जोधपुर. जिले के एमडीएम अस्पताल में डायाफ्रामेटिक हर्निया का एक दुर्लभ केस आया. इस बीमारी में लीवर फेफड़ों की ओर फैलने लगता है. एक 5 साल के बच्चे का अस्पताल में ऑपरेश किया गया है. अब बच्चे को इस दुर्लभ बीमारी से छुटकारा मिलेगा.
इस बीमारी में फेफड़ों के नीचे छेद होने से नवजात बच्चे के लीवर का हिस्सा धीरे-धीरे से बढ़ना शुरू हो जाता है. जब फेफड़ा लगभग पूरा कवर हो जाता है तो सांस में तकलीफ होती है. तब इस बीमारी का पता चलता है. एमडीएम अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक डिपार्टमेंट में ओसियां से आया एक 5 साल का बच्चा इसी बीमारी से जूझ रहा था.
कार्डियक सर्जन डॉ. सुभाष बलारा ने बच्चे की जांच कराई तो सामने आया कि उसे डायाफ्रामेटिक हर्निया के साथ-साथ आंतों का डुप्लीकेशन भी है. इसके बाद बच्चे का ऑपरेशन प्लान किया गया. जिसके तहत दो प्रोसीजर किए गए. ऑपरेशन के बाद बच्चे को लीवर और आंत दोनों की बीमारियों से मुक्त किया गया.
ऑपरेशन के बाद अब यह बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है और जल्द ही इसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी. कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. सुभाष बलारा ने बताया कि डायाफ्रामेटिक हर्निया का मामला दुर्लभ है. यह एक लाख बच्चों में से 20 में पाया जाता है. उसमें भी बायीं तरफ 85 फीसदी और दांयी तरफ 15 फीसदी केस होते हैं. इसके अलावा आंतों की डुप्लीकेशन सिस्ट (गांठ) की बीमारी भी 25 हजार में से किसी एक को होती है.
इस बच्चे को दोनों बीमारियां थीं, जो इसे दुर्लभतम मामला बनाती है. इसमें आंत का डुप्लीकेशन होकर लीवर का फेफड़ों तक पहुंच जाना विश्व का दुर्लभतम मामला है. अगर ऑपरेशन नहीं किया जाता तो गांठ में कैसर बनने की संभावना थी. इस जटिल ऑपरेशन में डॉ. सुभाष बलारा के अलावा उनकी टीम में डाॅ. अवधेश शर्मा, डाॅ. विवेक राजदान, डाॅ. राकेश कर्नावट, डाॅ. चंदा खत्री, डाॅ. शिल्पी राड़ा और स्टाफ संगीता एवं लीला ने सहयोग किया.
अब मिलेगी छुट्टी
डॉ. बलारा ने बताया कि इस तरह के मामले में बच्चे का शरीर जैसे-जैसे विकसित होता है और उसकी खाने की क्षमता बढ़ती है तो लीवर अंदर फैलने लगता है. लीवर को जहां जगह मिलती है, वह उसी तरफ बढ़ जाता है. यह बच्चा भी इसी बीमारी से ग्रसित था. उसका लीवर फेफड़ों में लगभग 85 फ़ीसदी तक घुस गया था. 23 जुलाई को बच्चे की सर्जरी की गई, इसके बाद लगातार ऑब्जरवेशन रखा गया. अब वह पूरी तरह से ठीक है. उसे जल्दी अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी.