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जोधपुर एम्स में ह्रदय रोगी को बायो रेसोर्बेबल स्टेंट, रक्त प्रवाह कम करने में बेहद कारगार - heart attack

जोधपुर एम्स में एक ह्रदय रोगी को बायो रेसोर्बेबल स्टेंट लगाया गया. जोधपुर एम्स में पहली बार बायो रेसोर्बेबल स्टेंट का प्रयोग किया गया है. 52 वर्षीय मरीज को स्टेंट लगाकर राहत दी गई है.

ह्रदय रोगी को बायो रेसोर्बेबल स्टेंट
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Published : Jul 15, 2021, 8:25 PM IST

Updated : Jul 15, 2021, 9:01 PM IST

जोधपुर. सामान्यत: हार्ट अटैक के बाद में हृदय रोगियों की धमनियों में रक्त का प्रवाह सामान्य करने के लिए मैटेलिक स्टंट लगाए जाते हैं. ये मैटेलिक स्टेंट हमेशा धमनियों में ही रहते हैं लेकिन अब नवीनतम तकनीक के साथ स्टेंट आने लगे हैं जो एक निश्चित समय के बाद धमनियों में घुल जाते हैं. यानी रक्त का प्रवाह सामान्य होने के साथ-साथ ये 'मेैटेलिक स्टेंट' अपने आप खत्म होता जाते हैं और एक समय बाद ये पूरी तरह समाप्त हो जाता है.

डॉक्टरों की मानें तो इस तरह के स्टेंट कम उम्र के मरीजों के लिए ज्यादा फायदेमंद होते हैं. जोधपुर एम्स में पहली बार बायो रेसोर्बेबल स्टेंट का प्रयोग किया गया है और एक 52 वर्षीय मरीज को स्टेंट लगाकर राहत दी गई है. एम्स जोधपुर के ह्दय रोग विभाग के विशेषज्ञों की ओऱ से नवीनतम तकनीक के बायो रेसोर्बेबल स्टेंट का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया.

पढ़ें: ETV Bharat Impact: जन्म से ही लीवर, गुर्दे की बीमारी से पीड़ित कृष्णा का जोधपुर एम्स में होगा ऑपरेशन

चिकित्सा अधीक्षक, एम्स जोधपुर डॉ. महेन्द्र कुमार गर्ग ने बताया कि बीकानेर के हार्ट अटैक से पीड़ीत मरीज को एम्स में भर्ती किया गया. चिकित्सकों की ओर से एंजियोग्राफी कर ब्लॉकेज का पता लगाया गया और स्टेंट लगवाने की सलाह दी गई. मरीज की स्वीकृति के पश्चात ब्लॉकेज हटाने के लिए एमईआरईएस (MERES) 100 माइक्रोन बायो रेसोर्बेबल स्टेंट लगाया गया.

डॉ. राहुल चौधरी ने बताया कि संपूर्ण एंजियोप्लास्टी कोरोनरी इमेजिंग की सहायता से की गई ताकि स्टंट के साइज़ और लम्बाई का सही अनुमान लगाया जा सके. राजस्थान के किसी भी सरकारी संस्थान में इस तकनीक से की गई यह अपनी तरह की प्रथम एंजियोप्लास्टी है. ह्दयरोग विभाग के डॉ. राहुल चौधरी, डॉ. सुरेंद्र देवड़ा और डॉ. अतुल कौशिक ने नर्सिंग स्टाफ एवं तकनीकी स्टाफ की मदद से मरीज को बायो रेसोर्बेबल स्टेंट लगाया गया है.

पढ़ें:Corona Update: राजस्थान के 24 जिलों में नहीं मिले एक भी मरीज, घट रही एक्टिव केस की संख्या

यह बायो रेसोर्बेबल स्टेंट इंप्लाट होने के दो से तीन साल बाद आर्टरी में घुल जाता है. ह्दय की कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज होने पर सामान्यतया एंजियोप्लास्टी या बाइपास सर्जरी के जरिए इसे ठीक किया जाता है. बिना सर्जरी के एंजियोपलास्टी से स्टेंट लगाना काफी कारगर उपचार है लेकिन कई मामलों में मैटलिक स्टेंट फिर से बंद हो जाता है या मरीज को स्टेंट से जुडी अन्य समस्या हो सकती है. लेकिन अब नवीनतम तकनीक से लगाए गए मैटलिक स्टंट कुछ समय बाद शरीर में ही घुल जाते हैं और आर्टरी सामान्यरूप से कार्य करने लगती है.

पुरानी तकनीक से लगाए गए मैटलिक फ्रेम से बने स्टेंट हमेशा आर्टरी में रहते हैं लेकिन बायो डिग्रेडेबल स्टेंट ऐसी तकनीक है जिसमें मैटलिक फ्रेम का प्रयोग नहीं किया जाता है. यह स्टेट पोलिमर से बना होता है जो शरीर में इंप्लाट होने के दो से तीन साल बाद अपने आप घुल जाता है. स्टेंट घुलने के बाद आर्टरी प्राकृतिक अवस्था में आ जाती है. कम आयु के मरीज़ों के लिए बायो डिग्रेडेबल स्टेंट से एंजियोप्लास्टी और भी अधिक उपयोगी है.

जोधपुर. सामान्यत: हार्ट अटैक के बाद में हृदय रोगियों की धमनियों में रक्त का प्रवाह सामान्य करने के लिए मैटेलिक स्टंट लगाए जाते हैं. ये मैटेलिक स्टेंट हमेशा धमनियों में ही रहते हैं लेकिन अब नवीनतम तकनीक के साथ स्टेंट आने लगे हैं जो एक निश्चित समय के बाद धमनियों में घुल जाते हैं. यानी रक्त का प्रवाह सामान्य होने के साथ-साथ ये 'मेैटेलिक स्टेंट' अपने आप खत्म होता जाते हैं और एक समय बाद ये पूरी तरह समाप्त हो जाता है.

डॉक्टरों की मानें तो इस तरह के स्टेंट कम उम्र के मरीजों के लिए ज्यादा फायदेमंद होते हैं. जोधपुर एम्स में पहली बार बायो रेसोर्बेबल स्टेंट का प्रयोग किया गया है और एक 52 वर्षीय मरीज को स्टेंट लगाकर राहत दी गई है. एम्स जोधपुर के ह्दय रोग विभाग के विशेषज्ञों की ओऱ से नवीनतम तकनीक के बायो रेसोर्बेबल स्टेंट का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया.

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चिकित्सा अधीक्षक, एम्स जोधपुर डॉ. महेन्द्र कुमार गर्ग ने बताया कि बीकानेर के हार्ट अटैक से पीड़ीत मरीज को एम्स में भर्ती किया गया. चिकित्सकों की ओर से एंजियोग्राफी कर ब्लॉकेज का पता लगाया गया और स्टेंट लगवाने की सलाह दी गई. मरीज की स्वीकृति के पश्चात ब्लॉकेज हटाने के लिए एमईआरईएस (MERES) 100 माइक्रोन बायो रेसोर्बेबल स्टेंट लगाया गया.

डॉ. राहुल चौधरी ने बताया कि संपूर्ण एंजियोप्लास्टी कोरोनरी इमेजिंग की सहायता से की गई ताकि स्टंट के साइज़ और लम्बाई का सही अनुमान लगाया जा सके. राजस्थान के किसी भी सरकारी संस्थान में इस तकनीक से की गई यह अपनी तरह की प्रथम एंजियोप्लास्टी है. ह्दयरोग विभाग के डॉ. राहुल चौधरी, डॉ. सुरेंद्र देवड़ा और डॉ. अतुल कौशिक ने नर्सिंग स्टाफ एवं तकनीकी स्टाफ की मदद से मरीज को बायो रेसोर्बेबल स्टेंट लगाया गया है.

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यह बायो रेसोर्बेबल स्टेंट इंप्लाट होने के दो से तीन साल बाद आर्टरी में घुल जाता है. ह्दय की कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज होने पर सामान्यतया एंजियोप्लास्टी या बाइपास सर्जरी के जरिए इसे ठीक किया जाता है. बिना सर्जरी के एंजियोपलास्टी से स्टेंट लगाना काफी कारगर उपचार है लेकिन कई मामलों में मैटलिक स्टेंट फिर से बंद हो जाता है या मरीज को स्टेंट से जुडी अन्य समस्या हो सकती है. लेकिन अब नवीनतम तकनीक से लगाए गए मैटलिक स्टंट कुछ समय बाद शरीर में ही घुल जाते हैं और आर्टरी सामान्यरूप से कार्य करने लगती है.

पुरानी तकनीक से लगाए गए मैटलिक फ्रेम से बने स्टेंट हमेशा आर्टरी में रहते हैं लेकिन बायो डिग्रेडेबल स्टेंट ऐसी तकनीक है जिसमें मैटलिक फ्रेम का प्रयोग नहीं किया जाता है. यह स्टेट पोलिमर से बना होता है जो शरीर में इंप्लाट होने के दो से तीन साल बाद अपने आप घुल जाता है. स्टेंट घुलने के बाद आर्टरी प्राकृतिक अवस्था में आ जाती है. कम आयु के मरीज़ों के लिए बायो डिग्रेडेबल स्टेंट से एंजियोप्लास्टी और भी अधिक उपयोगी है.

Last Updated : Jul 15, 2021, 9:01 PM IST
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