जोधपुर. शहर के रातानाड़ा थाना पुलिस ने झारखंड के नक्सली क्षेत्र से दो साइबर ठगों को गिरफ्तार किया है. रातानाड़ा थानाधिकारी भरत रावत के अनुसार 25 मई को रवि बिकोदिया ने उसके साथ फ्रॉड होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. साइबर ठगों ने पीड़ित से 8 लाख से अधिक की राशि ऐंठ ली थी. पुलिस ने मामले की जांच के बाद साइबर सेल की सहायता से आरोपियों को ट्रैक कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
परिवादी ने बताया कि उसके फोन पर एसबीआई से पैन कार्ड अपडेट करने का मैसेज मिला था. उसने उस लिंक को ओपन किया तो एसबीआई की वेबसाइट खुल गई जिससे नेट बैकिंग होती है. इस दौरान एक कॉल भी आ गया जो उसे निर्देश देने लगा. इसके बाद रवि के पास पहला ओटीपी आया जिसके सबमिट करते ही उसके खाते से तीन लाख (Cyber thugs arrested from Jharkhand) रुपये निकल गए. फोन पर मौजूद ठग ने कहा कि ये गलती से हुआ है, रिर्टन हो जाएगा. उसने दूसरा ओटीपी डालने की बात कही. परिवादी ने जब दूसरा ओटीपी डाला तो खाते से 5 लाख से ज्यादा रुपए निकलने का मैसेज आया. इस तरह कुल 8 लाख 19 हजार रुपए निकाल लिए गए.
घटना के तुरंत बाद रवि ने रातानाड़ा थाना पुलिस को सूचित किया. पुलिस ने तकनीकी छानबीन की तो पता चला कि आरोपी झारखंड के गिरडिही जिले बेंगाबाद थाना के लोधरातरी गांव में रहता है. इसके लिए एक टीम जोधपुर से रवाना की गई. पुलिस का कहना है कि ठगों का गिरोह कुल 5 से 6 आदमी का होता है. इसमें फर्जी सिम उपलब्ध करवाने से लेकर ठगी गई राशि नकद देने वाले भी होते हैं. 30 से 40 फिसदी रकम नकद देने वालों को ही दी जाती है.
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सात दिन कैंप किया जंगल में: जोधपुर से उपनिरीक्षक कन्हैयालाल, साइबर सेल के एसआई राकेश सिंह के साथ कांस्टेबल ओमाराम, देवाराम और पूनाराम को झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित नक्सली प्रभावित इलाके के लोधरातरी गांव में भेजा गया. यह गांव मुख्य सड़क से 15 किमी अंदर है, ऐसे में कोई भी टीम कार्रवाई के लिए आती है तो आरोपियों को पहले ही पता चल जाता है. आरोपियों में एक शातिर ठग मंटू यादव था, जो पहले भी कई बार पुलिस को चकमा दे चुका था. ऐसे में टीम ने उसी क्षेत्र में कैंप किया. लगातार रेकी करने के बाद 22 वर्षीय मंटू यादव और 24 वर्षीय पप्पू यादव को पकड़ा जा सका. प्रारंभिक जानकारी में पता चला है कि दोनों ने इस ठगी के काम से करोड़ों की सपंति जुटाई है.
सावधान रहें, ऐसे होती है ठगी: इस तरह की ठगी वेब होस्टिंग से होती है. इससे बनाया लिंक व्यक्ति को भेजा जाता है. क्योंकि लिंक बैंक के नाम का होता है, ऐसे में उस लिंक पर क्लिक करते ही बैंक का पेज खुलता है. यह सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन इसी लिंक से फर्जीवाड़ा होता है. जो लिंक बनाया जाता है, वो फिसिंग कोडिंग से बनता है. क्लिक करने वाले को लगता है वो सिक्योर एक्सेस कर रहा है. लेकिन इसी लिंक की मदद से ठग भी उसी वेबसाइट को उसके साथ ही अपने सिस्टम पर एक्सेस कर रहे होते हैं. उनका एक साथी कॉल कर निर्देश देता है. जिससे व्यक्ति भ्रमित होता रहता है और जैसे ही वो ओटीपी सबमिट करता है, खाते से रुपए निकल जाते हैं.