ETV Bharat / city

Flavored cow urine: अब मैंगो, ऑरेंज और पाइनएप्पल फ्लेवर में भी मिल रहा गोमूत्र, कोटा की गोशालाओं में हो रहा निर्मित...देश भर में डिमांड

कोटा की गोशालाओं में फ्लेवर्ड गोमूत्र (Flavored cow urine in kota Gaushalas) तैयार किए जा रहे हैं. छह से ज्यादा फ्लेवर में इसे तैयार किया जा रहा है. इसमें मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान और मिक्स फ्लेवर बनाए जा रहे हैं जिनकी खासी डिमांड भी है. खास बात ये है कि इस फ्लेवर्ड गोमूत्र (Flavored cow urine) को देश भर में सप्लाई भी किया जा रहा है.

Flavored cow urine , cow urine in 6 flavor
फ्लेवर्ड गोमूत्र की डिमांड
author img

By

Published : Dec 9, 2021, 7:38 PM IST

Updated : Dec 9, 2021, 9:37 PM IST

कोटा. गोमूत्र के गुण और इसके लाभ के बारे में तो सभी जानते हैं. आयुर्वेद के जानकार गोमूत्र को एक बेहतरीन औषधि बताते हैं. कई बीमारियों के लिए गोमूत्र रामबाण का काम भी करते है, लेकिन गोमूत्र को पीना सभी के बस की बात नहीं. इससे उठने वाली दुर्गंध और स्वाद के कारण हर कोई इसे पी नहीं सकता है, लेकिन अब ये पुरानी बात हो चली है. अब गोमूत्र को लोग बड़े चाव से पी रहे हैं और उन्हें किसी प्रकार की दुर्गंध या परेशानी भी नहीं हो रही है.

ऐसा इसलिए क्योंकि अब गोमूत्र भी 'फ्लेवर्ड' (Flavored cow urine) बनाए जा रहे हैं. जी हां, कोटा की आधा दर्जन गोशालाओं फ्लेवर्ड गोमूत्र (Flavored cow urine in kota Gaushalas) तैयार किया जा रहा है. गोशाला में गोमूत्र को एकत्रित किया जाता है. उसके बाद उसे बैक्टीरिया फ्री करने के बाद फ्लेवर्ड बनाया जाता है. इससे उसकी दुर्गंध खत्म होने के साथ ही टेस्ट भी बढ़िया हो जाता है. फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार करने की शुरुआत करवाने वाले आईआईटियन डॉ. राकेश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि गोमूत्र छह से ज्यादा फ्लेवर में तैयार किया जा रहा है. गोमूत्र के मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान और मिक्स फ्लेवर तैयार किए जा रहे हैं. इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को तैयार करने के लिए केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता है. फूड ग्रेड कलर और एसेंस से इसे बनाया जाता है जिनका उपयोग फार्मास्यूटिकल कंपनियां दवाएं बनाने में करती हैं.

फ्लेवर्ड गोमूत्र की डिमांड

पढ़ें. पढ़ें. Special : कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा, व्यापार पर कितना पड़ेगा असर ?...यहां जानिए

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के जिन जानकारों ने गोमूत्र लेने की मांग की है, उन लोगों को यह पीने में अच्छा भी लगता है. खास बात यह है कि लगातार इसकी डिमांड बढ़ भी रही है. आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. तेजेश गोयल का कहना है कि गोमूत्र से सामान्य तौर पर काफी स्मेल आती है, ऐसे में फ्लेवर डालने पर ये स्मेल खत्म हो जाती है और इसका टेस्ट भी काफी अच्छा हो जाता है.

100 लीटर बेच रहे, गोशाला को भी लाभ

फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार कर रहे जितेंद्र कुमार का कहना है कि कोटा की जिन छह गोशालाओं में यह फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार किया जा रहा है उन सभी ने गोशाला को अपना अलग नाम दिया हुआ है. किसी ने संजीवनी तो किसी ने इम्यूनोकोट नाम दिया है. यहां सभी जगह पर करीब 100 लीटर उत्पादन रोज होता है. बूंदी रोड पर नांता नाके पर गोशाला चलाने वाले जितेंद्र गुप्ता का कहना है कि वे करीब 20 लीटर गोमूत्र रोज तैयार करते हैं. इससे करीब तीन से चार हजार रुपए रोज की आमदनी होने लगी है. अब जो गाय दूध नहीं देती है, वह गोमुत्र के जरिए अपना खर्च निकाल ले रही है. इससे गोशाला को भी फायदा हो रहा है.

पढ़ें. Special 31 साथ मिले तो बन गया 'किड्स हेल्पिंग हैंड', बच्चों को पढ़ाई के लिए मोटिवेट कर मुस्कुराहट बिखेरना ध्येय

पूरे देश में हो रही फ्लेवर्ड गोमूत्र की सप्लाई

फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार करने वाली गोशालाओं के संचालकों का कहना है 1 लीटर गोमूत्र फिल्टर करने और फ्लेवर्ड बनाने में करीब 25 से 30 रुपए का खर्च आता है. जबकि इसमें लगने वाली प्रोडक्शन कॉस्ट में पैकेजिंग मैटेरियल, मैन पावर और ब्रांडिंग का लेबल लगाने में भी खर्चा होता है, जिन्हें मिलाकर 50 रुपए तक प्रति लीटर खर्च आ रहा है. जबकि इसे 200 रुपए लीटर बेचा जा रहा है. यहां तक कि देश भर में हजारों किलोमीटर दूर भी यहां से फ्लेवर्ड गोमूत्र की सप्लाई की जा रही है. जो लोग इसको एक बार उपयोग करते हैं, वह दोबारा भी इसके लिए ऑर्डर दे रहे हैं.

इस तरह किया जाता है तैयार

आईआईटी मुंबई से पीएचडी करने वाले डॉ. राकेश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि सुबह का पहला गोमूत्र इसके लिए लिया जाता है. जिसके बाद उसमें 7.5 पीएच रहता है. इसमें साइट्रिक एसिड, विटामिन सी यानी एस्कोरबिक एसिड, लैक्टिक एसिड, ऑरेंज ऑयल और स्पेरिमेंट ऑयल डाला जाता है. इसके बाद इसे फिल्टर कर लिया जाता है. बाद में फ्लेवर और कलर भी इसमें मिलाया जाता है. जिसके बाद इसे पैक कर दिया जाता है. पूरा काम फार्मा कंपनियों की तरह किया जाता है. हाइजीन मेंटेन की जाती है. हर बार तैयार होने वाले गोमूत्र में से कुछ सैंपल के लिए रखे जाते हैं जिनकी समय-समय पर जांच भी की जाती है. इनका पीएच देखा जाता है और यदि यह 3.8 से नीचे रहता है तो साफ है कि यह बैक्टीरिया फ्री है.

पढ़ें. Special : केवलादेव घना में प्रवासी पक्षियों ने डाला डेरा, देसी पर्यटकों की भी आवक शुरू...पर्यटन के पटरी पर लौटने की उम्मीद

फ्लेवर डालने से बढ़ती है गोमूत्र की प्रॉपर्टी

डॉ. तेजेश गोयल का कहना है कि गोमूत्र मूलत: बायो एन्हैंसर (Bio enhancer) है. यह हजारों साल पहले से आयुर्वेद में उपयोग किया जा रहा है. एंटी वायरल और एंटीबैक्टीरियल एक्टिविटी इसमें होती है. यह डेंगू, चिकनगुनिया और कोविड-19 में बेहद फायदेमंद है. उनका यह भी कहना है कि इसमें बैक्टीरिया या वायरस को खत्म करने की क्षमता होती है. यह कैंसर और टीबी के मरीजों के लिए भी लाभदायक होता है. इसके अंदर जो फ्लेवर हम यूज कर रहे हैं, वह सभी फ्रूट ग्रेड हैं. फार्मास्यूटिकल कंपनी इन्हें उपयोग में लेती है. इससे गोमूत्र के प्रॉपर्टी में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं होता है. बल्कि इसमें जो हम विटामिन सी एस्कोरबिक एसिड डाल रहे हैं, उससे उसकी प्रॉपर्टी और बढ़ती है.

कोटा. गोमूत्र के गुण और इसके लाभ के बारे में तो सभी जानते हैं. आयुर्वेद के जानकार गोमूत्र को एक बेहतरीन औषधि बताते हैं. कई बीमारियों के लिए गोमूत्र रामबाण का काम भी करते है, लेकिन गोमूत्र को पीना सभी के बस की बात नहीं. इससे उठने वाली दुर्गंध और स्वाद के कारण हर कोई इसे पी नहीं सकता है, लेकिन अब ये पुरानी बात हो चली है. अब गोमूत्र को लोग बड़े चाव से पी रहे हैं और उन्हें किसी प्रकार की दुर्गंध या परेशानी भी नहीं हो रही है.

ऐसा इसलिए क्योंकि अब गोमूत्र भी 'फ्लेवर्ड' (Flavored cow urine) बनाए जा रहे हैं. जी हां, कोटा की आधा दर्जन गोशालाओं फ्लेवर्ड गोमूत्र (Flavored cow urine in kota Gaushalas) तैयार किया जा रहा है. गोशाला में गोमूत्र को एकत्रित किया जाता है. उसके बाद उसे बैक्टीरिया फ्री करने के बाद फ्लेवर्ड बनाया जाता है. इससे उसकी दुर्गंध खत्म होने के साथ ही टेस्ट भी बढ़िया हो जाता है. फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार करने की शुरुआत करवाने वाले आईआईटियन डॉ. राकेश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि गोमूत्र छह से ज्यादा फ्लेवर में तैयार किया जा रहा है. गोमूत्र के मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान और मिक्स फ्लेवर तैयार किए जा रहे हैं. इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को तैयार करने के लिए केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता है. फूड ग्रेड कलर और एसेंस से इसे बनाया जाता है जिनका उपयोग फार्मास्यूटिकल कंपनियां दवाएं बनाने में करती हैं.

फ्लेवर्ड गोमूत्र की डिमांड

पढ़ें. पढ़ें. Special : कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा, व्यापार पर कितना पड़ेगा असर ?...यहां जानिए

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के जिन जानकारों ने गोमूत्र लेने की मांग की है, उन लोगों को यह पीने में अच्छा भी लगता है. खास बात यह है कि लगातार इसकी डिमांड बढ़ भी रही है. आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. तेजेश गोयल का कहना है कि गोमूत्र से सामान्य तौर पर काफी स्मेल आती है, ऐसे में फ्लेवर डालने पर ये स्मेल खत्म हो जाती है और इसका टेस्ट भी काफी अच्छा हो जाता है.

100 लीटर बेच रहे, गोशाला को भी लाभ

फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार कर रहे जितेंद्र कुमार का कहना है कि कोटा की जिन छह गोशालाओं में यह फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार किया जा रहा है उन सभी ने गोशाला को अपना अलग नाम दिया हुआ है. किसी ने संजीवनी तो किसी ने इम्यूनोकोट नाम दिया है. यहां सभी जगह पर करीब 100 लीटर उत्पादन रोज होता है. बूंदी रोड पर नांता नाके पर गोशाला चलाने वाले जितेंद्र गुप्ता का कहना है कि वे करीब 20 लीटर गोमूत्र रोज तैयार करते हैं. इससे करीब तीन से चार हजार रुपए रोज की आमदनी होने लगी है. अब जो गाय दूध नहीं देती है, वह गोमुत्र के जरिए अपना खर्च निकाल ले रही है. इससे गोशाला को भी फायदा हो रहा है.

पढ़ें. Special 31 साथ मिले तो बन गया 'किड्स हेल्पिंग हैंड', बच्चों को पढ़ाई के लिए मोटिवेट कर मुस्कुराहट बिखेरना ध्येय

पूरे देश में हो रही फ्लेवर्ड गोमूत्र की सप्लाई

फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार करने वाली गोशालाओं के संचालकों का कहना है 1 लीटर गोमूत्र फिल्टर करने और फ्लेवर्ड बनाने में करीब 25 से 30 रुपए का खर्च आता है. जबकि इसमें लगने वाली प्रोडक्शन कॉस्ट में पैकेजिंग मैटेरियल, मैन पावर और ब्रांडिंग का लेबल लगाने में भी खर्चा होता है, जिन्हें मिलाकर 50 रुपए तक प्रति लीटर खर्च आ रहा है. जबकि इसे 200 रुपए लीटर बेचा जा रहा है. यहां तक कि देश भर में हजारों किलोमीटर दूर भी यहां से फ्लेवर्ड गोमूत्र की सप्लाई की जा रही है. जो लोग इसको एक बार उपयोग करते हैं, वह दोबारा भी इसके लिए ऑर्डर दे रहे हैं.

इस तरह किया जाता है तैयार

आईआईटी मुंबई से पीएचडी करने वाले डॉ. राकेश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि सुबह का पहला गोमूत्र इसके लिए लिया जाता है. जिसके बाद उसमें 7.5 पीएच रहता है. इसमें साइट्रिक एसिड, विटामिन सी यानी एस्कोरबिक एसिड, लैक्टिक एसिड, ऑरेंज ऑयल और स्पेरिमेंट ऑयल डाला जाता है. इसके बाद इसे फिल्टर कर लिया जाता है. बाद में फ्लेवर और कलर भी इसमें मिलाया जाता है. जिसके बाद इसे पैक कर दिया जाता है. पूरा काम फार्मा कंपनियों की तरह किया जाता है. हाइजीन मेंटेन की जाती है. हर बार तैयार होने वाले गोमूत्र में से कुछ सैंपल के लिए रखे जाते हैं जिनकी समय-समय पर जांच भी की जाती है. इनका पीएच देखा जाता है और यदि यह 3.8 से नीचे रहता है तो साफ है कि यह बैक्टीरिया फ्री है.

पढ़ें. Special : केवलादेव घना में प्रवासी पक्षियों ने डाला डेरा, देसी पर्यटकों की भी आवक शुरू...पर्यटन के पटरी पर लौटने की उम्मीद

फ्लेवर डालने से बढ़ती है गोमूत्र की प्रॉपर्टी

डॉ. तेजेश गोयल का कहना है कि गोमूत्र मूलत: बायो एन्हैंसर (Bio enhancer) है. यह हजारों साल पहले से आयुर्वेद में उपयोग किया जा रहा है. एंटी वायरल और एंटीबैक्टीरियल एक्टिविटी इसमें होती है. यह डेंगू, चिकनगुनिया और कोविड-19 में बेहद फायदेमंद है. उनका यह भी कहना है कि इसमें बैक्टीरिया या वायरस को खत्म करने की क्षमता होती है. यह कैंसर और टीबी के मरीजों के लिए भी लाभदायक होता है. इसके अंदर जो फ्लेवर हम यूज कर रहे हैं, वह सभी फ्रूट ग्रेड हैं. फार्मास्यूटिकल कंपनी इन्हें उपयोग में लेती है. इससे गोमूत्र के प्रॉपर्टी में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं होता है. बल्कि इसमें जो हम विटामिन सी एस्कोरबिक एसिड डाल रहे हैं, उससे उसकी प्रॉपर्टी और बढ़ती है.

Last Updated : Dec 9, 2021, 9:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.