जयपुर. आम हो या खास, गरीब हो या अमीर हर किसी की जिंदगी कोरोना संक्रमण काल में पटरी से उतर गई हैं. इस महामारी के चलते समाज का हर तबका प्रभावित हुआ है. इस बीमारी से संक्रमित होने वाले लोग भले ही पीड़ित हो, लेकिन इसके चलते जिनके रोजगार चले गए, जिनके काम धंधे ठप हो गए उनका दर्द भी कम नहीं है.
ऐसे ही हालत हैं रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में सामान चढ़ाने और उतारने का काम करने वाले कुलियों की. जयपुर रेलवे स्टेशन पर 174 कुलियों में सबसे खास हैं मंजू देवी. ये वहीं मंजू देवी हैं. जिन्हें 20 जनवरी 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अवार्ड देकर सम्मानित किया था. कोरोना काल में 3 महीने 8 दिन तक घर में रहने के बाद अब मंजू अपने पुराने रोजगार यानी जयपुर जंक्शन पर लौटी हैं.
लेकिन एक ही दिन में उन्हें यह समझ आ गया कि उनका काम अभी शुरू नहीं हुआ है. लॉकडाउन के दौरान रेल सेवाओं के बंद होने पर उनका रोजगार भी बंद हो गया था. वहीं, अब जब कुछ ट्रेनों की आवाजाही शुरू हुई, तो यात्री अपना सामान किसी को भी देने से घबरा रहे हैं. स्टेशन पर मंजू ने अपना पूरा प्रयास किया लेकिन उनकी ट्रॉली खाली ही रही.
ऐसे में अब मंजू ने दोबारा गांव लौटने का फैसला किया है. उन्होंने बताया कि जब स्थितियां सही हो जाएंगी और हालात ठीक होंगे तभी वह वापस आएंगी. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान मंजू ने कहा कि 8 साल पहले जब उन्होंने अपने पति के निधन के बाद उनका कुली का काम शुरू किया, तो जो परेशानियां उन्हें झेलनी पड़ी इस वक्त हालात उससे भी बुरे हैं.
उन्होंने कहा कि उनका जयपुर में खुद का मकान नहीं है. जिसके चलते उन्होंने किराए पर मकान ले रहा है. बीते चार महीने से उनका काम बंद है और वह गांव में थीं. लेकिन उन्हें अपने मकान का 20 हजार रुपये किराया देना पड़ा. यही नहीं उन्हें घर रहने के दौरान दूध पर भी 15 हजार रुपये खर्च करने पड़े. मंजू बताती हैं कि बच्चों की फीस और अन्य खर्च मिला कर उन पर साढ़े तीन महीने में 1 लाख से ज्यादा का कर्ज हो गया है.
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गांव रहते हुए जब खर्च चलाने में मंजू को परेशानी हुई, तो उन्हें संक्रमण के खतरे के बीच काम पर वापस आना पड़ा. मंजू ने जयपुर स्टेशन पहुंच कर अपनी ट्रॉली संभाली लेकिन स्टेशन पर दिनभर में सिर्फ एक ट्रेन आई, लेकिन उन्हें काम नहीं मिला. ये हालत सिर्फ मंजू की ही नहीं बल्कि रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले 174 कुलियों की है.
मंजू देवी को राष्ट्रपति अवार्ड जरूर मिला, लेकिन सरकार से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली. ऐसे में अब मंजू सरकार से गुहार लगा रही है कि उसे सिर्फ जमीन की सहायता दी जाए. क्योंकि काम करने वह खुद सक्षम है. मंजू की परेशानियां सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. बल्कि गांव में जहां वो अपनी मां के साथ रह रही थी. वहां मूंग और मोठ की फसल बोई गई. बारिश ने उन्हें अच्छी फसल होने की उम्मीद दिलाई. लेकिन आसमानी आफत यानी टिड्डियों ने मंजू की चिंता फिर से बढ़ा दी.