कोटा. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने 4 साल पुराने प्रकरण में एक चिकित्सक, दो फार्मासिस्ट और दवा सप्लायर कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इसमें मेडिकल कॉलेज के ड्रग वेयरहाउस में दवा प्रेगाबलीन के जो सैंपल लिए गए थे, उनमें गाबापेंटिन सस्ती दवा में मिली थी. इस मामले में एसीबी ने राजकोष को काफी नुकसान माना है. वहीं जनता के स्वास्थ्य के साथ भी इसे खिलवाड़ और घटिया क्वालिटी की अमानक दवा की खरीदना माना है.
जिसके बाद मेडिकल कॉलेज के ड्रग वेयर हाउस के तत्कालीन प्रभारी और वर्तमान में बूंदी के डिप्टी सीएमएचओ डॉ. महेंद्र त्रिपाठी, फार्मासिस्ट राकेश मेघवाल और मुकेश मीणा के साथ हिमाचल प्रदेश के कालाआम स्थित मेडिपॉल फार्मा को भी दोषी मानते हुए उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. जिसकी जांच बूंदी एसीबी के पुलिस उपाधीक्षक तरुण कांत सोमानी करेंगे.
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एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ठाकुर चंद्रशील कुमार ने बताया कि वर्ष 2016 में समाचारों के आधार पर उन्हें स्वप्रेरणा से ही मेडिकल कॉलेज ड्रग वेयर हाउस में जांच की थी. जहां पर दवाइयों के रिकॉर्ड का अवलोकन किया गया. वहां मौजूद कार्मिकों के बयान भी दर्ज किए. जिसके आधार पर सामने आया कि हिमाचल प्रदेश के काला आम स्थित मेडिपॉल फार्मा नाम की फर्म ने प्रेगाबलीन दवा सप्लाई की थी. इस दवा में प्रेगाबलीन साल्ट की जगह गबापेंटिन था.
हर दवा की स्ट्रिप पर आ रहा था 100 रुपए का अंतर...
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में काम आने वाली प्रेगाबलीन दवा को गबापेंटिन साल्ट से बनाया गया था. इस दवा की हर स्ट्रीप पर 100 रुपए का अंतर आ रहा था. जिसके आधार पर साफ है कि करीब 15 लाख रुपए का नुकसान राजकोष को हुआ है, जबकि दवा सप्लाई करने वाली कंपनी और मेडिकल कॉलेज के ड्रग वेयरहाउस ने कोलकाता की ड्रग टेस्टिंग लैब से भी जांच करवा दवा को स्टैंडर्ड बता दिया था.
हालांकि, बाद में जब राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन लिमिटेड ने और भी परीक्षण प्रयोगशाला जयपुर में जांच करवाई तो यह दवा घटिया व अमानक पाई गई. इससे साफ है कि मेडिकल कॉलेज के ड्रग वेयरहाउस में भी दवा बदल दी गई थी. इस दवा में प्रेगाबलीन नाम का जो साल्ट होना चाहिए था, उसकी जगह पर गबापेंटिन मिला, जो कि काफी सस्ता आता है. दवा को प्रेगाबलीन नाम से ही सप्लाई किया गया था. इस संबंध में औषधि नियंत्रण संगठन जयपुर की रिपोर्ट एसीबी कोटा ने मंगवाई थी.