कोटा. हाड़ौती संभाग में इस बार 1,15,000 हेक्टेयर में लहसुन की फसल (Garlic less production in Hadoti kota) किसानों ने बोई है. ऐसे में करीब 7 लाख मेट्रिक टन का बंपर उत्पादन होने की उम्मीद है. लेकिन इस बंपर उत्पादन के उम्मीद के बीच किसानों के मन में कई तरह की शंकाएं भी हैं. जिनमें प्रमुख रूप से इस बार बीते 2 सालों की तरह लाभ मिलने की उम्मीद कम ही है. क्योंकि बीते साल की तुलना में इस बार पुराने लहसुन के भाव आधे ही रह गए हैं.
लहसुन उत्पादक किसान को आने वाले समय में समस्या का सामना करना पड़ सकता है. पुराने लहसुन को किसानों ने अब नष्ट करना भी शुरू कर दिया. क्योंकि लहसुन की मजदूरी से लेकर कटाई और छंटाई करवाकर वाहन से मंडी में लाकर बेचने में जो खर्चा हो रहा है, उतना भी पैसा किसानों को नहीं मिल रहा है. दूसरी तरफ कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि इस बार मौसम अनुकूल नहीं रहने के चलते उत्पादन कम होगा और गुणवत्ता भी कमजोर रहेगी. इसके चलते भी हाड़ौती के लहसुन उत्पादक किसानों को अच्छे दाम नहीं मिलेंगे.
हालात 2017 - 2018 जैसे बन रहे हैं. जब किसानों को लहसुन का भाव दो से लेकर 20 रुपए किलो तक मिला था. इसके चलते हाड़ौती संभाग में एक दर्जन किसानों ने आत्महत्या भी की थी. किसानों की लागत भी नहीं निकली थी. जिन किसानों ने कर्जा लेकर फसल की थी, वह कर्ज के बोझ के तले दब गए. मंडी के सचिव एमएल जाटव का कहना है कि वर्तमान में मंडी में नया लहसुन काफी कम आ रहा है. नया लहसुन ज्यादा मात्रा में आएगा तो उसके बाद ही वास्तविक स्थिति और भाव सामने आएंगे. लेकिन अभी पिछले साल से काफी कम भाव चल रहे हैं. पिछले साल औसत रूप 5200 रुपए क्विंटल दाम था, लेकिन इस बार 2500 ही रह गए हैं.
बीते साल से 9000 हेक्टेयर में ज्यादा है लहसुन की फसलः हॉर्टिकल्चर विभाग के संयुक्त निदेशक पीके गुप्ता का कहना है कि पिछले साल से 9000 हेक्टेयर ज्यादा एरिया में लहसुन के फसल की बुवाई की गई है. सामान्य परिस्थिति रही तो अनुमानित सात लाख मैट्रिक टन लहसुन का उत्पादन होना चाहिए. हालांकि किसानों से हुई बात और निरीक्षण से पता चल रहा है कि इस बार लहसुन के लिए अनुकूल मौसम नहीं रहा है.
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बारिश भी बीच में हुई थी. इसके चलते इसकी गुणवत्ता और उत्पादन दोनों ही प्रभावित होंगे. उन्होंने बताया कि आमतौर पर प्रति हेक्टेयर 60 से 75 क्विंटल लहसुन का उत्पादन प्रति हेक्टेयर होता है. इस बार इसमें 10 से 25 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है. मार्च के महीने में ही किसान फसल को खेत से निकालना शुरू करेंगे. इसके बाद में अप्रैल में बड़ी मात्रा में फसल मंडी में पहुंचेगी. यह क्रम अक्टूबर-नवंबर तक जारी रहेगा.
ज्यादा मुनाफे के चक्कर में बढ़ गया रकबाः एक्सपर्ट का मानना है कि बीते 3 सालों से किसानों को अच्छे भाव मिल रहे थे. इसी के चलते किसानों ने इस बार रकबा 9000 हेक्टेयर बढ़ाकर 1,15,500 हेक्टेयर पहुंचा दिया है. इसमें सबसे ज्यादा झालावाड़ जिले में 49,500, बारां में 34,560, कोटा में 27,580 और बूंदी जिले में 3760 हेक्टेयर में लहसुन बोया गया है.
किसानों को वर्ष 2019 में 50 से 80 और 2020 में 150 रुपए किलो तक लहसुन के दाम मिले हैं. इसके बाद 2021 में भी लहसुन के दाम 80 से 120 रुपए किलो मिले हैं. इसके चलते प्रति हेक्टेयर किसानों को करीब 4 से 6 लाख रुपए का मुनाफा हुआ था. इसी मुनाफे के चलते किसानों ने इसका रकबा बढ़ा दिया है. हालांकि लहसुन का रकबा जब भी हाड़ौती में बढ़ता है, तो किसानों को यह फसल देती ही है.
पांच साल पहले वर्ष 2017 में किसानों ने हाड़ौती में लहसुन की फसल को एक लाख 7 हजार हेक्टेयर में बोया था. जिसकी फसल 2018 में आई थी और बंपर उत्पादन हुआ था, लेकिन किसानों को लहसुन के दाम 2 से 20 रुपए किलो तक ही मिले थे. जिसके कारण कई किसानों पर कर्ज का बोझ आ गया था और इसी के चलते हाड़ौती में आत्महत्या शुरू हो गई थी.
दो रुपए किलो बेचने को मजबूर किसान
मंडी में पुराना लहसुन अधिकांश किसान ओने पौने दामों पर बेच रहे हैं. जिन किसानों ने ज्यादा लाभ के चक्कर में अपना लहसुन बेचने से रोक लिया था. अब उसे मंडी में लेकर पहुंच रहे हैं तो उचित भाव नहीं मिल रहे हैं. यही हालात नए लहसुन के भी रहने वाले हैं. वर्तमान में करीब मंडी में आने वाले लहसुन में 20 प्रतिशत नया भी है, लेकिन नए लहसुन के दाम भी बीते साल से आधे ही हैं. ऐसे में अभी लहसुन के भाव 25 से 35 रुपए किलो ही है. जबकि इसकी लागत भी इतनी आ रही है. जबकि बीते साल ही जनवरी-फरवरी में कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी में लहसुन के भाव 70 से 80 रुपए किलो थे.
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व्यापारी बोले- भाव बढ़ने की उम्मीद कम
भामाशाह मंडी के व्यापारी मुकेश भाटिया का कहना है कि लहसुन का भाव आने वाले समय में भी भाव कम रहने वाला है. हाड़ौती में फसल में अच्छी क्वालिटी का लहसुन नहीं है, लेकिन मध्य प्रदेश और गुजरात में काफी अच्छी फसल हुई है. चाइना यहां पर लहसुन खरीदने आता है, तो थोड़ी तेजी मंदी रहेगी. थोक सब्जी मंडी के व्यापारी अब्दुल हक का कहना है कि लहसुन के भाव काफी गिर गए हैं. हालात विकट होकर भाव 2 से 3 और 5 रुपए किलो पर है, थोड़ा अच्छा माल है तो 10 से 12 रुपए किलो पहुंच जाता है. माल भी बेकार हो गया, पुराना सारा माल बिक भी नहीं रहा है. किसान और व्यापारी भी डूब रहे है.
स्टॉक करना हुआ नुकसान का सौदा
झालावाड़ जिले के अकावद के किसान जोधराज मीणा का कहना है कि उन्होंने 7500 और 5000 रुपए क्विंटल लहसुन बेचा था. इस बार सोचा था कि भाव आएगा तो ज्यादा पैसा मिलेगा जो बच्चों के काम आएगा. इसीलिए स्टॉक कर लिया था. माल का वजन भी अब कम हो गया है. अभी 2.50 और 5 रुपए किलो में लहसुन बिका है. इसमें करीब 7000 रुपए क्विंटल का नुकसान हो रहा है. जबकि एक बीघा उत्पादन में 25 हजार का खर्चा आ रहा था.
बीते सालों में मुनाफा , इस बार 5 लाख का नुकसान
भामाशाह कृषि उपज मंडी में अंता एरिया के किसान रामलाल का कहना है कि वह तीन तरह के लहसुन के 90 कट्टे लेकर आए थे. इस लहसुन का दाम चार, पांच और 19 रुपए किलो मिला है. उनका कहना है कि पांच लाख रुपए का नुकसान हो गया. इस लहसुन को उगाने की लागत ही 3 लाख आई थी, जबकि मंडी से उन्हें एक लाख रुपए ही इसके मिलेंगे. उनका कहना है कि बीते सालों में उन्हें 220, 100 और 50 रुपए किलो किलो भी लहसुन बेचा है. जबकि इस बार 12 से 19 रुपए किलो ही लहसुन बिक रहा है.
अच्छे भाव आने के इंतजार में हुआ है नुकसान
सांगोद इलाके के किसान दिनेश शर्मा का कहना है कि पहले 7 से 8 हजार रुपए क्विंटल में लहसुन बेचा था. आज 1300 रुपए क्विंटल बेचा है. हमेशा इसी समय बेचते थे, तब अच्छे भाव मिलते थे. इस बार भी भाव आने का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने कहा कि 35 कट्टे लहसुन कटवाकर लेकर आया था. इसमें मजदूरी 10 हजार रुपए थी. 5 बीघा का यह माल 18 हजार रुपए का हुआ है. अभी ट्रैक्टर का किराया भी है. इस बार नुकसान ही होगा. इस लहसुन को उगाने में मजदूरी से लेकर खाद, बीज और दवाइयां डालने में करीब 25 हजार रुपए बीघा का खर्च हुआ है.
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सरकार फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाकर किसानों को मदद करे
भारतीय किसान संघ के जिला प्रचार प्रमुख रूप नारायण यादव का कहना है कि नया लहसुन आने वाला है. ऐसे में पुराने के भाव बिल्कुल गिर गए है. किसान के सामने समस्या है कि पुराने लहसुन को फेंके. क्योंकि उसे बेचने पर पूरा भाड़ा और लागत भी नहीं मिल रही. ज्यादा मुनाफे के इंतजार में लहसुन को रोक करके रख लिया था, अब समस्या है कि इसको कहां बेचें.
हालत ऐसी है कि किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो गया है. उन्होंने सरकार से मांग है कि नए लहसुन को भी इस बार समर्थन मूल्य पर ही खरीदें, क्योंकि उसका भाव भी कम रहने वाला है. पुराने लहसुन को खरीदने के लिए भी सरकार प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करवाए, ताकि उनका पाउडर, पेस्ट और अचार या अन्य फूड प्रोसेसिंग में उसे उपयोग लिया जाए. विदेशों से लहसुन के आयात पर रोक लगाई जाए. यहां पर एक्सपोर्ट करने की भी अच्छी नीति बनाई जाए. ऐसा नहीं होने पर किसान लहसुन का उत्पादन आने वाले समय में नहीं करेगा और फिर भाव बढ़ जाएंगे. जिससे आम जनता को भी समस्या होगी.