जोधपुर. ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेंच चेंज के दौर में दुनिया में भर में इनको लेकर प्रदर्शन होते रहते हैं. आवाज उठाने पर ग्रेटा थनबर्ग जैसी बालिका विश्वपटल पर छा जाती हैं. लेकिन भारत में ऐसे कई लोग हैं जो बिना किसी प्रचार-प्रसार या सरकारी मदद के सिर्फ मानवता की भलाई के लिए प्रकृति को बचाने में लगे हैं. ऐसी ही शख्सियत हैं ट्री मैन राणाराम विश्नोई. देखिये ये विशेष रिपोर्ट...
जोधपुर जिले के ओसियां क्षेत्र के एकलखोरी गांव के रेतीले धोरे में रहने वाले राणाराम विश्नोई जीवन के 82 वर्ष पूरे कर चुके हैं. उन्हें आस-पास के लोग ट्री मैन के रूप में जानते हैं. वजह है पेडों से उनका प्रेम. पिछले पचास साल में राणाराम 50 हजार से अधिक पौधे लगा चुके हैं. खास बात ये है कि ये पौधे उन्होंने रेतीले धोरों में लगाए हैं, जहां यह सब असंभव होता है.
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धुन के पक्के राणाराम ने इसे जीवन का मिशन बना लिया. यह क्रम आज भी जारी है. हालांकि बढती उम्र के चलते वे अब खुद पानी के घडे या बाल्टियां लेकर धोरे नहीं चढ़ सकते. यह काम उनके साथ उनके पुत्र विशेक विश्नोई करते हैं. राणाराम आज भी अपने घर के आस-पास लगाए पौधों की देख-रेख के लिए प्रतिदिन तीन से चार किलोमीटर चलते हैं.
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पढ़ें- पेड़ों की रक्षा पर कुर्बान हुए थे राजस्थान के 363 वीर, जानें पूरी कहानी
राणाराम विश्नोई किसी प्रेरणा से कम नहीं है. वे जहां भी जाते हैं तो साथ में बीज लेकर जाते हैं. पेडों के लिए अनुकूल जगह देख यह सोच कर डाल देते हैं कि अगर पानी मिला तो यह जरूर पनप जाएंगे. अपने गांव एकल खोरी के आस-पास के धोरों पर नीम, रोहिडा, बबूल, कंकेरी जैसे हजारों पौधे पनपा चुके हैं. जो रेत में टिकते नहीं हैं. लेकिन उनकी लगन का ही परिणाम है कि धोरों पर पेड लहलहाते नजर आते हैं.
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प्रयोग भी किए
रेत में पत्तेदार पौधे टिकना आसान काम नही है. इसके लिए वे बाकायदा बाहर से पौधे लाकर कलम तैयार करते हैं. कलम पर गोबर और अन्य पदार्थ लगाकर एक जगह पहले लगाते हैं. कलम के अंकुरित होने पर वे उसे अलग-अलग जगह स्थापित करते हैं. यही कारण है कि धोरों पर सदाबहार जैसे रंगीन फूल के पौधे भी नजर आते हैं.
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कुछ छोटे सुंदर पौधों को पनपाने के लिए उन्हें पानी आवश्यकता अधिक होती है. ऐसे में उन्होंने प्लास्टिक के पाईप उनकी जडों तक डाले. जिससे पानी सीधे जड़ों तक पहुंच सके. रेत में सतह पर दिया गया पानी जड़ तक बमुश्किल पहुंचता है.
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कहते हैं हवा बदल रही है
राणाराम ठेठ राजस्थानी भाषा में कहते हैं कि आजकल हवा बदल गई है. पौधे पनपना मुश्किल होता जा रहा है. कीट बहुत लगते हैं. जो पौधे को पनपने के बाद खत्म कर देते हैं. इसके अलावा पानी का संकट गहराया हुआ है. अभी भी पडौस के कुंओं से पानी लाकर पौधों को देते हैं. सरकारी कनेक्शन उनके घर हुआ लेकिन नियमित आपूर्ति नहीं होती. जो परेशानी बढ़ा रही है.
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राणाराम कहते हैं कि मैंने आज तक सरकार से कुछ नहीं मांगा. जो कुछ किया अपने स्तर पर ही किया. पंजाब हरियाणा से लोग आते हैं. वे अपने गांव लेकर जाते हैं. मै वहां भी यही कहता हूं कि पेड़ हैं तो जीवन है. यह हमारा धर्म है. इनकी रक्षा करो और पेड़ लगाओ.
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यूं हुई शुरूआत
राणाराम बताते हैं कि जब वे 20-22 साल के थे तो बीकानेर गए थे. वहां विश्नोई समाज के मुकाम धाम में सभा थी. जाट नेता ज्ञान प्रकाश पिलानियां ने वृक्षारोपण को लेकर कई बातें कही. यह भी कहा कि विश्नोइयों का तो धर्म है पेड़ लगाना और उसकी रक्षा करना. उस दिन मैंने तय कर लिया कि मैं रूख लगाऊंगा. पहला पौधा वहीं मुकाम धाम में लगाया और उसके बाद गांव आकर काम शुरू किया.
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जब भी कहीं जाने का मौका मिलता तो राणाराम वहां से पौधे और बीज ही लेकर जाते. बीजों की पहचान होने लगी. अब तो वे खुद उत्तम किस्म के बीच छांट कर लोगों को बताते हैं कि यह कारगर होगा.
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एक ट्यूबवेल की आवश्यकता
82 साल की उम्र में भी राणाराम के प्रयास कम नहीं हैं. शरीर से ज्यादा वे पानी की कमी से परेशान है. उनका कहना है उनके पास एक ट्यूबवैल सरकार खुदवा दे तो वे और जोश से काम करेंगे. उनके पुत्र विशेक बताते हैं हम इसको लेकर प्रयासरत हैं. अगर यह काम हो जाता है तो अपने गांव में एक बगीचा विकसित करना चाहते हैं जहां जानवर और पक्षियों को संरक्षण मिले.
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मुहिम अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की सोच
राणाराम मुहिम को आगे बढाने के लिए उनके पुत्र विशेक विश्नोई लगातार सक्रिय हैं. वे अमृतादेवी के वृक्ष बचाने की मुहिम को ग्लोबल ग्रीन 363 के नाम से आगे बढ़ा रहे हैं. इसके लिए वे जल्द श्रीलंका जाएंगे. इसको लेकर भारत के विदेश मंत्री से मिल चुके हैं.