जयपुर. राजधानी जयपुर (Pink City) की स्थापना 1727 में हुई थी. उस समय की हवेलियां और घरों के एक कोने में तारत हुआ करते थे. जो आज शौचालय के नाम से जाने जाते हैं लेकिन 294 साल बाद आज की स्थिति जयपुर की छवि को दागदार और शहरवासियों को शर्मिंदा करने वाली है. जयपुर को भले ही वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का तमगा मिला हो, लेकिन इसी हेरिटेज सिटी के बाजारों (Jaipur Market) में महिलाओं के लिए टॉयलेट (toilets) जैसी मूलभूत सुविधा तक का अभाव है.
जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में बीते 13 साल से सुमन सब्जी बेच रही है. सुमन यहां 10 से 12 घंटे बिताती हैं. इसी बाजार में प्रयागराज से घूमने पहुंची ऋतु सिंह. वह इस बाजार में शॉपिंग करने पहुंची. इन दोनों को यहां एक कॉमन प्रॉब्लम फेस करनी पड़ी, वो थी टॉयलेट की (Public toilets in Jaipur Market).
सुमन और ऋतु जैसी सैकड़ों महिलाएं हर दिन शहर के प्रमुख बाजार से गुजरती हैं. इनमें से कुछ को टॉयलेट की जरूरत भी पड़ती है. कुछ संकोचवश पूछती नहीं, और जो पूछती है उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है. हालांकि कुछ बाजारों में पब्लिक टॉयलेट (Public toilets) और स्मार्ट टॉयलेट बने हैं. लेकिन उनमें कुछ में तो ताले लगे हैं, वहीं कुछ इतने गंदे हैं कि उनमें शायद ही कोई जाना पसंद करे. नतीजन लोग शहर की गलियों और खुली जगहों को ही टॉयलेट बना देते हैं. व्यापारियों ने बताया कि जब यहां महिलाएं टॉयलेट के लिए पूछती है तो शर्मिंदगी महसूस होती है.
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यहां, कुछ बाजारों में गली के नुक्कड़ पर पुरुषों के लिए टॉयलेट जरूर बने हैं. लेकिन इनके हालात भी बद से बदतर हैं. इनकी कनेक्टिविटी सीवरेज से नहीं होने के चलते हैं यूरीन सड़कों पर बहता रहता है. ऐसा नहीं कि बाजार में टॉयलेट बनाने का स्थान नहीं, लेकिन हकीकत ये है कि प्रशासन इसे लेकर गंभीर नहीं है.
परकोटे (Parkota of Jaipur) को निहारने हर दिन सैकड़ों पर्यटक यहां पहुंचते हैं. छोटी चौपड़ से बड़ी चौपड़ तक ईसरलाट, सिटी पैलेस, जंतर मंतर, त्रिपोलिया गेट और हवा महल जैसे मॉन्यूमेंट हैं. बावजूद इसके प्रशासन ने यहां मूलभूत सुविधाओं को लेकर के आंखें मूंद रखी है. जयपुर एक तरफ तो वर्ल्ड हेरिटेज के तमगे के साथ स्मार्ट होता जा रहा है. लेकिन यहां के बाजार और इन बाजारों में आने वाले पर्यटक और खरीददार खासकर महिलाएं आज भी मूलभूत सुविधाओं की राह ताक रहे हैं.