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कोटा जिले के खरीफ की फसल के लिए पर्याप्त खाद उपलब्ध, मांग से ज्यादा यूरिया और डीएपी बाजार में

रबी की फसल के टाइम पिछले साल विधानसभा चुनाव प्रदेश में थे. ऐसे में पर्याप्त स्टॉक नहीं होने के कारण पूरे प्रदेश में यूरिया की किल्लत आ गई थी. किसानों की लंबी-लंबी लाइनें खाद और बीज की दुकानों के बाहर देखने को मिली थी. यहां तक कि कालाबाजारी भी शुरू हो गई थी. अब खरीफ की फसल को लेकर खाद बीज की कोटा में क्या व्यवस्था, देखिए स्पेशल रिपोर्ट..

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Published : Jul 15, 2019, 11:00 PM IST

कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध खाद

कोटा. हाड़ौती के साथ पूरे प्रदेश में खरीफ की फसल की बुवाई चल रही है. ऐसे में किसानों को रबी की फसल की तरह खाद का टोटा नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि खाद का पर्याप्त स्टॉक गोदामों में मौजूद है. कृषि विभाग भी यहीं दावा कर रहा है कि किसानों को किसी तरह की कोई कमी खाद के लिए नहीं है. किसान भी मानते हैं कि खरीफ की फसल में किसान बारिश होने के साथ एक के बाद एक बुवाई करता है. ऐसे में उसे खाद की समस्या नहीं आती है, जबकि रबी की फसल में एक साथ बुवाई होती है. इसके चलते खाद की कमी बन जाती है.

कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध खाद
वहीं कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार यूरिया 68 हजार मीट्रिक टन, डीएपी 57 हजार मीट्रिक टन और सुपर फॉस्फेट 52 हजार मीट्रिक टन का स्टॉक कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध है. किसान उमाशंकर नागर का कहना है कि खरीफ की फसल में तो खाद की समस्या नहीं आती है. जब रबी की फसल में गेहूं या सरसों होती है उस समय समस्या आती है. किसानों को लाइन में लगना पड़ता है. उस समय खाद की जरूरत भी ज्यादा होती है. ऐसे में उस समय पर सरकार को ध्यान में देने की जरूरत है. खाद बीज की देरी से फसल भी देरी से हो जाती है. इससे किसानों को नुकसान होता है. खाद के साथ अन्य सामान लेना मजबूरी हो जाता है. वहीं किसान शशिकांत का कहना है कि कमी होने पर व्यापारी ब्लैक मार्केटिंग शुरू कर देते हैं, किसान सुबह से शाम तक व्यापारी के पास खड़ा रहता है, लेकिन उसे खाद नहीं मिल पाता है. जब हमें पता चलता है कि व्यापारी के पास खाद आया है. हम लेने जाते हैं तब हमें कह देता है कि सब के बिल कट गए हैं. हमने खाद पूरा बेच कर दिया है.

कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध खाद

सुपर फॉस्फेट की बनी हुई है कमी
भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के प्रदेश मंत्री मुकुट नागर बताते हैं कि सुपर फॉस्फेट कि इन दिनों बाजार में काफी कमी बनी हुई है. पहले नकली सुपर फॉस्फेट बाजार में मिलता था. ऐसे में सरकार ने बाजार में आने से पहले पूरे सुपर फॉस्फेट की जांच करवाने की बात कही है और जांच में प्रमाणित पाए जाने पर ही मार्केट में उसका बेचान किए जाने के आदेश जारी किए हैं. इसके चलते बाजार से सुपर फॉस्फेट गायब हो गया है, क्योंकि पहले नकली सुपर फॉस्फेट बाजार में बिक रहा था. इस कारण अभी मार्केट में सुपर फॉस्फेट की कमी बनी हुई है या फिर जहां पर मिल रहा है, वहां महंगा सुपर फॉस्फेट मिल रहा है.

भंडारण का टाइम नहीं मिलता इस कारण आती है समस्या
वहीं निजी खाद वितरक हरिओम गुप्ता का कहना है कि इस सीजन में तो बारिश होने के साथ-साथ लोग बुवाई करते हैं. ऐसे में डीएपी और यूरिया की कमी नहीं होती है. उन्होंने कहा कि गोदामों में यूरिया पड़ा हुआ है, लेकिन खरीदार किसान आ नहीं रहे हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि खरीफ की फसल ऑफ सीजन के बाद में आती है. ऐसे में ऑफ सीजन में खाद का अच्छा स्टॉक हो जाता है. इस कारण कमी नहीं बनती है. जबकि रबी की फसल के पहले भंडारण का टाइम व्यापारियों को नहीं मिलता है और मांग भी खरीफ की फसल से 3 गुनी ज्यादा होती है. ऐसे में समस्या खड़ी हो जाती है.

मांग से ज्यादा बाजार में उपलब्ध है यूरिया व डीएपी
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा बताते हैं कि पिछले साल रबी की फसल में यूरिया व डीएपी की कमी आई थी, क्योंकि रबी की फसल में यूरिया की दो लाख 81 हजार मीट्रिक टन मांग रहती है. एडवांस स्टॉक नहीं रहने के कारण कमी आई थी. अभी खरीफ की फसल में ऐसा नहीं है. इसमें एक लाख अट्ठारह हजार मीट्रिक टन मांग है. इसी तरह से डीएपी की 97 हजार मीट्रिक टन और सुपर फॉस्फेट 58 हजार मीट्रिक टन डिमांड है. जितनी डिमांड है, उससे कई गुना यूरिया व डीएपी मार्केट में उपलब्ध है. ऐसे में खाद की कोई कमी नहीं है. रबी की फसल की भी हमने तैयारी सितंबर में शुरू कर देंगे. करीब 70 हजार मैट्रिक टन का स्टॉक हम यूरिया का इस बार रखेंगे. साथ ही उन्होंने बताया कि कोटा जिले में कालाबाजारी की भी कहीं सूचना नहीं है.

कोटा. हाड़ौती के साथ पूरे प्रदेश में खरीफ की फसल की बुवाई चल रही है. ऐसे में किसानों को रबी की फसल की तरह खाद का टोटा नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि खाद का पर्याप्त स्टॉक गोदामों में मौजूद है. कृषि विभाग भी यहीं दावा कर रहा है कि किसानों को किसी तरह की कोई कमी खाद के लिए नहीं है. किसान भी मानते हैं कि खरीफ की फसल में किसान बारिश होने के साथ एक के बाद एक बुवाई करता है. ऐसे में उसे खाद की समस्या नहीं आती है, जबकि रबी की फसल में एक साथ बुवाई होती है. इसके चलते खाद की कमी बन जाती है.

कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध खाद
वहीं कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार यूरिया 68 हजार मीट्रिक टन, डीएपी 57 हजार मीट्रिक टन और सुपर फॉस्फेट 52 हजार मीट्रिक टन का स्टॉक कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध है. किसान उमाशंकर नागर का कहना है कि खरीफ की फसल में तो खाद की समस्या नहीं आती है. जब रबी की फसल में गेहूं या सरसों होती है उस समय समस्या आती है. किसानों को लाइन में लगना पड़ता है. उस समय खाद की जरूरत भी ज्यादा होती है. ऐसे में उस समय पर सरकार को ध्यान में देने की जरूरत है. खाद बीज की देरी से फसल भी देरी से हो जाती है. इससे किसानों को नुकसान होता है. खाद के साथ अन्य सामान लेना मजबूरी हो जाता है. वहीं किसान शशिकांत का कहना है कि कमी होने पर व्यापारी ब्लैक मार्केटिंग शुरू कर देते हैं, किसान सुबह से शाम तक व्यापारी के पास खड़ा रहता है, लेकिन उसे खाद नहीं मिल पाता है. जब हमें पता चलता है कि व्यापारी के पास खाद आया है. हम लेने जाते हैं तब हमें कह देता है कि सब के बिल कट गए हैं. हमने खाद पूरा बेच कर दिया है.

कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध खाद

सुपर फॉस्फेट की बनी हुई है कमी
भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के प्रदेश मंत्री मुकुट नागर बताते हैं कि सुपर फॉस्फेट कि इन दिनों बाजार में काफी कमी बनी हुई है. पहले नकली सुपर फॉस्फेट बाजार में मिलता था. ऐसे में सरकार ने बाजार में आने से पहले पूरे सुपर फॉस्फेट की जांच करवाने की बात कही है और जांच में प्रमाणित पाए जाने पर ही मार्केट में उसका बेचान किए जाने के आदेश जारी किए हैं. इसके चलते बाजार से सुपर फॉस्फेट गायब हो गया है, क्योंकि पहले नकली सुपर फॉस्फेट बाजार में बिक रहा था. इस कारण अभी मार्केट में सुपर फॉस्फेट की कमी बनी हुई है या फिर जहां पर मिल रहा है, वहां महंगा सुपर फॉस्फेट मिल रहा है.

भंडारण का टाइम नहीं मिलता इस कारण आती है समस्या
वहीं निजी खाद वितरक हरिओम गुप्ता का कहना है कि इस सीजन में तो बारिश होने के साथ-साथ लोग बुवाई करते हैं. ऐसे में डीएपी और यूरिया की कमी नहीं होती है. उन्होंने कहा कि गोदामों में यूरिया पड़ा हुआ है, लेकिन खरीदार किसान आ नहीं रहे हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि खरीफ की फसल ऑफ सीजन के बाद में आती है. ऐसे में ऑफ सीजन में खाद का अच्छा स्टॉक हो जाता है. इस कारण कमी नहीं बनती है. जबकि रबी की फसल के पहले भंडारण का टाइम व्यापारियों को नहीं मिलता है और मांग भी खरीफ की फसल से 3 गुनी ज्यादा होती है. ऐसे में समस्या खड़ी हो जाती है.

मांग से ज्यादा बाजार में उपलब्ध है यूरिया व डीएपी
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा बताते हैं कि पिछले साल रबी की फसल में यूरिया व डीएपी की कमी आई थी, क्योंकि रबी की फसल में यूरिया की दो लाख 81 हजार मीट्रिक टन मांग रहती है. एडवांस स्टॉक नहीं रहने के कारण कमी आई थी. अभी खरीफ की फसल में ऐसा नहीं है. इसमें एक लाख अट्ठारह हजार मीट्रिक टन मांग है. इसी तरह से डीएपी की 97 हजार मीट्रिक टन और सुपर फॉस्फेट 58 हजार मीट्रिक टन डिमांड है. जितनी डिमांड है, उससे कई गुना यूरिया व डीएपी मार्केट में उपलब्ध है. ऐसे में खाद की कोई कमी नहीं है. रबी की फसल की भी हमने तैयारी सितंबर में शुरू कर देंगे. करीब 70 हजार मैट्रिक टन का स्टॉक हम यूरिया का इस बार रखेंगे. साथ ही उन्होंने बताया कि कोटा जिले में कालाबाजारी की भी कहीं सूचना नहीं है.

Intro:रबी की फसल के टाइम पिछले साल विधानसभा चुनाव प्रदेश में थे, ऐसे में पर्याप्त स्टॉक नहीं होने के कारण पूरे प्रदेश में यूरिया की किल्लत आ गई थी. किसानों की लंबी-लंबी लाइनें खाद और बीज की दुकानों के बाहर देखने को मिली थी. यहां तक कि कालाबाजारी भी शुरू हो गई थी.


Body:कोटा. हाड़ौती के साथ पूरे प्रदेश में खरीफ की फसल की बुवाई चल रही है. ऐसे में किसानों को रबी की फसल की तरह खाद का टोटा नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि खाद का पर्याप्त स्टॉक गोदामों में मौजूद है. कृषि विभाग भी यही दावा कर रहा है कि किसानों को किसी तरह की कोई कमी खाद के लिए नहीं है. किसान भी मानते हैं कि खरीफ की फसल में किसान बारिश होने के साथ एक के बाद एक बुराई करता है. ऐसे में उसे खाद की समस्या नहीं आती है, जबकि रबी की फसल में एक साथ बुआई होती है. इसके चलते खाद की कमी बन जाती है. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार यूरिया 68 हजार मैट्रिक टन, डीएपी 57 हजार मैट्रिक टन और सुपर फास्फेट 52 हजार मैट्रिक टन का स्टॉक कोटा जिले के गोदामों में किसानों के लिए उपलब्ध है. किसान उमाशंकर नागर का कहना है कि खरीफ की फसल में तो खाद की समस्या नहीं आती है. जब रबी की फसल में गेहूं या सरसों होती है उस समय समस्या आती है किसानों को लाइन में लगना पड़ता है उस समय खाद की जरूरत भी ज्यादा होती है अभी तो सोयाबीन की फसल में ज्यादा खाद की जरूरत नहीं पड़ती है धान में पढ़ती है लेकिन मांग कम होने से आसानी से मिल जाता है उस समय पर सरकार को ध्यान में देने की जरूरत है खाद बीज की देरी से फसल भी देरी से हो जाती है इससे किसानों को नुकसान होता है खाद के साथ अन्य सामान लेना हो जाता है मजबूरी कालातालाब क्षेत्र के किसान ओम प्रकाश जांगिड़ बताते हैं कि कई बार खाद के साथ व्यापारी जिंक हमें दे देते हैं जिसकी हमें जरूरत नहीं होती है. सहकारी समितियों में भी खाद बीज मिलना बंद हो गया है. वहां से तो हमें उधार भी मिल जाता था, लेकिन अब वह भी मिलना बंद हो गया. ऐसे में किसान के पास पैसा नहीं है, जिससे वह नगद नहीं ले पाता है, उधार माल लेने पर व्यापारी उसे खाद के साथ अन्य प्रोडक्ट भी थमा देते हैं. जब खाद की शॉर्टेज होती है, तब भी खाद के साथ दूसरे उत्पाद हमें लेने पड़ते हैं. कमी होने पर ब्लैक मार्केटिंग शुरू हो जाती है किसान शशिकांत का कहना है कि कमी होने पर व्यापारी ब्लैक मार्केटिंग शुरू कर देते हैं, किसान सुबह से शाम तक व्यापारी के पास खड़ा रहता है, लेकिन उसे खाद नहीं मिल पाता है. जब हमें पता चलता है कि व्यापारी के पास खाद आया है. हम लेने जाते हैं तब हमें कह देता है कि सबके बिल कट गए हैं. हमने खाद पूरा बेच कर दिया है. सुपर फास्फेट की बनी हुई है कमी भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के प्रदेश मंत्री मुकुट नागर बताते हैं कि सुपर फास्फेट कि इन दिनों बाजार में काफी कमी बनी हुई है. पहले नकली सुपर फास्फेट बाजार में मिलता था, ऐसे में सरकार ने बाजार में आने से पहले पूरे सुपर फास्फेट की जांच करवाने की बात कही है और जांच में प्रमाणित पाए जाने पर ही मार्केट में उसका बेचान किए जाने के आदेश जारी किए हैं. इसके चलते बाजार से सुपरफास्ट गायब हो गया है, क्योंकि पहले नकली सुपर फास्फेट बाजार में बिक रहा था. इस कारण अभी मार्केट सुपर फास्फेट की कमी बनी हुई है या फिर जहां पर मिल रहा है वहां महंगा सुपर फास्फेट मिल रहा है.


Conclusion:भंडारण का टाइम नहीं मिलता इस कारण आती है समस्या खंडेलवाल एग्रो के प्रोपराइटर हरिओम गुप्ता का कहना है कि इस सीजन में तो बारिश होने के साथ-साथ लोग लुगाई करते हैं. ऐसे में डीएपी और यूरिया की कमी नहीं होती है. उन्होंने कहा कि गोदामों में यूरिया पड़ा हुआ है, लेकिन खरीदार किसान आ नहीं रहे हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि खरीफ की फसल ऑफ सीजन के बाद में आती है. ऐसे में ऑफ सीजन में खाद का अच्छा स्टॉक हो जाता है, इस कारण कमी नहीं बनती है. जबकि रबी की फसल के पहले भंडारण का टाइम व्यापारियों को नहीं मिलता है और मांग भी खरीफ की फसल से 3 गुनी ज्यादा होती है. ऐसे में समस्या खड़ी हो जाती है. मांग से ज्यादा बाजार में उपलब्ध कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा बताते हैं कि पिछले साल रबी की फसल में यूरिया व डीएपी की कमी आई थी, क्योंकि रबी की फसल में यूरिया की दो लाख 81 हजार मेट्रिक टन मांग रहती है. एडवांस स्टॉक नहीं रहने के कारण कमी आई थी. अभी खरीफ की फसल में ऐसा नहीं है. इसमें एक लाख अट्ठारह हजार मैट्रिक टन मांग है. इसी तरह से डीएपी की 97 हजार मैट्रिक टन और सुपर फास्फेट 58 हजार मैट्रिक टन डिमांड है. जितनी डिमांड है, उससे कई गुना यूरिया व डीएपी मार्केट में उपलब्ध है. ऐसे में खाद की कोई कमी नहीं है. रबी की फसल की भी हमने तैयारी सितंबर में शुरू कर देंगे, करीब 70 हजार मैट्रिक टन का स्टॉक हम यूरिया का इस बार रखेंगे. कालाबाजारी की भी कहीं सूचना नहीं है. --- कोटा जिले में खाद का स्टॉक खाद-- मात्रा यूरिया-- 68 हजार मैट्रिक टन डीएपी-- 57 हजार मैट्रिक टन एसएसपी-- 52 हजार मैट्रिक टन ---- बाइट का क्रम बाइट-- उमाशंकर नागर, किसान बाइट-- ओम प्रकाश जांगिड़, किसान बाइट-- शशीकांत, किसान बाइट-- मुकुट नागर, प्रदेश मंत्री, भाजपा किसान मोर्चा बाइट-- हरिओम गुप्ता, प्रोपराइटर, खंडेलवाल एग्रो बाइट-- रामावतार शर्मा, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग
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