कोटा. हाड़ौती के साथ पूरे प्रदेश में खरीफ की फसल की बुवाई चल रही है. ऐसे में किसानों को रबी की फसल की तरह खाद का टोटा नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि खाद का पर्याप्त स्टॉक गोदामों में मौजूद है. कृषि विभाग भी यहीं दावा कर रहा है कि किसानों को किसी तरह की कोई कमी खाद के लिए नहीं है. किसान भी मानते हैं कि खरीफ की फसल में किसान बारिश होने के साथ एक के बाद एक बुवाई करता है. ऐसे में उसे खाद की समस्या नहीं आती है, जबकि रबी की फसल में एक साथ बुवाई होती है. इसके चलते खाद की कमी बन जाती है.
कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध खाद
वहीं कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार यूरिया 68 हजार मीट्रिक टन, डीएपी 57 हजार मीट्रिक टन और सुपर फॉस्फेट 52 हजार मीट्रिक टन का स्टॉक कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध है. किसान उमाशंकर नागर का कहना है कि खरीफ की फसल में तो खाद की समस्या नहीं आती है. जब रबी की फसल में गेहूं या सरसों होती है उस समय समस्या आती है. किसानों को लाइन में लगना पड़ता है. उस समय खाद की जरूरत भी ज्यादा होती है. ऐसे में उस समय पर सरकार को ध्यान में देने की जरूरत है. खाद बीज की देरी से फसल भी देरी से हो जाती है. इससे किसानों को नुकसान होता है. खाद के साथ अन्य सामान लेना मजबूरी हो जाता है. वहीं किसान शशिकांत का कहना है कि कमी होने पर व्यापारी ब्लैक मार्केटिंग शुरू कर देते हैं, किसान सुबह से शाम तक व्यापारी के पास खड़ा रहता है, लेकिन उसे खाद नहीं मिल पाता है. जब हमें पता चलता है कि व्यापारी के पास खाद आया है. हम लेने जाते हैं तब हमें कह देता है कि सब के बिल कट गए हैं. हमने खाद पूरा बेच कर दिया है.
सुपर फॉस्फेट की बनी हुई है कमी
भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के प्रदेश मंत्री मुकुट नागर बताते हैं कि सुपर फॉस्फेट कि इन दिनों बाजार में काफी कमी बनी हुई है. पहले नकली सुपर फॉस्फेट बाजार में मिलता था. ऐसे में सरकार ने बाजार में आने से पहले पूरे सुपर फॉस्फेट की जांच करवाने की बात कही है और जांच में प्रमाणित पाए जाने पर ही मार्केट में उसका बेचान किए जाने के आदेश जारी किए हैं. इसके चलते बाजार से सुपर फॉस्फेट गायब हो गया है, क्योंकि पहले नकली सुपर फॉस्फेट बाजार में बिक रहा था. इस कारण अभी मार्केट में सुपर फॉस्फेट की कमी बनी हुई है या फिर जहां पर मिल रहा है, वहां महंगा सुपर फॉस्फेट मिल रहा है.
भंडारण का टाइम नहीं मिलता इस कारण आती है समस्या
वहीं निजी खाद वितरक हरिओम गुप्ता का कहना है कि इस सीजन में तो बारिश होने के साथ-साथ लोग बुवाई करते हैं. ऐसे में डीएपी और यूरिया की कमी नहीं होती है. उन्होंने कहा कि गोदामों में यूरिया पड़ा हुआ है, लेकिन खरीदार किसान आ नहीं रहे हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि खरीफ की फसल ऑफ सीजन के बाद में आती है. ऐसे में ऑफ सीजन में खाद का अच्छा स्टॉक हो जाता है. इस कारण कमी नहीं बनती है. जबकि रबी की फसल के पहले भंडारण का टाइम व्यापारियों को नहीं मिलता है और मांग भी खरीफ की फसल से 3 गुनी ज्यादा होती है. ऐसे में समस्या खड़ी हो जाती है.
मांग से ज्यादा बाजार में उपलब्ध है यूरिया व डीएपी
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा बताते हैं कि पिछले साल रबी की फसल में यूरिया व डीएपी की कमी आई थी, क्योंकि रबी की फसल में यूरिया की दो लाख 81 हजार मीट्रिक टन मांग रहती है. एडवांस स्टॉक नहीं रहने के कारण कमी आई थी. अभी खरीफ की फसल में ऐसा नहीं है. इसमें एक लाख अट्ठारह हजार मीट्रिक टन मांग है. इसी तरह से डीएपी की 97 हजार मीट्रिक टन और सुपर फॉस्फेट 58 हजार मीट्रिक टन डिमांड है. जितनी डिमांड है, उससे कई गुना यूरिया व डीएपी मार्केट में उपलब्ध है. ऐसे में खाद की कोई कमी नहीं है. रबी की फसल की भी हमने तैयारी सितंबर में शुरू कर देंगे. करीब 70 हजार मैट्रिक टन का स्टॉक हम यूरिया का इस बार रखेंगे. साथ ही उन्होंने बताया कि कोटा जिले में कालाबाजारी की भी कहीं सूचना नहीं है.