जयपुर. प्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स की विदेश यात्रा की उड़ानों पर ब्रेक लग गया है. प्रदेश के आईएएस, आईपीएस और आरएएस अफसर देश-विदेश की यात्राएं करने से कतरा रहे हैं. इन अफसरों की विदेश यात्रा मानों एक सपने जैसा रहा गई है.
गहलोत सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही विदेश यात्रा पर रोक लगा दी थी. हालांकि, रोक कुछ वक्त के बाद खत्म भी कर दी गई, लेकिन इस साल कार्मिक विभाग में एक भी ब्यूरोक्रेट्स ने विदेश जाने का आवेदन नहीं किया. जबकि, कोरोनाकाल से पहले राज्य के कार्मिक विभाग में विभाग की बेहतरी के लिए प्रशिक्षण और योजनाओं को कैसे अच्छी तरह से लागू किया जाए, के नाम पर देश-विदेश यात्राओं का लुत्फ उठाने के लिए सैकड़ों आईएएस अफसरों के आवेदन आते थे.
किसी भी अफसर ने नहीं जताई विदेश जाने की इच्छा
दरअसल, एक वक्त था जब प्रदेश के अफसर किसी ना किसी कारण से विदेश यात्रा के लिए कार्मिक विभाग से अनुमति का बेताबी से इंतज़ार करते थे. साल में एक तो कभी कभी तीन से चार बार प्रशिक्षण के नाम पर विदेश यात्राएं करते रहे हैं. पिछली वसुंधरा सरकार के समय अफसरों ने 75 बार प्रशिक्षण के नाम पर विदेश यात्राएं की, लेकिन राज्य में सत्ता परिवर्तन होते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आर्थिक सेहत का हवाला देते हुए मंत्रियों और अफसरों की विदेश यात्राओं पर रोक लगा दी थी.
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इन 5 अफसरों ने सरकार से मांगी थी विदेश जाने की अनुमति
इस बीच 5 आईएएस अधिकारियों ने जिनमें एच गुइटे, मुग्धा सिन्हा, कुलदीप रांका, सुबोध अग्रवाल और गौरव गोयल ने किसी कम्पनी या अन्य संगठन के खर्चे पर विदेश यात्रा पर जाने की मांगी, लेकिन सरकार ने उन्हें फिर भी अनुमति नहीं दी. हालांकि, बाद में सरकार ने रोक हटा दिया, लेकिन जब तक कोरोना ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया, उसके बाद पिछली साल के 22 मार्च से लेकर इस वर्ष के जून महीने तक किसी भी ब्यूरोक्रेट्स ने हवाई यात्राओं के लिए आवेदन नहीं किया है.
वसुंधरा सरकार में ब्यूरोक्रेट्स का विदेश दौरा
सरकार के अफसरों की इन विदेश यात्राओं पर करोड़ों रुपये खर्च हुए. पिछली सरकार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव वीनू गुप्ता ने उद्योग विभाग की प्रमुख सचिव रहते हुए सर्वाधिक 8 बार विदेश यात्राएं की. उनकी हर यात्रा पर सरकार ने दो से तीन लाख रुपए खर्च किए. वहीं, अन्य अफसरों ने दो से तीन बार विदेश यात्राएं की. सरकार के करोड़ों खर्च करने के बाद अफसरों के विदेशी प्रशिक्षण का लाभ न सरकार को मिलता है और न ही जनता को. क्योंकि जिस विभाग में रहते हुए यह प्रशिक्षण लिया उस प्रशिक्षण के बाद अफसरों के विभाग बदल दिए गए.
'अफसरों के विदेश यात्रा का नहीं मिल पाता है विभाग को लाभ'
पूर्व आईएएस राजेंद्र भाणावत बताते हैं कि आईएएस अफसर इंडस्ट्रीज विजिट, सेमीनार, ट्रेनिंग, प्रोग्राम मैनेजमेंट, स्टडी टूर जैसे कामों के लिए विदेश यात्रा पर जाते रहे हैं. लेकिन इसकी सार्थकता तब होती है जब असफर विदेश आने के बाद उसी विभाग में रहे, ताकि उसने जो बहार से अनुभव लिया है उसका फायदा उस विभाग को मिल सके.
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क्या है आवेदन का फार्मूला
पूर्व आईएएस राजेंद्र भाणावत बताते है कि किसी भी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस को विदेश दौरे के लिए पहले राज्य के कार्मिक विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है. उसके बाद केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है, जबकि आरएएस और आरपीएस को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होती है. विभागों के अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर के अधिकारी जिस विभाग के मुखिया रहते हैं उस विभाग की बेहतरी और योजनाओं को कैसे अच्छी तरह से लागू किया जाए, इसके लिए तीन से सात दिन के प्रशिक्षण पर विदेश जाते रहें हैं, जिसका खर्चा सरकार उठाती है.
गैर सरकारी संगठन भी उठाते हैं अफसरों की यात्रा का खर्च
भाणावत बताते हैं कि कुछ गैर सरकारी संगठन भी अफसरों को मसूरी से लेकर ईशा योग केंद्र तमिलनाडु की यात्रा कराते रहे हैं. इसके आलावा कई बार प्राइवेट कम्पनी या अन्य संगठन अपने खर्चे पर अफसरों को विदेश लेकर जाते हैं, लेकिन इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है.