कोटा. मासूम बच्चों के खिलाफ अपराधों की बात की जाए तो यह घटनाएं पूरे देश में ही घटित हो रही हैं. कोटा में भी कुछ ऐसा ही आंकड़ा हैं. जिसमें बच्चों के साथ अपराधों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. चाहे वो बालश्रम का मामला हो, नवजात को झाड़ियों में फेंकने का मामला हो, यहा फिर बच्चों से दुष्कर्म या कुकर्म का मामला हो, मासूम हर तरह से शिकार हो रहे हैं. World innocent child day पर हम आपको कोटा में बच्चों के साथ हो रहे इन्हीं मामलों से रूबरू करवाएंगे.
बाल कल्याण समिति कोटा के सदस्य विमल चंद जैन के अनुसार पिछले साल यहां 184 पॉक्सो एक्ट के मामले आए थे. इस साल यह मामले बढ़कर 207 हो गए हैं. उनका कहना है कि 23 नए मामले सामने आए हैं. इनमें आधे मामले तो ऐसे हैं जिनमें नजदीकी रिश्तेदार और पड़ोसी ने ही बच्चों के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किए हैं. उन्होंने बताया कि दो मामले तो ऐसे हैं, जिनमें पिता ने ही अपनी बेटी के साथ दुष्कर्म किया है. साथ ही अन्य कई मामलों में भी मामा, चाचा, जीजा या भाई भी आरोपी पाए गए हैं.
सीडब्ल्यूसी का दावा बालश्रम हुआ कम
सीडब्ल्यूसी के सदस्य विमल चंद जैन का कहना है कि वर्ष 2018-19 में बाल श्रम के 750 मामले आए थे. जबकि इस साल 2019-20 में यह मामले 442 ही रह गए हैं. उन्होंने कहा कि हमने दशहरे मेले में भी विशेष अभियान चलाया था. जिसके चलते एक भी ऐसी दुकान नहीं चलने दी गई थी, जिसमें बाल श्रम हो रहा था. हालांकि इस साल बालश्रम को लेकर कोई रेस्क्यू अभियान सरकार की तरफ से नहीं चलाया गया है.
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सोशल मीडिया भी बना बच्चों का दुश्मन
सीडब्ल्यूसी से मिले आंकड़ों के अनुसार सोशल मीडिया की चपेट में आकर भी बच्चे घरों से भाग रहे हैं. उन्होंने बताया कि कोटा में करीब 7 से 8 केस ऐसे आए हैं, जिनमें सोशल मीडिया पर दोस्ती होने पर छोड़ कर चले गए. साथ ही उन्होंने बताया कि एक केस तो ऐसा है, जिसमें कोटा का एक युवक छत्तीसगढ़ से एक लड़की को सोशल मीडिया पर दोस्ती होने के बाद ले आया, 1 महीने उसे घर पर रखा और छोड़ दिया. बता दें कि लड़की को बालिका गृह में आवास दिया गया है.
मां-पिता या रिश्तेदार झाड़ियों में फेंक गए
कोटा जिले में पालनों में आए हुए नवजात बच्चों की बात की जाए तो इनमें 0 से 5 साल के करीब 20 बच्चे हैं. जिनका उनके परिजनों ने परित्याग कर दिया या फिर परिजन नहीं होने पर उनके दूसरे रिश्तेदार छोड़ गए है. ऐसे 9 बच्चों को लीगल फ्री करवाते हुए गोद दिया गया है. जबकि अन्य बच्चे अभी शेल्टर होम में ही निवासरत है.
सीडब्ल्यूसी सदस्यों का कहना है कि कई बच्चे तो ऐसे थे, जो उन्हें झाड़ियों में मिले या फिर उन्हें सुनसान जगह पर मरने के लिए छोड़ दिया गया था. लोगों की नजर पड़ने पर उनका रेस्क्यू किया गया और इलाज के बाद आज वह जी रहे हैं.
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बढ़ रहे शेल्टर होम
कोटा में जहां कुछ सालों पहले महज 4 से 5 ही शेल्टर होम संचालित हो रहे थे. जिनकी क्षमता महज डेढ़ सौ के आसपास ही थी. वहीं अब शेल्टर होम की संख्या बढ़कर 11 हो गई है. यही नहीं उनकी क्षमता भी 1000 हो गई है. इससे साफ है कि लगातार बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ रही है.
200 बच्चें हैं शेल्टर होम में
कोटा के सरकारी और संस्थाओं के शेल्टर होम की बात की जाए तो अभी यहां पर 78 बच्चे, 82 बालिकाएं, 13 शिशु, 21 विमंदित और 6 लड़कियों को क्वॉरेंटाइन किया हुआ है. कोरोना के चलते करीब 200 से ज्यादा बच्चों को उनके घरों या रिश्तेदारों के यहां भेजा गया है, ताकि इन्फेक्शन नहीं फैले.
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केस में हो रही वृद्धि
मामले जून 2018 से मई 2019 जून 2019 से मई 2020
बालश्रम 750 442
पॉक्सो 184 207
गुमशुदा 13 16
निराषित 180 200
उक्त आकंड़ों से साफ पता चल रहा है कि बच्चों से साथ होने वाले अपराधों में वृद्धि तो हुई है. लेकिन चिंता की बात यह है कि ज्यादातर अपराध बच्चों के साथ उनके घर में या फिर रिश्तेदार के घर में हुए हैं. यही नहीं जब बालश्रम की बात आती है तो सरकार को इस ओर थोड़ा ध्यान देना चाहिए, ताकि देश के भविष्य को इन अपराधों से बचाया जा सके.