ETV Bharat / city

कारिगल विजय दिवस: पाक सैनिकों की बर्बरता और यातनाएं सहीं, लेकिन सिर नहीं झुकाया...ऐसे थे शहीद भीखाराम जाट

हर साल 26 जुलाई को कारिगल विजय दिवस (Karigal Victory Day) मनाकर देश के उन जवानों की शहादत को सलामी देते हैं जिन्होंने पाकिस्तान के साथ युद्ध में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए हैं. आज हम आपको ऐसे ही एक जांबाज की वीरता और उसके परिवार से रूबरू कराने जा रहे हैं. जी हां, लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की टोली में शामिल मारवाड़ के भीखाराम जाट ने दुश्मनों के हाथ लगने के बाद ढेरों यातनाएं सहीं लेकिन पाक सैनिकों के सामने सिर नहीं झुकाया औऱ शहीद हो गए. उनकी पत्नी भीखाराम के आखिरी पत्र को आज भी सहेज कर रखी हुई हैं. पत्नी कहती हैं कि उन्हें सेना से बहुत लगाव था. सेने के लोग आज भी हमें अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं और हर जरूरत पर साथ खड़े होते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

story of martyrdom of soldier Bhikharam Jatt
शहीद भीखाराम जाट
author img

By

Published : Jul 26, 2022, 6:03 AM IST

Updated : Jul 26, 2022, 10:40 AM IST

जोधपुर. आज देश कारगिल युद्ध विजय दिवस (Karigal Victory Day) मना रहा है. इस युद्ध में पाक सेना का मुकाबला कैप्टन सौरभ कालिया की टीम के जिन छह जवानों ने किया था, उनमें एक मारवाड़ के भीखाराम जाट भी शामिल थे. कैप्टन सौरभ कालिया की टीम में शामिल बाड़मेर के भीखाराम व अन्य को पाकिस्तान ने अमानवीय याताएं दी थीं. उनके शरीर के अंग भंग कर दिए थे. बाड़मेर के भीखाराम की उम्र उस समय सिर्फ 22 साल ही थी.

भीखाराम के परिवार के सदस्य रक्षा सेवा में थे और पिता भी आरएसी में थे. इसलिए भीखाराम भी शुरू से ही सेना में ही भर्ती होना चाहते थे. शहादत से 7 माह पहले वह छुट्टी पर आए थे. जून 1999 में पिता के सेवानिवृत्त होने पर छुट्टी लेकर आने की सूचना पत्र से दी थी, लेकिन वह पत्र ही उनकी आखिरी निशानी बन गया. वह तो नहीं आए लेकिन 11 जून 1999 को उनके शहीद होने की खबर जरूर आई. भीखाराम की पत्नी वीरांगना भंवरी देवी का कहना है कि सेना आज भी हमारा ख्याल रखती है. हमें परिवार का हिस्सा मानती है.

वीरांगना भंवरी देवी

पढ़ें. 'कारगिल विजय दिवस' : राजनाथ सिंह आज जम्मू दौरे पर, आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले भी होंगे साथ

बीते सालों में जब भी परेशानी हुई तो हमारी सुनवाई हुई. यहां तक कि हाल ही में कोरोना के दौर में भी सेना ने हमसे संपर्क कर कहा था कि कोई परेशानी हो तो सूचना दें. भंवरी देवी का कहना है सेना का ऐसा परिवार है जिससे कभी रिश्ता खत्म नहीं हो सकता. वह युवाओं को देश सेवा में जाने के लिए प्रेरित करती है. उनके बेटे ने भी एनडीए की तैयारी कर सेना में जाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका. भंवरी देवी को शहीद के नाम से जोधपुर में पेट्रोल पंप आवंटित हुआ है जिसका संचालन वह खुद और पुत्र भूपेंद्र करता है.

पड़ोस में टीवी से जानकारी मिली
शहीद की वीरांगना का कहना है कि उस समय में फोन या टीवी का इतना चलन नहीं था. परिवार के सदस्यों को सौरभ कालिया के शहीद होने की जानकारी मिली थी. मुझे तो गांव लेकर चले गए. वहां पहुंचने पर जब पता चला तब मैं बेहोश हो गई थी. दो दिन क्या हुआ मुझे पता ही नहीं चला. उनका सात महीने पहले जो पत्र आया था वह एक मात्र अंतिम संपर्क था. वे हमेशा पहले सेना को महत्व देते थे. परिवार के सदस्य कहते थे कि पुलिस में नौकरी कर लो लेकिन वे नहीं माने. उनका कहना था कि सेना का कोई मुकाबला नहीं कर सकता. इसलिए वे सेना में चले गए. उनका मानना था कि जो ईमानदारी सेना में होती है वह कहीं नहीं होती है. सेना में शहादत देने वालों में फर्क नहीं होता है. सभी के परिवारों को समान सम्मान मिलता है.

पढ़ें. उधमपुर सैन्य स्टेशन में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया गया कारगिल दिवस

अग्निवीर का चार साल बहुत कम, सरकार को बढ़ाना चाहिए समय
सेना को लेकर युवाओं का जज्बा हमेशा मजबूत रहा है. भंवरी देवी कहती हैं कि जिसे सेना में जाना होता है वह कुछ नहीं सोचता है. अगर किसी परिवार का बेटा या भाई सेना में जाता है तो अपने आप को समर्पित कर देता है. सेना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है. देश को भी उन्हें मौका देना चाहिए. वह सेना में जाएं कुछ सीखें और लोगों के लिए प्रेरणा बन सकें. परिवार व गांव का नाम हो लेकिन चार साल की नौकरी मायने नहीं रखती है. समय अवधि बढ़नी चाहिए. चार साल में कोई क्या सीखेगा और वापस आकर क्या प्रेरणा देगा. वह कहती हैं कि वर्तमान के समय में बच्चों को लेकर अभिभावकों को थोड़ा सजग रहना चाहिए. उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखें जिससे वह अपनी बात उनके साथ खुलकर कर सकें.

शरीर पर दिखी थीं यातनाएं
कारिगल युद्ध 3 मई 1999 को शुरू हुआ था. इस दौरान ही 14 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया की अगुवाई में छह जवान एलओसी के पास स्थित काकसर गांव गए. इसमें भीखाराम के अलावा चार जवान भी थे . उनको सूचना मिली थी कि कुछ घुसपैठिये एलओसी के अंदर चुके हैं. इस पर वे टीम के साथ घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए गए. दोनों तरफ से भीषण मुकाबला हुआ लेकिन जवानों को घुसपैठियों ने पकड़ लिया. इस बीच युद्ध भी तेज हो गया. भारत की सेना पाक सैनिकों व घुसपैठियों को मुंह तोड़ जवाब दे रही थी. अपने गायब हुए सैनिकों को लेकर भारत ने पाकिस्तान से बात की लेकिन उन्होंने जानकारी से इनकार कर दिया.

इस दौरान घुसपैठियों ने कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी टीम के साथियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया. मानसिक और शारीरिक पीड़ा देते हुए उनकी हत्या कर दी. इसके बाद 9 जून को छह शव भारत को सौंपे गए थे. छह जवानों के इस अमर बलिदान को लेकर बाड़मेर के भूरचंद जैन ने कारगिल हीरों के नाम से एक किताब लिखी जिसमें बताया कि जब शव गांव आया तो पाकिस्तान की ओर से दी गई यातानाएं साफ नजर आ रहीं थीं. शरीर के अंग काटे गए थे. जगह-जगह पर सिगरेट से दागने के निशान भी थे.

चित्तौड़गढ़ में 1 लाख 30 हजार घरों पर तिरंगा फहराने का प्रस्ताव
आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त तक शहर से लेकर गांव तक 130000 घरों पर तिरंगा झंडा फहराना का प्रस्ताव है. इसके तहत हर ग्राम पंचायत में 600 झंडे का लक्ष्य रखा गया है. महोत्सव को लेकर अतिरिक्त जिला कलेक्टर गीतेश श्री मालवीय ने आज जिला विकास अभिकरण सभागार में जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक कर अब तक की तैयारियों की समीक्षा की और आवश्यक दिशा निर्देश दिए. अतिरिक्त जिला कलक्टर ने जिले में हर घर झंडा कार्यक्रम को लेकर नगर परिषद, यूआईटी सहित अन्य विभागों को जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में 600 झंडे लगाने का लक्ष्य है.

इसके साथ ही चित्तौड़गढ़ मुख्यालय व अन्य नगरपालिका क्षेत्रों में भी लक्ष्य आवंटित किए गए हैं. इस कार्यक्रम के माध्यम से नई पीढ़ी में देशभक्ति का संचार होगा. इसके साथ ही हर राजकीय कार्यालय और इमारत में भी हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत झंडा लगाने के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि हर घर झंडा कार्यक्रम में पूरी गरीमा और सम्मान के साथ झंडा लगाया जाए और 15 अगस्त के बाद ससम्मान झंडा उतारा जाए.

जोधपुर. आज देश कारगिल युद्ध विजय दिवस (Karigal Victory Day) मना रहा है. इस युद्ध में पाक सेना का मुकाबला कैप्टन सौरभ कालिया की टीम के जिन छह जवानों ने किया था, उनमें एक मारवाड़ के भीखाराम जाट भी शामिल थे. कैप्टन सौरभ कालिया की टीम में शामिल बाड़मेर के भीखाराम व अन्य को पाकिस्तान ने अमानवीय याताएं दी थीं. उनके शरीर के अंग भंग कर दिए थे. बाड़मेर के भीखाराम की उम्र उस समय सिर्फ 22 साल ही थी.

भीखाराम के परिवार के सदस्य रक्षा सेवा में थे और पिता भी आरएसी में थे. इसलिए भीखाराम भी शुरू से ही सेना में ही भर्ती होना चाहते थे. शहादत से 7 माह पहले वह छुट्टी पर आए थे. जून 1999 में पिता के सेवानिवृत्त होने पर छुट्टी लेकर आने की सूचना पत्र से दी थी, लेकिन वह पत्र ही उनकी आखिरी निशानी बन गया. वह तो नहीं आए लेकिन 11 जून 1999 को उनके शहीद होने की खबर जरूर आई. भीखाराम की पत्नी वीरांगना भंवरी देवी का कहना है कि सेना आज भी हमारा ख्याल रखती है. हमें परिवार का हिस्सा मानती है.

वीरांगना भंवरी देवी

पढ़ें. 'कारगिल विजय दिवस' : राजनाथ सिंह आज जम्मू दौरे पर, आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले भी होंगे साथ

बीते सालों में जब भी परेशानी हुई तो हमारी सुनवाई हुई. यहां तक कि हाल ही में कोरोना के दौर में भी सेना ने हमसे संपर्क कर कहा था कि कोई परेशानी हो तो सूचना दें. भंवरी देवी का कहना है सेना का ऐसा परिवार है जिससे कभी रिश्ता खत्म नहीं हो सकता. वह युवाओं को देश सेवा में जाने के लिए प्रेरित करती है. उनके बेटे ने भी एनडीए की तैयारी कर सेना में जाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका. भंवरी देवी को शहीद के नाम से जोधपुर में पेट्रोल पंप आवंटित हुआ है जिसका संचालन वह खुद और पुत्र भूपेंद्र करता है.

पड़ोस में टीवी से जानकारी मिली
शहीद की वीरांगना का कहना है कि उस समय में फोन या टीवी का इतना चलन नहीं था. परिवार के सदस्यों को सौरभ कालिया के शहीद होने की जानकारी मिली थी. मुझे तो गांव लेकर चले गए. वहां पहुंचने पर जब पता चला तब मैं बेहोश हो गई थी. दो दिन क्या हुआ मुझे पता ही नहीं चला. उनका सात महीने पहले जो पत्र आया था वह एक मात्र अंतिम संपर्क था. वे हमेशा पहले सेना को महत्व देते थे. परिवार के सदस्य कहते थे कि पुलिस में नौकरी कर लो लेकिन वे नहीं माने. उनका कहना था कि सेना का कोई मुकाबला नहीं कर सकता. इसलिए वे सेना में चले गए. उनका मानना था कि जो ईमानदारी सेना में होती है वह कहीं नहीं होती है. सेना में शहादत देने वालों में फर्क नहीं होता है. सभी के परिवारों को समान सम्मान मिलता है.

पढ़ें. उधमपुर सैन्य स्टेशन में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया गया कारगिल दिवस

अग्निवीर का चार साल बहुत कम, सरकार को बढ़ाना चाहिए समय
सेना को लेकर युवाओं का जज्बा हमेशा मजबूत रहा है. भंवरी देवी कहती हैं कि जिसे सेना में जाना होता है वह कुछ नहीं सोचता है. अगर किसी परिवार का बेटा या भाई सेना में जाता है तो अपने आप को समर्पित कर देता है. सेना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है. देश को भी उन्हें मौका देना चाहिए. वह सेना में जाएं कुछ सीखें और लोगों के लिए प्रेरणा बन सकें. परिवार व गांव का नाम हो लेकिन चार साल की नौकरी मायने नहीं रखती है. समय अवधि बढ़नी चाहिए. चार साल में कोई क्या सीखेगा और वापस आकर क्या प्रेरणा देगा. वह कहती हैं कि वर्तमान के समय में बच्चों को लेकर अभिभावकों को थोड़ा सजग रहना चाहिए. उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखें जिससे वह अपनी बात उनके साथ खुलकर कर सकें.

शरीर पर दिखी थीं यातनाएं
कारिगल युद्ध 3 मई 1999 को शुरू हुआ था. इस दौरान ही 14 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया की अगुवाई में छह जवान एलओसी के पास स्थित काकसर गांव गए. इसमें भीखाराम के अलावा चार जवान भी थे . उनको सूचना मिली थी कि कुछ घुसपैठिये एलओसी के अंदर चुके हैं. इस पर वे टीम के साथ घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए गए. दोनों तरफ से भीषण मुकाबला हुआ लेकिन जवानों को घुसपैठियों ने पकड़ लिया. इस बीच युद्ध भी तेज हो गया. भारत की सेना पाक सैनिकों व घुसपैठियों को मुंह तोड़ जवाब दे रही थी. अपने गायब हुए सैनिकों को लेकर भारत ने पाकिस्तान से बात की लेकिन उन्होंने जानकारी से इनकार कर दिया.

इस दौरान घुसपैठियों ने कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी टीम के साथियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया. मानसिक और शारीरिक पीड़ा देते हुए उनकी हत्या कर दी. इसके बाद 9 जून को छह शव भारत को सौंपे गए थे. छह जवानों के इस अमर बलिदान को लेकर बाड़मेर के भूरचंद जैन ने कारगिल हीरों के नाम से एक किताब लिखी जिसमें बताया कि जब शव गांव आया तो पाकिस्तान की ओर से दी गई यातानाएं साफ नजर आ रहीं थीं. शरीर के अंग काटे गए थे. जगह-जगह पर सिगरेट से दागने के निशान भी थे.

चित्तौड़गढ़ में 1 लाख 30 हजार घरों पर तिरंगा फहराने का प्रस्ताव
आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त तक शहर से लेकर गांव तक 130000 घरों पर तिरंगा झंडा फहराना का प्रस्ताव है. इसके तहत हर ग्राम पंचायत में 600 झंडे का लक्ष्य रखा गया है. महोत्सव को लेकर अतिरिक्त जिला कलेक्टर गीतेश श्री मालवीय ने आज जिला विकास अभिकरण सभागार में जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक कर अब तक की तैयारियों की समीक्षा की और आवश्यक दिशा निर्देश दिए. अतिरिक्त जिला कलक्टर ने जिले में हर घर झंडा कार्यक्रम को लेकर नगर परिषद, यूआईटी सहित अन्य विभागों को जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में 600 झंडे लगाने का लक्ष्य है.

इसके साथ ही चित्तौड़गढ़ मुख्यालय व अन्य नगरपालिका क्षेत्रों में भी लक्ष्य आवंटित किए गए हैं. इस कार्यक्रम के माध्यम से नई पीढ़ी में देशभक्ति का संचार होगा. इसके साथ ही हर राजकीय कार्यालय और इमारत में भी हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत झंडा लगाने के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि हर घर झंडा कार्यक्रम में पूरी गरीमा और सम्मान के साथ झंडा लगाया जाए और 15 अगस्त के बाद ससम्मान झंडा उतारा जाए.

Last Updated : Jul 26, 2022, 10:40 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.