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पैरोल से फरार कैदी को ओपन एयर कैंप का नहीं मिलेगा लाभ, विधिक प्रश्न पर तीन जजों की वृहद पीठ ने सुनाया फैसला

राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर मुख्यपीठ में तीन जजों वरिष्ठ न्यायाधीश विजय विश्नोई, न्यायाधीश पुष्पेन्द्र सिंह भाटी और न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की वृहत पीठ ने विधिक प्रश्न क्या पैरोल से फरार कैदी को ओपन एयर कैंप का लाभ दिया जाए या नहीं, पर लंबी सुनवाई की.

rajasthan high court
राजस्थान हाईकोर्ट
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Published : Aug 27, 2021, 10:51 PM IST

जोधपुर. विधि के जानकारी विशेष अधिवक्ताओं ने भी पक्ष रखा. वहीं, राज्य सरकार की ओर से एएजी फरजंद अली ने पक्ष रखा और सभी को सुनने के बाद वृहत पीठ ने कहा कि पैरोल अच्छे आचरण के लिए दिया गया एक विशेषाधिकार है, लेकिन यदि कैदी उसका दुरूपयोग करता है और पैरोल अवधि में भाग जाता है तो उस पर कड़ा रूख अपनाना न्याय संगत होगा. ऐसी स्थिती में उसे सामान्यता खुली जेल में भेजने से मना किया जा सकता है.

दरअसल, राजस्थान उच्च न्यायालय की दो अलग-अलग खंडपीठों ने खुली जेल में जाने के कैदियों के अधिकारी को लेके विपरीत मत होने पर मामला वृहत पीठ को भेजा गया था. राजस्थान उच्च न्यायालय में गजाराम उर्फ गजेन्द्र सिंह की खंडपीठ में पेश एक याचिका को खंडपीठ ने इस विधिक प्रश्न के लिए वृहत पीठ को मामला रेफर कर दिया था. इस मामले में वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा व न्यायाधीश रामेश्वर व्यास की खंडपीठ ने 5 मार्च 2021 को विधिक प्रश्न के लिए अपने विस्तृत आदेश के जरिए वृहत पीठ को मामला रेफर किया था.

पढ़ें : भंवरी देवी मामला : गवाही के लिए FBI एक्सपर्ट अंबर बी कार को समन जारी...7 सितंबर को अंबर हाजिर हो!

मामले में याचिकाकर्ता गजाराम की ओर से अधिवक्ता कालूराम भाटी ने एक याचिका खंडपीठ के समक्ष पेश की थी. गजाराम हत्या के मामले में जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. इस दौरान उसे पैरोल का लाभ दिया गया, लेकिन पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद उसने जेल में सरेंडर नहीं किया और फरार हो गया था. पुलिस ने करीब 6 साल 10 माह की मशक्कत के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया था. उसने ओपन एयर कैंप के लिए आवेदन किया, लेकिन उसे यह कहते हुए कमेटी ने खारिज कर दिया कि पैरोल अवधि के बाद वह फरार हो गया था. इसीलिए उसे ओपन एयर कैंप का लाभ नहीं दिया जाएगा.

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस प्रश्न को तय करने के लिए वृहत पीठ को मामला रेफर कर दिया था. वृहत पीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से एएजी फरजंद अली व उनके सहयोगी अभिषेक पुरोहित ने पक्ष रखा और कहा कि अदालत द्वारा किसी मामले में सजा का वारंट जारी किया है तो वह तो चलता ही रहेगा और इसी बीच पैरोल का लाभ दिया जाता है. ऐसे में कोई पैरोल में ही भाग जाए तो ये हिरासत से भागने के समान ही है. ऐसे में उसे लाभ कैसे दिया जाए. वहीं, दूसरी तरफ अधिवक्ता अशोक छंगाणी, कालूराम भाटी, रमनदीप सिंह, गजेन्द्र सिंह बुटाटी, निखल डुंगावत, दीपेन्द्र राजपुरोहित ने तर्क देते हुए पक्ष रखा.

जोधपुर. विधि के जानकारी विशेष अधिवक्ताओं ने भी पक्ष रखा. वहीं, राज्य सरकार की ओर से एएजी फरजंद अली ने पक्ष रखा और सभी को सुनने के बाद वृहत पीठ ने कहा कि पैरोल अच्छे आचरण के लिए दिया गया एक विशेषाधिकार है, लेकिन यदि कैदी उसका दुरूपयोग करता है और पैरोल अवधि में भाग जाता है तो उस पर कड़ा रूख अपनाना न्याय संगत होगा. ऐसी स्थिती में उसे सामान्यता खुली जेल में भेजने से मना किया जा सकता है.

दरअसल, राजस्थान उच्च न्यायालय की दो अलग-अलग खंडपीठों ने खुली जेल में जाने के कैदियों के अधिकारी को लेके विपरीत मत होने पर मामला वृहत पीठ को भेजा गया था. राजस्थान उच्च न्यायालय में गजाराम उर्फ गजेन्द्र सिंह की खंडपीठ में पेश एक याचिका को खंडपीठ ने इस विधिक प्रश्न के लिए वृहत पीठ को मामला रेफर कर दिया था. इस मामले में वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा व न्यायाधीश रामेश्वर व्यास की खंडपीठ ने 5 मार्च 2021 को विधिक प्रश्न के लिए अपने विस्तृत आदेश के जरिए वृहत पीठ को मामला रेफर किया था.

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मामले में याचिकाकर्ता गजाराम की ओर से अधिवक्ता कालूराम भाटी ने एक याचिका खंडपीठ के समक्ष पेश की थी. गजाराम हत्या के मामले में जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. इस दौरान उसे पैरोल का लाभ दिया गया, लेकिन पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद उसने जेल में सरेंडर नहीं किया और फरार हो गया था. पुलिस ने करीब 6 साल 10 माह की मशक्कत के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया था. उसने ओपन एयर कैंप के लिए आवेदन किया, लेकिन उसे यह कहते हुए कमेटी ने खारिज कर दिया कि पैरोल अवधि के बाद वह फरार हो गया था. इसीलिए उसे ओपन एयर कैंप का लाभ नहीं दिया जाएगा.

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस प्रश्न को तय करने के लिए वृहत पीठ को मामला रेफर कर दिया था. वृहत पीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से एएजी फरजंद अली व उनके सहयोगी अभिषेक पुरोहित ने पक्ष रखा और कहा कि अदालत द्वारा किसी मामले में सजा का वारंट जारी किया है तो वह तो चलता ही रहेगा और इसी बीच पैरोल का लाभ दिया जाता है. ऐसे में कोई पैरोल में ही भाग जाए तो ये हिरासत से भागने के समान ही है. ऐसे में उसे लाभ कैसे दिया जाए. वहीं, दूसरी तरफ अधिवक्ता अशोक छंगाणी, कालूराम भाटी, रमनदीप सिंह, गजेन्द्र सिंह बुटाटी, निखल डुंगावत, दीपेन्द्र राजपुरोहित ने तर्क देते हुए पक्ष रखा.

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