जोधपुर. प्राकृतिक उर्जा स्त्रोत में प्रमुख सौर उर्जा के पूरे देश में हजारों किलो वाट के प्लांट लगे हैं. इन प्लांट में लगने वाली सौलर प्लेट को हमेशा साफ रखना सबसे बडी चुनौती (self cleaning coating for solar panels) है. धूल जमने के साथ साथ व बारिश के दिनों में पानी भी इन प्लेट पर जम जाता है. जिससे इन प्लेट की उत्पादन क्षमता प्रभावित होने का असर विद्युत निर्माण पर भी पडता है. हजारों मेगावाट के ऐसे प्लांट पर लगने वाली प्लेट को साफ करने के लिए अलग से प्रबंध व जतन करने पडते हैं.
लेकिन अब आईआईटी जोधपुर ने सौलर पेनल पर जमने वाली धूल व अन्य कारकों को स्वतः ही हटाने वाली कोटिंग तैयार की है. इसे सेल्फ क्लिनिंग कोटिंग नाम दिया गया है. इस तकनीकी की अवधारणा लोट्सलीफ से ली गई है. यानी की कमल के फूल के पत्ते जो खुद पानी में रहते हैं, लेकिन उन पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती है.
आईआईटी जोधपुर के मेटलर्जिकल एंड मेटेरिअल इंजीनियरिंग विभाग ने यह तकनीक तैयार की है. विभाग में करीब आठ साल से इस पर काम चला, इसके बाद जाकर सफलता मिली है. इस दौरान आईआईटी परिसर के पेनल पर परिक्षण किया गया. एसोसिएट प्रोफेसर डॉ के आर रवि का कहना है कि हमें इसके लिए केंद्र सरकार की कंपनी ओएनजीएसी ने फडिंग दी थी. इसलिए इसका पेटेंट फाइल भी ओएनजीसी ने किया है. इस तकनीक को विकसित करने के लिए मेटल थ्रीडी प्रिंटर का उपयोग भी किया गया है. ओएनजीसी के वित्तीय सहयोग से यह तकनीक तैयार की गई है. जिसका पेटेंट भी ओएनजीसी ने फाइल कर दिया गया है.
एक से डेढ़ साल चलेगी कोटिंगः डॉ के आर रवि के अनुसार सौलर पेनल निर्माताओं के साथ साथ प्लांट संचालकों ने इस तरह की तकनीक विकसित करने का आग्रह किया था. ओएनजीसी के वित्तीय सहयोग से यह काम हुआ है. बायोमिमेटिक मैटेरिअल से तैयार की गई कोटिंग एक से डेढ साल तक सोलर प्लेट पर टिकेगी. इसके बाद फिर कोटिंग करनी होगी. यह कोटिंग एक तरह की पारदर्शी लेअर होती है जिसे सोलर प्लेट पर लगा दिया जाता है. जिसके बाद सोलर पर प्लेट पर कोई भी पदार्थ टिकता नहीं है. वह तुरंत नीचे गिर जाता है. इस कोटिंग को तैयार करने के लिए आर्गेनिक और इनआर्गेनिंक तत्वों को शामिल किया है. यह तकनीक एंडोस्कॉप में भी काम आ सकेगी.
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ओएनजीसी करेगा व्यावसायिक उपयोगः वर्तमान में सौलर प्लांट्स पर मजूदरों या फिर रोबोमशीन के माध्यम से प्लेट की सफाई होती है. मजूदरों से सफाई करने में खर्च और समय ज्यादा लगताहै. जबकि रोबो मशीन खुद महंगी होती है इसे चलाने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी चाहिए साथ ही इससे सौलर प्लेट के टूटने का भी डर रहता है. आईआईटी जोधपुर के द्वारा तैयार की गई इस तकनीक का व्यावसायिक उपयोग भारत सरकार की कंपनी ओएनजीसी करेगी. आयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन ने ही इसके लिए पेटेंट फाइल किया है. आईआईटी जोधपुर अपने द्वारा तैयार की गई इस तकनीक का उन्नत वर्जन तैयार करने में लगी है. यानी की ऐसी कोटिंग जो चार से पांच साल तक चले, जिसका उपयोग वे खुद करेंगे.
राजस्थान बन रहा है सोलर पार्क का हबः राजस्थान में सौर उर्जा वैकल्पिक उर्जा के तहत तेजी से प्रचारित हो रही है. आम घरों के साथ साथ उद्योग भी इसका उपयोग करने लगे हैं. इसके अलावा व्यवसायिक उपयोग भी होने लगा है. देश के बडे बडे घराने राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाडमेर व बीकानेर में अपने सोलर पार्क लगा रहे हैं. जोधपुर के भडला में विश्व का सबसे बडा सोलर पार्क 14 हजार एकड़ यानी करीब 50 हजार वर्ग किमी में फैला है तथा यहां पर 18 बड़ी कंपनियों के 36 सोलर प्लांट लगे हुए है. जिनसे 2245 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है. इसके अलावा अन्य प्लांट भी हैं. प्रदेश सरकार का लक्ष्य है कि जल्द ही एक लाख मेगावाट बिजली सौर उर्जा से पैदा की जाए.