जोधपुर. राजस्थान राज्य सूचना आयोग ने निर्धारित किया है कि सूचना का अधिकार के तहत महाविद्यालय-विश्वविद्यालय परीक्षा में जांची गई उत्तर-पुस्तिकाओं की सत्यापित प्रति देने के लिए आवेदक विद्यार्थियों से आरटीआई नियमों से अधिक शुल्क नहीं ले सकता. राज्य सूचना आयुक्त लक्ष्मण सिंह ने लाचू मेमोरियल कॉलेज ऑफ साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी के छात्र किशन गहलोत की द्वितीय अपील स्वीकार करते हुए साफ कहा कि प्रत्यर्थी ने उत्तर-पुस्तिका की प्रति के लिए असाधारण रूप से अधिक शुल्क निर्धारित किया हुआ है, जो कि सर्वथा अनुचित है, इसलिए प्रत्यर्थी को 30 दिवस की अधि में सूचना का अधिकार नियम, 2005 के नियम 4 के अनुरूप सूचना शुल्क प्राप्त कर वांछित सूचनाएं अधिप्रमाणित और हस्ताक्षरित कर उपलब्ध करवाने का आदेश दिया जाता है.
बता दें, राज्य सरकार की ओर से बनाए गए राजस्थान सूचना का अधिकार नियम, 2005 के नियम-4 के तहत ए-4 आकार के प्रत्येक पृष्ठ के लिए दो रुपए का शुल्क निर्धारित किया हुआ है. बीएससी के छात्र किशन गहलोत ने जब आरटीआई लगाई तो कॉलेज ने उसका जवाब तक नहीं दिया. आवेदक की ओर से अधिवक्ता रजाक के हैदर और अजीत सिंह ने राजस्थान राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील प्रस्तुत करते हुए आयोग को बताया कि लाचू कॉलेज यूजीसी एक्ट की धारा 2 (एफ) और 12 (बी) के तहत मान्यता प्राप्त है और जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर से सम्बद्ध होने के साथ-साथ स्वयं स्वायत्तशासी (ऑटोनोमस) महाविद्यालय है. उक्त स्वायत्तशासी महाविद्यालय समय-समय पर भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन संचालित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अनुदान लेता रहा है.
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हाल ही में एक अन्य प्रकरण में सूचना आयोग ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि लाचू कॉलेज ने राज्य से प्रचलित मूल्य रियायती दर पर भूमि प्राप्त की है. इस कारण कहा जा सकता है कि संस्था ने राज्य से सहायता प्राप्त की है. ऐसे में प्रत्यर्थी संस्थान अधिनियम की धारा 2(एच) के तहत लोक प्राधिकरण की परिधि में आती है, भले ही प्रत्यर्थी की संस्थान राज्य की परिभाषा में नहीं आती. उन्होंने तर्क दिया कि संस्था के कार्य की प्रकृति यानी शिक्षण व्यवस्था का सरोकार सीधे तौर पर नागरिकों से है, इसलिए उसे किसी भी तरह से आरटीआई से मुक्त नहीं रखा जा सकता. यह छात्र-छात्राओं और कार्मिकों के साथ विभेदकारी होने के अलावा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समता के अधिकार का भी हनन होगा. अपील दर्ज होने के बाद कॉलेज ने एक हजार रुपए का शुल्क अदा करने पर उत्तर-पुस्तिका की प्रति देने के नियम का उल्लेख किया है, लेकिन यह शुल्क ना केवल अधिक है बल्कि आरटीआई नियमों के भी विपरीत है. राजस्थान हाईकोर्ट की खण्डपीठ ने अलका मटोरिया के प्रकरण में आरटीआई नियमों से अधिक शुल्क लेने को विधि विरुद्ध बताया है.
कॉलेज का तर्क
लाचू कॉलेज की ओर से सूचना आयोग को भेजे जवाब में कहा गया कि महाविद्यालय को यूजीसी से ऑटोनोमस कॉलेज का दर्जा प्राप्त हुआ है. ऑटोनोमस कॉलेज की स्कीम के तहत महाविद्यालय को स्वयं के पेपर बनाने और उस परीक्षा की उत्तर-पत्रिका के मूल्यांकन की अनुमति होती है. इसी स्कीम के तहत महाविद्यालय की एक वित्त समिति होती है, जिसके द्वारा परीक्षा से सम्बन्धित सभी प्रकार का शुल्क निर्धारण होता है. इस वित्त समिति द्वारा लिए गए निर्णय को महाविद्यालय की सर्वोच्च समिति बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट (बीओएम) द्वारा अप्रूव किया जाता है. ऑटोनोमस कॉलेज की स्कीम के नियमानुसार/निर्णयानुसार एवं वित्त समिति द्वारा निर्धारित शुल्क के अनुसार विद्यार्थी एक हजार रुपए का शुल्क जमा करवाकर अपनी उत्तर-पत्रिका को देख सकता है और अगर वो चाहे तो उस उत्तर-पत्रिका की सत्यापित प्रति भी प्राप्त कर सकता है.