जोधपुर. शहर में बढते कोरोना संक्रमण का असर अब गांवों में भी नजर आ रहा है. इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों से मरीजों के लाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही हैं. इसके अलावा मृत्यु होने पर शव को लेकर जाने के लिए भी वाहन नहीं मिलने से खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
ऐसे में शहर के दो युवाओं ने अपनी लग्जरी गाडियों को मरीजों की सेवा में लगा दिया. ट्रेवल व्यवसाय से जुडे अक्षय ओझा ने अपनी तीन गाडियों को एंबुलेंस बना दिया. जबकि सुरेश आचार्य ने अपनी एक माह पुरानी स्कोर्पियों को मोक्ष वाहन में तब्दील कर दिया. यह दोनों उदाहरण में अपने आप में मानवीय सेवा के लिए अनुकरणीय हैं.
ट्रेवल कंपनी का मालिक बना ड्राइवर
अक्षय बताते हैं कि कुछ दिनों पहले एक मरीज को दस किलोमीटर शव ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने दस हजार रुपए लेने की खबर पढ़ी. इसके बाद रहा नहीं गया. अक्षय की ट्रेवल कंपनी में बीस गाडियां हैं. जिनमें से तीन नई गाडियों को उन्होंने एंबुलेंस बना दिया. इनमें मरीज के साथ साथ परिजन को भी वे गांवों से अस्पताल ला रहे हैं. अक्षय का कहना है कि वे एक मरीज को तो दिल्ली तक छोड कर आए हैं.
जब वापस परिजनों का कॉल आता है तो मन को सुकून मिलता है. इससे बडी बात यह है कि अक्षय अपनी सेवा में खुद भी ड्राइवर बनके काम कर रहे हैं और किसी भी परिवार से कोई शुल्क नहीं लेते. अक्षय ने बताया कि पहले परिजनों ने मना किया था. लेकिन जब पहली बार मरीज को लेकर गया तो डर लगा कि कहीं मेरी वजह से पूरा परिवार संकट में नहीं आ जाए. इसके चलते घर में वे अलग रहने लगे हैं.
पढ़ें - जोधपुर में शुरू हुआ देश का पहला ब्रीथ बैंक, जुटाए जा रहे 500 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर
स्कोर्पियों में ले जा रहे हैं शव
जोधपुर के ही रहने वाले युवा सुरेश आचार्य के मन में भी सेवा जागा तो उन्होंने अपनी एक माह पहले खरीदी नई स्कोर्पियो को मोक्ष वाहन बना दिया. सुरेश ने बताया कि शव को ले जाने के लिए बहुत दिक्कतें सामने आ रही थीं. ऐसे में गुरुवार को गाडी की सीटें खुलवाकर उसमें स्ट्रेचर लगा दिया. पहला शव वे बीकानेर के नोखा तक छोड कर आए. सुरेश ने बताया कि वे आचार्य ब्राह्मण हैं. अंतिम संस्कार का क्रियाक्रम करते हैं. वे खुद इस कोरोना काल में 40 शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.
ऐसे में उन्हें पता था है कि यह कितनी बडी सेवा है. सुरेश का कहना है गाडी शौक के लिए ली थी. लेकिन मुझे लगा कि उससे ज्यादा यह सेवा जरूरी है. सुरेश 50 किलोमीटर तक किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लेते. इसके बाद की दूरी के लिए पैसे नहीं मांगते. गाडी को पेट्रोलपंप ले जाते है जहां परिजन चाहे तो ईधन डलवा सकता है.
सुरेश ने तय किया है कि वे किसी भी शव को ले जाने के लिए रुपए के हाथ नहीं लगाएंगे. सुरेश ने अपनी स्कोर्पियो को नगर निगम के अधीन लगा दिया है. जहां से शव ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध करवाए जाते हैं. सुरेश स्क्रेप का काम करते हैं.