जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में मंगलवार को जस्टिस दिनेश मेहता की अदालत में उदयपुर के लक्ष्मी विलास होटल से जुड़े मामले को लेकर दायर याचिका पर सुनावाई पूरी हुई. आशीष गुहा और प्रदीप बैजल की विविध आपराधिक याचिका 482 पर सुनवाई पूरी हो गई है. अब इस मामले में सभी पक्षों को कोर्ट के आदेश का इंतजार है.
इस सुनवाई के दौरान देश के कई जाने-माने वकील शामिल हुए. इनमें हरीश साल्वे, पीपी चौधरी, मुकुल रोहतगी और सीबीआई की ओर से आरडी रस्तोगी भी शमिल थे. मामले में करीब एक घंटे तक वर्चुअल सुनवाई के दौरान बहस चली. जिसमें कहा गया कि सीबीआई कोर्ट इस मामले में सीधे गैर जमानती वारंट के आदेश नहीं दे सकती है क्येाकि मामला 18 वर्ष पुराना है. साथ ही इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1981 में साल 2018 में हुए संशोधन के बाद धारा 19 के तहत लोक सेवक को सेवानिवृति के बाद बिना अनुमति के दोषी नहीं बनाया जा सकता.
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साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि 2002 में हुई विनिवेश की प्रक्रिया में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्तर पर निर्णय हुए थे. ऐसे में किसी एक पर आरोप लागाना ठीक नहीं है. बहस के दौरान यह बात भी सामने आई कि उदयपुर कलेक्टर ने बतौर सीबीआई की ओर से उन्हें रिसिवर बनाने जाने पर एक पत्र लिखा है कि उनके पास इतने संसाधन नहीं जिससे कि होटल का संचालन किया जा सके.
एक घंटे तक चली बहस में कोर्ट इस बात पर सहमत हुई कि गैर जमानती आदेश जो सीबीआई कोर्ट ने दिए उन्हें जमानती वारंट रूप में परिवर्तित किया जाए. लेकिन इसके लिए सभी आरोपियों को कोर्ट में अपने बेल बांड भरने होंगे. साथ ही यह मांग की गई कि सीबीआई कोर्ट की ओर से जो कलेक्टर को रिसिवर नियुक्त किया गया है, उसे स्थगित किया जाए.
इस पर आरडी रस्तोगी ने जवाब के लिए 15 दिन का समय मांगा. बहस समाप्त करते हुए जस्टिस मेहता ने इस मामले में अंतरित आदेश जारी करने का कहा, लेकिन देर शाम तक आदेश जारी नहीं हुआ. वहीं, माना जा रहा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी जो मंगलवार को कोर्ट से जुड़े थे, लेकिन उन्हें सुना नहीं गया. उन्हें बुधवार को सुना जाएगा. ऐसे में संभवतः कोर्ट बुधवार को इस मामले में सभी आरोपियों के लिए एक साथ आदेश जारी करे.