कोटा. जब तक इंसान खुद ना चाहे कोई भी परिस्थिति किसी उसे आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने परिस्थितियों से डट कर दो-दो हाथ किए अपने लिए रास्ते बनाए हैं. हौसले के सामने जन्मजात दिव्यांगता भी छोटी पड़ जाती है. अपने दिव्यांगता को ही अपना हथियार बनाकर लड़ने और जितने वाले बहुत से नाम हमारे सामने हैं.
इनमें से ही एक है कोटा को ज्ञान सरोवर कॉलोनी में रहने वाले आकाश शर्मा. आकाश बचपन से ही दोनों हाथों से दिव्यांग हैं, लेकिन उनके हौसले को देखते हुए अच्छे-अच्छे सामान्य लोग भी दंग रह जाते हैं. आकाश ने अपनी शारीरिक कमजोरी को अपनी दुर्बलता नहीं बनाकर हौसलों को उड़ान देना तय किया है. अब आकाश को देखकर यह नहीं लगता कि उनके दोनों ही हाथ नहीं हैं.
आकाश अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने भाई की इलेक्ट्रिक शॉप पर भी जाते हैं. जहां पर छोटा-मोटा रिपेयरिंग का काम वह खुद ही कर देते हैं और करीब 5 से 7 घंटे बाद दुकान को अकेले संभालते हैं. जब उसका भाई दुकान पर नहीं होता है यह सब काम वह अपने पैरों से ही करते हैं. यहां तक कि मोबाइल चलाने, इलेक्ट्रिक उपकरणों को सुधारने, पढ़ाई लिखाई से लेकर खाने-पीने तक का काम वह अपने पैरों से ही कर रहे हैं.
बिना मदद की पढ़ाई, किसी पर निर्भर नहीं...
दिव्यांग होने की वजह से अगर आकाश चाहता तो उसे परीक्षा में प्रश्न पत्रों का उत्तर लिखने के लिए सहयोग मिल सकता था. लेकिन अपने पैरों की लिखावट पर भरोसा के साथ बिना किसी मदद के लिए उसने 12वीं आर्ट्स की परीक्षा दी और 53 प्रतिशत अंकों से सेकंड डिवीजन पास हुआ है. आकाश ने संस्कृत कॉलेज में प्रवेश ले लिया है और वह सेकंड ईयर में पढ़ाई भी कर रहा है. कॉलेज की परीक्षा हो या अपनी नोटबुक में नोट्स बनाना सब कुछ वह अपने पैरों से ही करता है. वह शिक्षकों को यह एहसास नहीं होने देता है कि उसके हाथ नहीं है.
सरकार से मदद की आस, नहीं हो रही पूरी...
आकाश का कहना है कि वे दिव्यांग हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर उन्हें किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिली है. उनके पिता धर्मेंद्र शर्मा चाय की थड़ी लगाते हैं. जिसको अतिक्रमण वाले आकर बार-बार हटा देते हैं. उन्होंने विकलांग कोटे से अपने लिए थड़ी का आवंटन कराने के लिए भी पत्र नगर निगम को दिया हुआ है. लेकिन 6 महीने बाद भी उन्हें स्वीकृति नहीं मिली है.