जोधपुर. होली के साथी गणगौर पूजन शुरू होता है और 16 दिन बाद यानी चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया को अंतिम पूजन होता है. इस दिन गणगौर को पीहर से ससुराल के लिए विदा किया जाता है. इसके लिए बाजे-गाजे से सवारी निकाली जाती है. सोमवार को भीतरी शहर के राखी हाउस से सोने से लकदक सजी गणगौर की सवारी निकाली गई. इस दौरान शहर में शाम को सोलह श्रृंगार के साथ गवर माता की सवारी व शोभा यात्रा निकाली गई.
इससे पहले भीतरी शहर में तीजणियों की टोली गाजे बाजे के साथ जलाशयों पर जल भर कर पूजा स्थल पर लाई और गवर ईशर को अर्पित किया. इस दौरान तीजणियों ने सज धज कर सोलह श्रृगांर किए और साफा बांधा. गुलाब सागर, राणीसर पदमसर आदि जलाशय पर तीजणियों की टोली की रेलमपेल नजर आई. माता की सवारी पेला मून्दड़ों की गली राखी हाऊस से प्रारम्भ हुई.
वहां से पुंगलपाड़ा, हट्टडियों का चौक, कबूतरों का चौक, जालोरी गेट के अन्दर बालवाड़ी स्कूल, खांडा फलसा, आडा बाजार, सराफा बाजार, कपड़ा बाजार, सिटी पुलिस, त्रिपोलिया बाजार होते हुए घंटाघर में विश्राम कर वापस माणक चौक लखारा बाजार होते हुए राखी हाउस में विराजित हुई. इससे पूर्व शहर विधायक मनीषा पवार एवं महापौर कुंती देवड़ा ने गणगौर का पूजन कर शोभा यात्रा की रवानगी की.
उल्लेखनीय है कि सौभाग्य के लिए मनाया जाने वाला गणगौर पर्व मनाने के लिए कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं घर-घर में गणगौर यानी शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. इसमें ईसर और गौर यानी शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्ति (Gangaur Pooja in Rajasthan) बनाकर सोलह शृंगार कर सजाया जाता है. यह पूजा 16 दिन तक लगातार चलती है.
दो साल बाद निकली सवारी : कोरोना के चलते 2 साल तक गणगौर की सवारी नहीं निकाली गई. सोमवार को एक बार फिर सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा को निभाया गया. हालांकि, भीतरी शहर की टूटी सड़कें आज सवारी में लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी रही.