जोधपुर. आज देश कारगिल युद्ध विजय दिवस (Karigal Victory Day) मना रहा है. इस युद्ध में पाक सेना का मुकाबला कैप्टन सौरभ कालिया की टीम के जिन छह जवानों ने किया था, उनमें एक मारवाड़ के भीखाराम जाट भी शामिल थे. कैप्टन सौरभ कालिया की टीम में शामिल बाड़मेर के भीखाराम व अन्य को पाकिस्तान ने अमानवीय याताएं दी थीं. उनके शरीर के अंग भंग कर दिए थे. बाड़मेर के भीखाराम की उम्र उस समय सिर्फ 22 साल ही थी.
भीखाराम के परिवार के सदस्य रक्षा सेवा में थे और पिता भी आरएसी में थे. इसलिए भीखाराम भी शुरू से ही सेना में ही भर्ती होना चाहते थे. शहादत से 7 माह पहले वह छुट्टी पर आए थे. जून 1999 में पिता के सेवानिवृत्त होने पर छुट्टी लेकर आने की सूचना पत्र से दी थी, लेकिन वह पत्र ही उनकी आखिरी निशानी बन गया. वह तो नहीं आए लेकिन 11 जून 1999 को उनके शहीद होने की खबर जरूर आई. भीखाराम की पत्नी वीरांगना भंवरी देवी का कहना है कि सेना आज भी हमारा ख्याल रखती है. हमें परिवार का हिस्सा मानती है.
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बीते सालों में जब भी परेशानी हुई तो हमारी सुनवाई हुई. यहां तक कि हाल ही में कोरोना के दौर में भी सेना ने हमसे संपर्क कर कहा था कि कोई परेशानी हो तो सूचना दें. भंवरी देवी का कहना है सेना का ऐसा परिवार है जिससे कभी रिश्ता खत्म नहीं हो सकता. वह युवाओं को देश सेवा में जाने के लिए प्रेरित करती है. उनके बेटे ने भी एनडीए की तैयारी कर सेना में जाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका. भंवरी देवी को शहीद के नाम से जोधपुर में पेट्रोल पंप आवंटित हुआ है जिसका संचालन वह खुद और पुत्र भूपेंद्र करता है.
पड़ोस में टीवी से जानकारी मिली
शहीद की वीरांगना का कहना है कि उस समय में फोन या टीवी का इतना चलन नहीं था. परिवार के सदस्यों को सौरभ कालिया के शहीद होने की जानकारी मिली थी. मुझे तो गांव लेकर चले गए. वहां पहुंचने पर जब पता चला तब मैं बेहोश हो गई थी. दो दिन क्या हुआ मुझे पता ही नहीं चला. उनका सात महीने पहले जो पत्र आया था वह एक मात्र अंतिम संपर्क था. वे हमेशा पहले सेना को महत्व देते थे. परिवार के सदस्य कहते थे कि पुलिस में नौकरी कर लो लेकिन वे नहीं माने. उनका कहना था कि सेना का कोई मुकाबला नहीं कर सकता. इसलिए वे सेना में चले गए. उनका मानना था कि जो ईमानदारी सेना में होती है वह कहीं नहीं होती है. सेना में शहादत देने वालों में फर्क नहीं होता है. सभी के परिवारों को समान सम्मान मिलता है.
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अग्निवीर का चार साल बहुत कम, सरकार को बढ़ाना चाहिए समय
सेना को लेकर युवाओं का जज्बा हमेशा मजबूत रहा है. भंवरी देवी कहती हैं कि जिसे सेना में जाना होता है वह कुछ नहीं सोचता है. अगर किसी परिवार का बेटा या भाई सेना में जाता है तो अपने आप को समर्पित कर देता है. सेना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है. देश को भी उन्हें मौका देना चाहिए. वह सेना में जाएं कुछ सीखें और लोगों के लिए प्रेरणा बन सकें. परिवार व गांव का नाम हो लेकिन चार साल की नौकरी मायने नहीं रखती है. समय अवधि बढ़नी चाहिए. चार साल में कोई क्या सीखेगा और वापस आकर क्या प्रेरणा देगा. वह कहती हैं कि वर्तमान के समय में बच्चों को लेकर अभिभावकों को थोड़ा सजग रहना चाहिए. उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखें जिससे वह अपनी बात उनके साथ खुलकर कर सकें.
शरीर पर दिखी थीं यातनाएं
कारिगल युद्ध 3 मई 1999 को शुरू हुआ था. इस दौरान ही 14 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया की अगुवाई में छह जवान एलओसी के पास स्थित काकसर गांव गए. इसमें भीखाराम के अलावा चार जवान भी थे . उनको सूचना मिली थी कि कुछ घुसपैठिये एलओसी के अंदर चुके हैं. इस पर वे टीम के साथ घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए गए. दोनों तरफ से भीषण मुकाबला हुआ लेकिन जवानों को घुसपैठियों ने पकड़ लिया. इस बीच युद्ध भी तेज हो गया. भारत की सेना पाक सैनिकों व घुसपैठियों को मुंह तोड़ जवाब दे रही थी. अपने गायब हुए सैनिकों को लेकर भारत ने पाकिस्तान से बात की लेकिन उन्होंने जानकारी से इनकार कर दिया.
इस दौरान घुसपैठियों ने कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी टीम के साथियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया. मानसिक और शारीरिक पीड़ा देते हुए उनकी हत्या कर दी. इसके बाद 9 जून को छह शव भारत को सौंपे गए थे. छह जवानों के इस अमर बलिदान को लेकर बाड़मेर के भूरचंद जैन ने कारगिल हीरों के नाम से एक किताब लिखी जिसमें बताया कि जब शव गांव आया तो पाकिस्तान की ओर से दी गई यातानाएं साफ नजर आ रहीं थीं. शरीर के अंग काटे गए थे. जगह-जगह पर सिगरेट से दागने के निशान भी थे.
चित्तौड़गढ़ में 1 लाख 30 हजार घरों पर तिरंगा फहराने का प्रस्ताव
आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त तक शहर से लेकर गांव तक 130000 घरों पर तिरंगा झंडा फहराना का प्रस्ताव है. इसके तहत हर ग्राम पंचायत में 600 झंडे का लक्ष्य रखा गया है. महोत्सव को लेकर अतिरिक्त जिला कलेक्टर गीतेश श्री मालवीय ने आज जिला विकास अभिकरण सभागार में जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक कर अब तक की तैयारियों की समीक्षा की और आवश्यक दिशा निर्देश दिए. अतिरिक्त जिला कलक्टर ने जिले में हर घर झंडा कार्यक्रम को लेकर नगर परिषद, यूआईटी सहित अन्य विभागों को जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में 600 झंडे लगाने का लक्ष्य है.
इसके साथ ही चित्तौड़गढ़ मुख्यालय व अन्य नगरपालिका क्षेत्रों में भी लक्ष्य आवंटित किए गए हैं. इस कार्यक्रम के माध्यम से नई पीढ़ी में देशभक्ति का संचार होगा. इसके साथ ही हर राजकीय कार्यालय और इमारत में भी हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत झंडा लगाने के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि हर घर झंडा कार्यक्रम में पूरी गरीमा और सम्मान के साथ झंडा लगाया जाए और 15 अगस्त के बाद ससम्मान झंडा उतारा जाए.