जयपुर. खाद्य सुरक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है. इस दिन लोगों को शुद्ध और संतुलित भोजन ले सके इसके लिए जागरूक किया जाता है. लेकिन प्रदेश की गहलोत सरकार के खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी के दावे सिर्फ दावों तक ही सिमट कर रह गए. इसका बड़ा उदाहरण है सरकार मिलावटखोरों को सजा दिलाने के लिए 2 साल पहले फास्ट्रेक खोलने की घोषणा की ( Declaration of opening of fast track court incomplete) थी, जो अभी भी कागजों से बाहर नहीं निकली है.
फास्ट्रेक कोर्ट की बजट घोषणा में: सरकार की ओर से मिलावटखोरों पर शिकंजा कसने के लिए शुद्ध के लिए युद्ध अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन सख्त कानून के अभाव में मिलावटखोरों पर कोई ठोस करवाई नहीं होती. इसका बड़ा कारण है कि मिलावट खोरों को कानून का डर नहीं है. साल 2020 में सरकार ने मिलावटखोरों के विरुद्ध त्वरित कानूनी कार्रवाई हो सके, इसके लिए प्रदेश में अलग से फास्ट ट्रैक अदालत स्थापित किए जाने की घोषणा की थी. लेकिन दो साल का वक्त होने के बावजूद अभी भी फास्ट ट्रैक अदालत स्थापित नहीं किए गए. जिसके चलते दोषियों पर त्वरित कार्यवाही नहीं हो रही.
मुख्यमंत्री गहलोत ने यह कहा था: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2020 की बजट घोषणा के दौरान कहा कि राज्य के प्रत्येक नागरिक को शुद्ध खाद्य सामग्री उपलब्ध हो और वे स्वस्थ्य जीवन यापन कर सके, इसके लिए मिलावटखोरों के खिलाफ पृथक से एक ऑथोरिटी के गठन की घोषणा की. इसके तहत हर जिले में एक लैब का गठन किया जाएगा. इस लैब में ऑनलाइन रिपोर्ट की जा सकेगी. मिलावटखारों पर त्वरित कार्रवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए जाएंगे.
इस साल 4 हजार से अधिक कार्रवाई: मिलावटखोरों पर करवाई करते हुए साल 2022 में प्रदेशभर में 4 हजार से अधिक स्थानों पर निरीक्षण कर 4262 सैंपल लेकर बड़ी मात्रा में मिलावटी सामान को जब्त किया गया. प्रदेश भर में 499 नमूने दूध, 863 दूध से बने खाद्य पदार्थ और मिठाइयों, 135 नमूने अन्य मिठाइयों, 1095 नमूने घी और तेल के साथ 1670 नमूने अन्य खाद्य पदार्थों के लिए गए. इनमें से भारी मात्रा में मिलावट मिली खाद्य सामग्री को जब्त किया गया और नष्ट किया गया. लेकिन मिलावटखोरों पर कार्रवाई करने और सजा देने के लिए जिला स्तर की अदालतों में सुनवाई की जा रही है. जिसकी प्रक्रिया बेहद धीमी है, जिसके चलते मिलावटखोरों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं.
अभियान चलाकर सैम्पल लिये, लेकिन करवाई प्रक्रियाधीन: प्रदेश में मिलावटखोरी को रोकने के लिए राज्य और जिला स्तर पर शुद्ध के लिए युद्ध अभियान चलाया जा रहा है. अभियान के तहत 2019 से मार्च 2022 तक खाद्य सामग्री के करीब 25 हजार नमूने लिए गए. उन सभी नमूनों की जांच लैब से करवाई गई. स्वास्थ्य विभाग की ओर मिली जानकारी के अनुसार खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिए दिसंबर 2019 से 1 जनवरी 2021 तक प्रदेश में कुल 8097 सैंपल लिए गए. जिनमें से 603 मिसब्राण्डेड, 1242 सबस्टेण्डर्ड और 308 अनसेफ प्रकरण पाए गए. बाकी नमूने जांच में फेल हो गए. वहीं इसके बाद करीब डेढ़ साल में ही चिकित्सा विभाग ने 16 हजार से अधिक जगहों पर कार्रवाई की. जयपुर में ही करीब 300 से अधिक जगह पर कार्रवाई की गई. जिसमें 25 सैम्पल सबस्टैंडर्ड, 12 सैम्पल मिसब्राण्ड, 6 सेम्पल अनसेए पाए गए.
अन्य राज्यों जैसे कानून की आवश्कता: मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई की बात तो हमेशा से होती रही है. फिर चाहे वो कांग्रेस की सरकार रही हो या बीजेपी की. दोनों ही राजनीतिक दलों की सरकारें दावा करती रही है, लेकिन हकीकत यह है कि इस भावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए किसी भी सरकार ने गंभीरता से काम नहीं किया. सरकार की मंशा मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई करनी होती तो अन्य राज्यों की तर्ज पर राजस्थान में भी सख्त कानून होते. मध्य प्रदेश में मिलावटखोरों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई के लिए कठोर नियम और कानून बनाए गए है. साथ ही फास्टट्रैक कोर्ट खोले गए है. मिलावटखोरों के सलाखों के पीछे पहुंचाया जाता है.