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SPECIAL : जोधपुर के युवाओं का सेवा के लिए 'लग्जरी' समर्पण....कोरोना मरीजों, शवों के लिए अपनी लग्जरी गाडियों को बनाया एंबुलेंस

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Published : May 8, 2021, 8:08 PM IST

जोधपुर शहर के दो युवाओं ने अपनी लग्जरी गाडियों को कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में लगा दिया है. इनमें ट्रेवल व्यवसाय से जुडे अक्षय ओझा ने अपनी तीन गाडियों को एंबुलेंस बनाया है. जबकि सुरेश आचार्य ने अपनी नई स्कोर्पियों को मोक्ष वाहन में तब्दील कर दिया है.

Youth luxury vehicle ambulance of Jodhpur
युवाओं का सेवा के लिए 'लग्जरी' समर्पण

जोधपुर. शहर में बढते कोरोना संक्रमण का असर अब गांवों में भी नजर आ रहा है. इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों से मरीजों के लाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही हैं. इसके अलावा मृत्यु होने पर शव को लेकर जाने के लिए भी वाहन नहीं मिलने से खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.

कोरोना के दौर में युवाओं की पॉजीटिव सोच

ऐसे में शहर के दो युवाओं ने अपनी लग्जरी गाडियों को मरीजों की सेवा में लगा दिया. ट्रेवल व्यवसाय से जुडे अक्षय ओझा ने अपनी तीन गाडियों को एंबुलेंस बना दिया. जबकि सुरेश आचार्य ने अपनी एक माह पुरानी स्कोर्पियों को मोक्ष वाहन में तब्दील कर दिया. यह दोनों उदाहरण में अपने आप में मानवीय सेवा के लिए अनुकरणीय हैं.

ट्रेवल कंपनी का मालिक बना ड्राइवर

अक्षय बताते हैं कि कुछ दिनों पहले एक मरीज को दस किलोमीटर शव ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने दस हजार रुपए लेने की खबर पढ़ी. इसके बाद रहा नहीं गया. अक्षय की ट्रेवल कंपनी में बीस गाडियां हैं. जिनमें से तीन नई गाडियों को उन्होंने एंबुलेंस बना दिया. इनमें मरीज के साथ साथ परिजन को भी वे गांवों से अस्पताल ला रहे हैं. अक्षय का कहना है कि वे एक मरीज को तो दिल्ली तक छोड कर आए हैं.

Youth luxury vehicle ambulance of Jodhpur
अक्षय ओझा ने समर्पित कर दी तीन गाड़ियां

जब वापस परिजनों का कॉल आता है तो मन को सुकून मिलता है. इससे बडी बात यह है कि अक्षय अपनी सेवा में खुद भी ड्राइवर बनके काम कर रहे हैं और किसी भी परिवार से कोई शुल्क नहीं लेते. अक्षय ने बताया कि पहले परिजनों ने मना किया था. लेकिन जब पहली बार मरीज को लेकर गया तो डर लगा कि कहीं मेरी वजह से पूरा परिवार संकट में नहीं आ जाए. इसके चलते घर में वे अलग रहने लगे हैं.

पढ़ें - जोधपुर में शुरू हुआ देश का पहला ब्रीथ बैंक, जुटाए जा रहे 500 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर

स्कोर्पियों में ले जा रहे हैं शव

जोधपुर के ही रहने वाले युवा सुरेश आचार्य के मन में भी सेवा जागा तो उन्होंने अपनी एक माह पहले खरीदी नई स्कोर्पियो को मोक्ष वाहन बना दिया. सुरेश ने बताया कि शव को ले जाने के लिए बहुत दिक्कतें सामने आ रही थीं. ऐसे में गुरुवार को गाडी की सीटें खुलवाकर उसमें स्ट्रेचर लगा दिया. पहला शव वे बीकानेर के नोखा तक छोड कर आए. सुरेश ने बताया कि वे आचार्य ब्राह्मण हैं. अंतिम संस्कार का क्रियाक्रम करते हैं. वे खुद इस कोरोना काल में 40 शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.

Youth luxury vehicle ambulance of Jodhpur
सुरेश आचार्य ने अपने वाहन को बनाया मोक्ष वाहन

ऐसे में उन्हें पता था है कि यह कितनी बडी सेवा है. सुरेश का कहना है गाडी शौक के लिए ली थी. लेकिन मुझे लगा कि उससे ज्यादा यह सेवा जरूरी है. सुरेश 50 किलोमीटर तक किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लेते. इसके बाद की दूरी के लिए पैसे नहीं मांगते. गाडी को पेट्रोलपंप ले जाते है जहां परिजन चाहे तो ईधन डलवा सकता है.

सुरेश ने तय किया है कि वे किसी भी शव को ले जाने के लिए रुपए के हाथ नहीं लगाएंगे. सुरेश ने अपनी स्कोर्पियो को नगर निगम के अधीन लगा दिया है. जहां से शव ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध करवाए जाते हैं. सुरेश स्क्रेप का काम करते हैं.

जोधपुर. शहर में बढते कोरोना संक्रमण का असर अब गांवों में भी नजर आ रहा है. इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों से मरीजों के लाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही हैं. इसके अलावा मृत्यु होने पर शव को लेकर जाने के लिए भी वाहन नहीं मिलने से खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.

कोरोना के दौर में युवाओं की पॉजीटिव सोच

ऐसे में शहर के दो युवाओं ने अपनी लग्जरी गाडियों को मरीजों की सेवा में लगा दिया. ट्रेवल व्यवसाय से जुडे अक्षय ओझा ने अपनी तीन गाडियों को एंबुलेंस बना दिया. जबकि सुरेश आचार्य ने अपनी एक माह पुरानी स्कोर्पियों को मोक्ष वाहन में तब्दील कर दिया. यह दोनों उदाहरण में अपने आप में मानवीय सेवा के लिए अनुकरणीय हैं.

ट्रेवल कंपनी का मालिक बना ड्राइवर

अक्षय बताते हैं कि कुछ दिनों पहले एक मरीज को दस किलोमीटर शव ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने दस हजार रुपए लेने की खबर पढ़ी. इसके बाद रहा नहीं गया. अक्षय की ट्रेवल कंपनी में बीस गाडियां हैं. जिनमें से तीन नई गाडियों को उन्होंने एंबुलेंस बना दिया. इनमें मरीज के साथ साथ परिजन को भी वे गांवों से अस्पताल ला रहे हैं. अक्षय का कहना है कि वे एक मरीज को तो दिल्ली तक छोड कर आए हैं.

Youth luxury vehicle ambulance of Jodhpur
अक्षय ओझा ने समर्पित कर दी तीन गाड़ियां

जब वापस परिजनों का कॉल आता है तो मन को सुकून मिलता है. इससे बडी बात यह है कि अक्षय अपनी सेवा में खुद भी ड्राइवर बनके काम कर रहे हैं और किसी भी परिवार से कोई शुल्क नहीं लेते. अक्षय ने बताया कि पहले परिजनों ने मना किया था. लेकिन जब पहली बार मरीज को लेकर गया तो डर लगा कि कहीं मेरी वजह से पूरा परिवार संकट में नहीं आ जाए. इसके चलते घर में वे अलग रहने लगे हैं.

पढ़ें - जोधपुर में शुरू हुआ देश का पहला ब्रीथ बैंक, जुटाए जा रहे 500 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर

स्कोर्पियों में ले जा रहे हैं शव

जोधपुर के ही रहने वाले युवा सुरेश आचार्य के मन में भी सेवा जागा तो उन्होंने अपनी एक माह पहले खरीदी नई स्कोर्पियो को मोक्ष वाहन बना दिया. सुरेश ने बताया कि शव को ले जाने के लिए बहुत दिक्कतें सामने आ रही थीं. ऐसे में गुरुवार को गाडी की सीटें खुलवाकर उसमें स्ट्रेचर लगा दिया. पहला शव वे बीकानेर के नोखा तक छोड कर आए. सुरेश ने बताया कि वे आचार्य ब्राह्मण हैं. अंतिम संस्कार का क्रियाक्रम करते हैं. वे खुद इस कोरोना काल में 40 शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.

Youth luxury vehicle ambulance of Jodhpur
सुरेश आचार्य ने अपने वाहन को बनाया मोक्ष वाहन

ऐसे में उन्हें पता था है कि यह कितनी बडी सेवा है. सुरेश का कहना है गाडी शौक के लिए ली थी. लेकिन मुझे लगा कि उससे ज्यादा यह सेवा जरूरी है. सुरेश 50 किलोमीटर तक किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लेते. इसके बाद की दूरी के लिए पैसे नहीं मांगते. गाडी को पेट्रोलपंप ले जाते है जहां परिजन चाहे तो ईधन डलवा सकता है.

सुरेश ने तय किया है कि वे किसी भी शव को ले जाने के लिए रुपए के हाथ नहीं लगाएंगे. सुरेश ने अपनी स्कोर्पियो को नगर निगम के अधीन लगा दिया है. जहां से शव ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध करवाए जाते हैं. सुरेश स्क्रेप का काम करते हैं.

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