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World alzheimer Day: स्मृतिदोष क्या है! जानिए 21 सितंबर को क्यों मनाया जाता है अल्जाइमर डे? - jaipur latest news

आज वर्ल्ड अल्जाइमर डे है. तेजी से बढ़ता गंभीर न्यूरोलॉजिकल विकार है अल्जाइमर. 60 साल से अधिक आयु के लोगों में ये समस्या अधिक देखी जाती है. क्या होते हैं इसके लक्षण, कैसे हो पहचान और किन उपायों से लगे इन पर लगाम? विकार से जुड़ी बारीकियों पर जानते हैं जयपुर के एक्स्पर्ट्स की राय और सलाह.

World alzheimer Day
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Published : Sep 21, 2022, 8:13 AM IST

Updated : Sep 21, 2022, 10:39 AM IST

जयपुर. तनाव से भरी इस जिंदगी में अक्सर लोग रोजमर्रा के कामों के बीच चीजों को भूलने लगते हैं. गाड़ी चलाना, रास्ता अचानक भूल जाना, शॉपिंग करना और फिर पैसों को संभाल कर रखना, ये सब लक्षण याददाश्त की कमजोरी का इशारा करते हैं (World alzheimers Day). ये सभी हो सकता है कि अल्जाइमर के लक्षण हों. विशेषज्ञ डॉ मनस्वी गौतम के मुताबिक यदि कोई शख्स बार-बार एक ही सवाल पूछता है, अच्छे से वाकिफ जगह पर भी खो जाता है? मिलने जुलने वाले लोगों और जगह को लेकर पशोपेश में रहता है. ठीक से अपना ख्याल नहीं रख पाता, नियमित नहाना नहीं करता, तो फिर याददाश्त की यह बीमारी गंभीरता की ओर इशारा करती है.

डॉ गौतम कहते हैं कि अक्सर सिर में चोट लगने से, थायराइड की परेशानी से, शरीर में तरल पदार्थों की कमी से, पौष्टिक भोजन नहीं करने से, अत्यधिक तनाव में रहने से, डिप्रेशन और दवाइयों के कई बार गलत असर के नतीजे के रूप में भी दिमाग और सोचने की ताकत प्रभावित होती है और फिर ये एक बीमारी का रूप ले लेती है.

विशेषज्ञों से जानें क्या है अल्जाइमर डिजीज

भावनात्मक समस्याएं: बुजुर्गों में कुछ भावनात्मक समस्याएं याददाश्त की गंभीर समस्याओं का कारण बन सकती हैं. उदास रहना, अकेलापन महसूस करना, चिंतित या उबने से घबराए हुए लोगों में ये परेशानी बढ़ सकती है. ऐसे में सक्रिय रहने दोस्तों से ज्यादा मिलने और नई आदतों की सीखने से भी इस परेशानी से निजात मिल सकती है. साथ ही अगर वक्त पर डॉक्टर का परामर्श मिले, तो भी जल्द ही भूलने की समस्या को दूर किया जा सकता है.

लक्षण तुरंत पहचानें: अल्जाइमर रोग के लक्षण धीरे धीरे शुरू होते है और समय के साथ बिगड़ते जाते है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मस्तिष्क में कोशिका तंत्र में बदलाव के कारण मस्तिष्क की बहुत सी कोशिकाएं मर जाती है. शुरू में सामान्य भुलक्कड़पन लग सकता है, लेकिन समय बीतने के साथ अल्जाइमर के रोगियों को स्पष्ट सोचने में मुश्किल होती है. शॉपिंग, ड्राइविंग , खाना पकाने और बातचीत करने जैसी रोजमर्रा की आदतों में दिक्कत महसूस होती है और मरीज को किसी की मदद लेनी पड़ सकती है.

अगर आप अल्जाइमर के रोग की शुरूआती या मध्य में हैं, तो दवाओं से मदद मिल सकती है. ये स्थिति को कंट्रोल करते हैं. यदि आप चिंतित अवसादग्रस्त हैं या सोने में परेशानी पाते हैं, तो आपको दवाओं से मदद मिल सकती है.

पढ़ें-World Alzheimer Day : अल्जाइमर का पता समय रहते लगाने के लिए आईआईटी जोधपुर ने विकसित की सहायक तकनीक

मल्टी इन्फार्ट डिमेशिया (रक्त आपूर्ति बाधित होना): बहुत से लोगों ने मल्टी इन्फार्क्ट डिमेंशिया के बारे में नहीं सुना है. ये मेडिकल कंडीशन भी अल्जाइमर रोग की तरह ही एक गंभीर मेडिकल सिचुएशन है. जिसके कारण भी समस्याएं होती हैं. अल्जाइमर के रोग के विपरीत दिमाग में छोटे छोटे आघात या मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति में बदलाव के कारण याददाश्त कम होती है, जिससे दुविधा पैदा होती है. अगर इस दौरान आघात काबू में आता है, तो आप बेहतर हो सकते हैं या लंबे समय तक उसी अवस्था में रह सकते हैं. अपने उच्च रक्तचाप की अच्छी तरह देखभाल करने से आपके रोग ग्रस्त होने की संभावना कम हो सकती है.

इंद्रियां होती हैं प्रभावित: अल्जाइमर का रोग व्यक्ति की इंद्रियों के सही सलामत रहते हुए भी उसकी देखने, सुनने, चखने, महसूस करने या सूंघने की क्षमता में बदलाव ला सकता हैं. ऐसे व्यक्ति की समय समय पर जांच फिजिशियन से कराते रहनी चाहिए. इसे सुनने के यंत्र या अन्य इलाज के साधनों से ठीक किया जा सकता हैं. इसी तरह आंख की परेशानियों से जुड़े व्यक्ति अपनी देखने की योग्यता में बहुत से बदलावों का अनुभव कर सकते हैं. उदाहरण के लिये दिखाई देने वाली छवियों को समझने की क्षमता कम हो सकती हैं. हालांकि उनकी आंखों में शारीरिक रूप से कोई विकार नहीं होता है, लेकिन इस तरह से ग्रस्त व्यक्ति अपने मस्तिष्क में आए बदलावों के कारण देखी हुई चीजों को ठीक तरह से समझ नहीं पाते. साथ ही उनके बोध और गहनता की अनुभूति भी बदल सकती है. इन बदलावों की वजह से कई बार खतरा बढ़ जाता है.

ऐसे हो इलाज: डॉ मनस्वी गौतम कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को देखने में मदद करने के लिए फर्श और दीवारों के बीच रंगों के संतुलन का ख्याल रखना होता है. फर्श अगर गहरे रंग का हो तो फिर मरीज को आसानी होती है. आसानी से पहचाने जा सकने के लिये एक प्लेट और मेट्स अलग अलग रंग की होनी चाहिये. बदलाव को प्रमुखता से दिखाने के लिए सीढियों के कोनों पर चमकदार टैप होनी चाहिये. आसानी से पहचाने जा सकने के लिये महत्वपूर्ण कमरों जैसे बाथरूम इत्यादि पर चमकीली निशानियों या सामान्य चित्र लगाने चाहिए. ध्यान रखना चाहिए कि रास्ते में पड़ा प्लास्टिक का छोटा सा टुकड़ा भी खतरनाक साबित हो सकता है. इस तरह के लोगों के लिए ध्यान रखकर या फिर चिकित्सक के परामर्श के जरिए समय पर पहचान करके इलाज दिया जा सकता है, अन्यथा देरी होने पर याददाश्त कम होने का खतरा बना रहता है.

एक्टिव रहना जरूरी: एकग्रता और याददाश्त के लिए महत्वपूर्ण कैमिकल न्यूरोट्रांसमीटर एसिटिलकोलीन याददाश्त भूलने के साथ कम हो जाता है और अल्जाइमर के अधिकतर रोगियों में ये गायब होता है. किसी भी क्रिया को देखकर याद रखने वाले काम से अपने मस्तिष्क में एसिटिलकोलीन को नियंत्रित रूप से छोड़ने को मदद मिलती है. इसलिए मनोचिकित्सक अक्सर अल्जाइमर के मरीजों को एक्टिव रखने के लिए सलाह देते हैं, उनका परामर्श होता है कि इस तरह के मरीजों को ज्यादा से ज्यादा काम करवाया जाए.

पढ़ें. Alzheimer : आंत-पेट विकार व अल्जाइमर में आनुवांशिक जुड़ाव है, ऑस्ट्रेलियाई शोध

कैसे बढ़ाएं याददाश्त: डॉक्टर अनिता गौतम कहती हैं कि अगर याददाश्त को फिर से कायम करना है तो कुछ आदतों को रोजमर्रा में शामिल करना होगा. मसलन नई आदतों को सीखना होगा. अपने समाज, स्कूल या फिर पूजा स्थल पर स्वेच्छा से काम करना होगा. दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना होगा. छोटी-छोटी जरूरी बातों के नोट्स बना कर उन्हें पालन करना होगा, हर रोज अपना चश्मा, पर्स और चाबियों को एक ही जगह पर रखना होगा. नियमित रूप से व्यायाम करना होगा. खाने में स्वस्थ डाइट का इस्तेमाल करना होगा, अवसाद के हालात में होने पर परिवार जनों की मदद लेनी होगी. मदिरापान से दूर रहना होगा और घर की छोटी-छोटी बातों के नोट्स बनाकर कैलेंडर में उन्हें मेंटेन करना होगा. रोजाना इन आदतों को शुरू करने के बाद धीरे-धीरे याद रखने की ताकत में फर्क दिखने लगेगा.

जयपुर. तनाव से भरी इस जिंदगी में अक्सर लोग रोजमर्रा के कामों के बीच चीजों को भूलने लगते हैं. गाड़ी चलाना, रास्ता अचानक भूल जाना, शॉपिंग करना और फिर पैसों को संभाल कर रखना, ये सब लक्षण याददाश्त की कमजोरी का इशारा करते हैं (World alzheimers Day). ये सभी हो सकता है कि अल्जाइमर के लक्षण हों. विशेषज्ञ डॉ मनस्वी गौतम के मुताबिक यदि कोई शख्स बार-बार एक ही सवाल पूछता है, अच्छे से वाकिफ जगह पर भी खो जाता है? मिलने जुलने वाले लोगों और जगह को लेकर पशोपेश में रहता है. ठीक से अपना ख्याल नहीं रख पाता, नियमित नहाना नहीं करता, तो फिर याददाश्त की यह बीमारी गंभीरता की ओर इशारा करती है.

डॉ गौतम कहते हैं कि अक्सर सिर में चोट लगने से, थायराइड की परेशानी से, शरीर में तरल पदार्थों की कमी से, पौष्टिक भोजन नहीं करने से, अत्यधिक तनाव में रहने से, डिप्रेशन और दवाइयों के कई बार गलत असर के नतीजे के रूप में भी दिमाग और सोचने की ताकत प्रभावित होती है और फिर ये एक बीमारी का रूप ले लेती है.

विशेषज्ञों से जानें क्या है अल्जाइमर डिजीज

भावनात्मक समस्याएं: बुजुर्गों में कुछ भावनात्मक समस्याएं याददाश्त की गंभीर समस्याओं का कारण बन सकती हैं. उदास रहना, अकेलापन महसूस करना, चिंतित या उबने से घबराए हुए लोगों में ये परेशानी बढ़ सकती है. ऐसे में सक्रिय रहने दोस्तों से ज्यादा मिलने और नई आदतों की सीखने से भी इस परेशानी से निजात मिल सकती है. साथ ही अगर वक्त पर डॉक्टर का परामर्श मिले, तो भी जल्द ही भूलने की समस्या को दूर किया जा सकता है.

लक्षण तुरंत पहचानें: अल्जाइमर रोग के लक्षण धीरे धीरे शुरू होते है और समय के साथ बिगड़ते जाते है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मस्तिष्क में कोशिका तंत्र में बदलाव के कारण मस्तिष्क की बहुत सी कोशिकाएं मर जाती है. शुरू में सामान्य भुलक्कड़पन लग सकता है, लेकिन समय बीतने के साथ अल्जाइमर के रोगियों को स्पष्ट सोचने में मुश्किल होती है. शॉपिंग, ड्राइविंग , खाना पकाने और बातचीत करने जैसी रोजमर्रा की आदतों में दिक्कत महसूस होती है और मरीज को किसी की मदद लेनी पड़ सकती है.

अगर आप अल्जाइमर के रोग की शुरूआती या मध्य में हैं, तो दवाओं से मदद मिल सकती है. ये स्थिति को कंट्रोल करते हैं. यदि आप चिंतित अवसादग्रस्त हैं या सोने में परेशानी पाते हैं, तो आपको दवाओं से मदद मिल सकती है.

पढ़ें-World Alzheimer Day : अल्जाइमर का पता समय रहते लगाने के लिए आईआईटी जोधपुर ने विकसित की सहायक तकनीक

मल्टी इन्फार्ट डिमेशिया (रक्त आपूर्ति बाधित होना): बहुत से लोगों ने मल्टी इन्फार्क्ट डिमेंशिया के बारे में नहीं सुना है. ये मेडिकल कंडीशन भी अल्जाइमर रोग की तरह ही एक गंभीर मेडिकल सिचुएशन है. जिसके कारण भी समस्याएं होती हैं. अल्जाइमर के रोग के विपरीत दिमाग में छोटे छोटे आघात या मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति में बदलाव के कारण याददाश्त कम होती है, जिससे दुविधा पैदा होती है. अगर इस दौरान आघात काबू में आता है, तो आप बेहतर हो सकते हैं या लंबे समय तक उसी अवस्था में रह सकते हैं. अपने उच्च रक्तचाप की अच्छी तरह देखभाल करने से आपके रोग ग्रस्त होने की संभावना कम हो सकती है.

इंद्रियां होती हैं प्रभावित: अल्जाइमर का रोग व्यक्ति की इंद्रियों के सही सलामत रहते हुए भी उसकी देखने, सुनने, चखने, महसूस करने या सूंघने की क्षमता में बदलाव ला सकता हैं. ऐसे व्यक्ति की समय समय पर जांच फिजिशियन से कराते रहनी चाहिए. इसे सुनने के यंत्र या अन्य इलाज के साधनों से ठीक किया जा सकता हैं. इसी तरह आंख की परेशानियों से जुड़े व्यक्ति अपनी देखने की योग्यता में बहुत से बदलावों का अनुभव कर सकते हैं. उदाहरण के लिये दिखाई देने वाली छवियों को समझने की क्षमता कम हो सकती हैं. हालांकि उनकी आंखों में शारीरिक रूप से कोई विकार नहीं होता है, लेकिन इस तरह से ग्रस्त व्यक्ति अपने मस्तिष्क में आए बदलावों के कारण देखी हुई चीजों को ठीक तरह से समझ नहीं पाते. साथ ही उनके बोध और गहनता की अनुभूति भी बदल सकती है. इन बदलावों की वजह से कई बार खतरा बढ़ जाता है.

ऐसे हो इलाज: डॉ मनस्वी गौतम कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को देखने में मदद करने के लिए फर्श और दीवारों के बीच रंगों के संतुलन का ख्याल रखना होता है. फर्श अगर गहरे रंग का हो तो फिर मरीज को आसानी होती है. आसानी से पहचाने जा सकने के लिये एक प्लेट और मेट्स अलग अलग रंग की होनी चाहिये. बदलाव को प्रमुखता से दिखाने के लिए सीढियों के कोनों पर चमकदार टैप होनी चाहिये. आसानी से पहचाने जा सकने के लिये महत्वपूर्ण कमरों जैसे बाथरूम इत्यादि पर चमकीली निशानियों या सामान्य चित्र लगाने चाहिए. ध्यान रखना चाहिए कि रास्ते में पड़ा प्लास्टिक का छोटा सा टुकड़ा भी खतरनाक साबित हो सकता है. इस तरह के लोगों के लिए ध्यान रखकर या फिर चिकित्सक के परामर्श के जरिए समय पर पहचान करके इलाज दिया जा सकता है, अन्यथा देरी होने पर याददाश्त कम होने का खतरा बना रहता है.

एक्टिव रहना जरूरी: एकग्रता और याददाश्त के लिए महत्वपूर्ण कैमिकल न्यूरोट्रांसमीटर एसिटिलकोलीन याददाश्त भूलने के साथ कम हो जाता है और अल्जाइमर के अधिकतर रोगियों में ये गायब होता है. किसी भी क्रिया को देखकर याद रखने वाले काम से अपने मस्तिष्क में एसिटिलकोलीन को नियंत्रित रूप से छोड़ने को मदद मिलती है. इसलिए मनोचिकित्सक अक्सर अल्जाइमर के मरीजों को एक्टिव रखने के लिए सलाह देते हैं, उनका परामर्श होता है कि इस तरह के मरीजों को ज्यादा से ज्यादा काम करवाया जाए.

पढ़ें. Alzheimer : आंत-पेट विकार व अल्जाइमर में आनुवांशिक जुड़ाव है, ऑस्ट्रेलियाई शोध

कैसे बढ़ाएं याददाश्त: डॉक्टर अनिता गौतम कहती हैं कि अगर याददाश्त को फिर से कायम करना है तो कुछ आदतों को रोजमर्रा में शामिल करना होगा. मसलन नई आदतों को सीखना होगा. अपने समाज, स्कूल या फिर पूजा स्थल पर स्वेच्छा से काम करना होगा. दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना होगा. छोटी-छोटी जरूरी बातों के नोट्स बना कर उन्हें पालन करना होगा, हर रोज अपना चश्मा, पर्स और चाबियों को एक ही जगह पर रखना होगा. नियमित रूप से व्यायाम करना होगा. खाने में स्वस्थ डाइट का इस्तेमाल करना होगा, अवसाद के हालात में होने पर परिवार जनों की मदद लेनी होगी. मदिरापान से दूर रहना होगा और घर की छोटी-छोटी बातों के नोट्स बनाकर कैलेंडर में उन्हें मेंटेन करना होगा. रोजाना इन आदतों को शुरू करने के बाद धीरे-धीरे याद रखने की ताकत में फर्क दिखने लगेगा.

Last Updated : Sep 21, 2022, 10:39 AM IST
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