जोधपुर. राजस्थान में कहावत है कि "जीरो जीव को बेरी है...मत बावो म्हारा परण्या जीरो"... यानी एक महिला अपने पति से कहती है कि जीरे की खेती मत करो, यह जीव यानी जीवन की बैरी दुश्मन है. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि जीरे की फसल का लाभ लेने के लिए किसान को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. कड़कड़ाती सर्दी में भी उसकी खास देखभाल करनी पड़ती है.
इसके बाद भी 50 फीसदी से ज्यादा फसल पाला पड़ने से खराब हो जाती है. हर वर्ष हजारों किसान जीरे की फसल इसलिए तैयार करते हैं क्योंकि यह सबसे महंगी नगदी फसल मानी जाती है. लेकिन बहुत कम किसान इतने खुशनसीब होते हैं जो पूरी फसल ले पाते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
जोधपुर स्थित केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों ने 3 साल की कड़ी मेहनत के बाद जीरे की फसल की नई किस्म तैयार की है. खास बात यह है कि यह फसल सिर्फ 100 दिन में ही पक कर तैयार हो जाएगी जबकि सामान्य तौर पर जीरे की फसल को पकने में 140 से 150 दिन लगते हैं. जीरे की फसल अक्टूबर माह में बोई जाती है और उसके बाद गर्मी, सर्दी में इसकी खास देखभाल भी करनी पड़ती है.
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खेत में इतनी ठंड के बीच किसान को जीरे को बचाने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल होगा. काजरी की ओर से तैयार की गई जीरे की नई किस्म CZC-94 का कई जगह ट्रायल हो चुका है. अब आईसीएआर से अप्रूवल मिलते ही किसानों के लिए यह बीज उपलब्ध हो जाएगा.
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100 दिन में पक कर तैयार
काजरी के निदेशक डॉक्टर ओपी यादव का कहना है कि यह किस्म किसानों के लिए वरदान साबित होगी. वह 100 दिन में फसल प्राप्त कर सकेंगे. उन्होंने बताया कि संस्थान की ओर से जीरे की जो किस्म तैयार की गई है उसका म्यूटेन 100 दिन में पक कर तैयार हो जाता है जिसके बाद किसान अपनी फसल ले सकता है. इस नई किस्म में जीरे के फूल 70 दिन की जगह 40 दिन में आ जाते हैं. ऐसे में किसानों को अधिक लाभ भी होगा.
इस प्रोजेक्ट के प्रधान वैज्ञानिक आरके काकाणी का कहना है कि सामान्यतः किसान फसल की बोआई 15 अक्टूबर के बाद करते हैं लेकिन इसके बाद सर्दी बढ़ने पर पाला पड़ने की परेशानी भी उनको झेलनी पड़ती है. हमने जीरे की जो किस्म तैयार की है उसे दिसंबर में भी बोया जाए तो भी 100 दिन बाद फसल प्राप्त की जा सकती है.