कोटा. प्राइमरी टीचर शोभा कंवर सामान्य शिक्षिकाओं की तरह ही सरकारी सेवा के लिए चयनित हुई, लेकिन उन्होंने अपना लक्ष्य कुछ और ही निर्धारित किया. उन्होंने नवाचारों के जरिए ही बच्चों को एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग से पढ़ाना शुरू किया, जिसके लिए वे घंटों मेहनत कर बच्चों को पढ़ाती हैं. इसके जरिए ही वे अभी तक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुकी है.
इसके साथ ही कई संस्थाएं उनको सम्मानित कर चुकी हैं. जिला स्तर पर तो उन्हें कई अवार्ड मिल चुके हैं. इसके अलावा महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. साथ ही इन पर बालिका शिक्षा को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई गई थी, जिसके लिए भी राजस्थान प्रारंभिक शिक्षा परिषद ने उन्हें सम्मानित किया है.
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शिक्षिका शोभा कंवर अपने पढ़ाई के तरीकों में अलग ही नवाचार कर विदेशी बच्चों के साथ सरकारी स्कूल के बच्चों को पेन फ्रेंड बनाया. ये देश में पहला इस तरह का नवाचार है जो कि विदेशी बच्चों के साथ संपर्क में रहते हैं और उनके पेन फ्रेंड हैं. उन्हें वहां के शिक्षक जो पढ़ाते हैं, वे जानकारी यहां के बच्चों को वह देते हैं. साथ ही यहां पर जो उन्हें पढ़ाई करवाई जाती है, इसकी जानकारी भी यह विदेशी बच्चों को पत्र से बताते हैं. यही नहीं अब तक करीब 12 लाख रूपए भी वे बीते 6 सालों में यहां के स्कूल और बच्चों के लिए भेज चुके हैं, जिससे स्कूल में कई सारे कार्य करवाए गए हैं.
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दशहरा देखने आए... तब मिले कैलिफोर्निया के डेविड डिक्सन
कैलिफोर्निया के प्राइमरी टीचर डेविड डिक्सन कोटा दशहरा मेला देखने पहुंचे. यहां पर उन्हें बरूंधन स्कूल की प्राइमरी टीचर शोभा कंवर भी मिली. दोनों में बातचीत हुई. इसके बाद डेविड डिक्सन शोभा के घर पर आए और उनके मित्र बन गए. इसके बाद डेविड डिक्सन ने आईडिया दिया कि जिस तरह से हम अच्छे मित्र हैं, वैसे ही जिन बच्चों को हम पढ़ाते हैं उन्हें भी आपस में मित्र बना दें. इसके बाद ही बूंदी जिले के बरूंधन स्कूल के स्टूडेंट्स को कैलिफोर्निया के स्टूडेंट्स का पेन फ्रेंड बनाया गया.
NRI महिला भी अभियान से जुड़ी
पेन फ्रेंड बने बच्चे आपस में पत्र व्यवहार करते थे, लेकिन यहां के बच्चे हिंदी में अपने लेटर वहां भेज देते थे जिस स्कूल में डेविड डिक्सन पढ़ाते थे. उनमें एक NRI फैमिली का बच्चा भी पढ़ता था, जो भी पेन फ्रेंड था. उसकी मां अंजलि ईसरानी भी इस अभियान से जुड़ गई और भारत के जो बच्चे पत्र भेजते हैं, उनको वह इंग्लिश में ट्रांसलेट कर देती है ताकि कैलिफोर्निया के बच्चे समझ सके. यह बच्चे आपस में इतना जुड़ गए हैं कि इन्हें कैलिफोर्निया में मनाए जाने वाले ईस्टर, क्रिसमस और उनका स्वतंत्रता दिवस भी याद है. वहीं कैलिफोर्निया के बच्चों को भी होली, दिवाली, दशहरा से लेकर हर त्योहार की जानकारी है.
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60 बालिकाओं की शिक्षा का खर्चा
बता दें, शोभा कंवर को अपना कोई बच्चा नहीं है. ऐसे में उन्होंने तय किया कि वे बालिका शिक्षा को बढ़ावा देंगी. इसके लिए उन्होंने एक बच्ची को हर साल गोद लेकर पढ़ाने का निर्णय किया. बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. हालांकि वहां फीस नहीं लगती, लेकिन बच्चों का ड्रेस से लेकर स्टेशनरी तक का पूरा खर्चा वे उठाती हैं. अब यह संख्या 60 पर पहुंच गई है. इसके अलावा उनके साथ पढ़ाने वाली कई शिक्षिकाएं भी इसमें मदद कर रही हैं. वहीं कैलिफोर्निया में रहने वाले उनके मित्र डेविड डिक्सन भी इन बच्चियों को पढ़ाने के लिए राशि विदेश से भेजते हैं.
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शोभा कंवर 2007 में प्राइमरी टीचर में सेलेक्ट हुईं. इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि मुझे कुछ अलग करना है. अन्य टीचर की तरह स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ा कर वापस नहीं आना है, तब से वह नवाचार में जुड़ गई और रोज नए-नए पढ़ाने के तरीके ईजाद करने लगी. बच्चों के लिए एक्टिविटी लर्निंग ट्रिक्स बनाने लगी. पजल, गेम, पहेली, क्विज, स्लाइडर बोर्ड और अन्य तरीके उन्होंने इसमें शामिल किए.
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शिक्षिका कंवर ने अपनी पहली तनखा जो ढाई महीने की एक साथ 10 हजार 500 मिली थी, उससे भी स्कूल में झूला लगवा दिया था ताकि स्कूल में नामांकन ज्यादा हो. शोभा कंवर हाड़ौती की पहली शिक्षिका थी, जिन्होंने ऑनलाइन ही बच्चों को पढ़ाना लॉकडाउन में शुरू किया. इसके बाद कई अन्य शिक्षक शिक्षिकाओं ने भी यह कार्य शुरू किया था.
पैरंट्स को स्कूल में बुलाकर पढ़ाने का नवाचार
शोभा कंवर ने पैरंट्स को स्कूल में आकर एक दिन पढ़ाने का नवाचार महीने में एक बार शुरू करवाया, जिसमें पैरंट्स जो भी अपना काम करते हैं, उसकी भी जानकारी बच्चों को देते हैं. ताकि वे समझ सकें कि क्या-क्या काम कैसे होता है. इसमें कुम्हार, किराना व्यवसाय और खेती शामिल है.
कंवर का कहना है कि पैरंट्स के स्कूल में आने की एक्टिविटी से बच्चों को नई जानकारियां पता चलती है. उन्होंने स्कूल में मां को सम्मान देना शुरू किया, इससे मां भी स्कूल की तरफ आकर्षित होती और वह समझती हैं कि बच्चों के लिए स्कूल जाना जरूरी है. उनका बनाया हुआ हाथ में समाया राजस्थान ट्रिक पूरे प्रदेश में चर्चित रहा और उसे शिक्षा विभाग के शिविरा में भी जगह मिली.
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12 लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली
2014 से 2020 तक करीब 12 लाख रुपए का खर्चा कैलिफोर्निया के स्टूडेंट दे चुके हैं और वहां पर फेयरवेल पार्टी के लिए चैरिटी शो हर साल स्कूल में करते हैं. इसमें जो भी पैसा आता है, उसको आधा अपने स्कूल को दिया जाता है. इसके बाद आधा पैसा बूंदी जिले के बरूंधन स्कूल के लिए भेज देते हैं. इससे स्कूल में टीन शेड, मंच, वाटर कूलर, प्यूरीफायर, फर्नीचर, स्कूल ड्रेस, लैपटॉप और काफी मात्रा में बुक्स खरीदी है. अब बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में पढ़ाने के लिए एक बड़ा एलईडी स्क्रीन लगवाया जा रहा है. इस एक्टिविटी रूम में बच्चे नई तकनीक से शिक्षा ले सकेंगे.