हैं. ये रास्ते के शूलों की परवाह किये बगैर अब किसी भी तरह जल्द अपने परिजनों तक पहुंचना चाहते हैं. कोटा में प्रशासन द्वारा बोरखंडी में श्रमिकों के लिए रुकने और खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन पलायन की ये तस्वीरें बताती हैं कि सरकारी सहायता अभी भी इनके लिए दूर की कौड़ी बनी हुई है. जो कि अंतिम व्यक्ति तक कि पहुंच से काफी दूर है.

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