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दिहाड़ी मजदूरों को अब सताने लगी खाने-पीने की समस्याएं, 10 दिनों से नहीं जले चूल्हे

अब दिहाड़ी मजदूरों को खाने-पीने की समस्याएं सताने लगी है. दस दिनों से इनके घरों में चूल्हें नहीं जले हैं. कोटा में आसपास के राज्यों से शहर में दिहाड़ी मजदूरी करने आए मजदूर वर्ग के लोगों को लॉकडाउन के चलते अब समस्याएं झेलनी पड़ने लगी हैं.

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मजदूरों को अब सताने लगी खाने-पीने की समस्याएं
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Published : Apr 16, 2020, 8:12 PM IST

कोटा. कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन चल रहा है. ऐसे में कोटा में दिहाड़ी मजदूरों की खाने-पीने की समस्याएं सताने लगी है. काम धंधे बंद होने से मजदूरी नहीं मिल पा रही है और न ही कोई संस्थाएं इनकी ओर ध्यान दे रही हैं, जिससे इनको अब खाने-पीने की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है.

मजदूरों को अब सताने लगी खाने-पीने की समस्याएं

1 दिन का बना हुआ खाना 2 दिनों तक चलाने की मजबूरी है. छोटे बच्चों को दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा है. 10 दिनों से चूल्हे तक नहीं जले हैं. मजदूरों ने कहा कि कोई आता है खाने के पैकेट देकर चला जाता है तो उसमें से भी आधा खा लेते हैं और कुछ बचाकर रख लेते हैं, जिससे बच्चों की भूख मिटाते हैं. मजदूरी बंद है कबाड़ा बीनकर गुजारा चलाते थे, वह भी पुलिस वाले बंद करवा दिए.

यह भी पढ़ेंः कोटा: नावों के जरिए चंबल पार कर रहे थे कर्फ्यू ग्रस्त इलाके के लोग, 16 गिरफ्तार

सुगना बाई ने कहा कि मजदूरी बंद हो गई, इसके बाद कबाड़ा बीनकर गुजारा चला लेते थे. उस पर भी पुलिस भगा देती है. अब हमको खाने-पीने की समस्याएं होने लगी. यहां भी खाना नहीं आ रहा है, चार पांच दिन पहले एक खाना देने आए थे, तब से आज तक कोई नहीं आया. अब तो राशन का सारा सामान खत्म हो गया. हमारे पास न तो बैंक-बैलेंस है और न ही घर. कुछ समय चावल के टिपन देते थे, वह भी बंद हो गए. छोटे बच्चे दूध मांगते हैं तो उनको काली चाय पिलाकर सुला देते हैं. बिस्किट की जिद करने पर उनको एक दो दिन पुरानी रोटियों की काली चाय में गर्म कर दे कर सुला देते हैं.

यह एक मजदूर की समस्या नहीं, बल्कि कोटा शहर में बसे कई मजदूरों की है. इन मजदूरों के वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड बने होने के बावजूद इनको किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल पा रही है. ऐसे में इनको भूखे ही सोने की मजबूरी बनी हुई है.

कोटा. कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन चल रहा है. ऐसे में कोटा में दिहाड़ी मजदूरों की खाने-पीने की समस्याएं सताने लगी है. काम धंधे बंद होने से मजदूरी नहीं मिल पा रही है और न ही कोई संस्थाएं इनकी ओर ध्यान दे रही हैं, जिससे इनको अब खाने-पीने की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है.

मजदूरों को अब सताने लगी खाने-पीने की समस्याएं

1 दिन का बना हुआ खाना 2 दिनों तक चलाने की मजबूरी है. छोटे बच्चों को दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा है. 10 दिनों से चूल्हे तक नहीं जले हैं. मजदूरों ने कहा कि कोई आता है खाने के पैकेट देकर चला जाता है तो उसमें से भी आधा खा लेते हैं और कुछ बचाकर रख लेते हैं, जिससे बच्चों की भूख मिटाते हैं. मजदूरी बंद है कबाड़ा बीनकर गुजारा चलाते थे, वह भी पुलिस वाले बंद करवा दिए.

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सुगना बाई ने कहा कि मजदूरी बंद हो गई, इसके बाद कबाड़ा बीनकर गुजारा चला लेते थे. उस पर भी पुलिस भगा देती है. अब हमको खाने-पीने की समस्याएं होने लगी. यहां भी खाना नहीं आ रहा है, चार पांच दिन पहले एक खाना देने आए थे, तब से आज तक कोई नहीं आया. अब तो राशन का सारा सामान खत्म हो गया. हमारे पास न तो बैंक-बैलेंस है और न ही घर. कुछ समय चावल के टिपन देते थे, वह भी बंद हो गए. छोटे बच्चे दूध मांगते हैं तो उनको काली चाय पिलाकर सुला देते हैं. बिस्किट की जिद करने पर उनको एक दो दिन पुरानी रोटियों की काली चाय में गर्म कर दे कर सुला देते हैं.

यह एक मजदूर की समस्या नहीं, बल्कि कोटा शहर में बसे कई मजदूरों की है. इन मजदूरों के वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड बने होने के बावजूद इनको किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल पा रही है. ऐसे में इनको भूखे ही सोने की मजबूरी बनी हुई है.

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