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स्पेशल: टिड्डी के बाद अब किसानों के लिए आफत बनी 'सफेद लट' - insect specialist arjun singh baloda

प्रकृति की मार से धरती पुत्र कराह रहा है. मौसम के रहमोकरम के लिए बार-बार आसमान की ओर ताकने वाले किसान के अरमानों पर इस बार ओलावृष्टि, कोरोना और टिड्डी दल ने पानी फेर दिया. इन सबसे किसान अभी उबर भी नहीं पाया था कि अब उनके लिए एक और मुसीबत पैर फैलाए खड़ी है. ये मुसीबत 'सफेद लट' है, जो कि इस बार टिड्डी के आंतक से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है.

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किसानों के लिए आफत बना 'सफेद लट'
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Published : Jun 17, 2020, 9:47 PM IST

जयपुर. कोरोना के चलते लागू हुए लॉकडाउन के बीच किसानों की फसल खेतों में ही सड़ गई. नई बुवाई की तो उसे टिड्डी चट कर गई और अब रही-सही कसर पूरी करने के लिए एक और आफत आन खड़ी हुई. वो अपने छोटे-छोटे पैरों से चलकर किसानों के खेतों तक जा पहुंची है. आफत का ये नया चेहरा भले ही छोटा है, लेकिन खेतों की फसल का सफाया करने के लिए काफी है. हम बात कर रहे हैं 'सफेद लट' की...सफेद रंग की इस लट का सिर भूरा और जबड़ा काफी शक्तिशाली होता है, ये बहुभक्षी भी होती है.

किसानों के लिए आफत बना 'सफेद लट'

खासतौर पर ये खरीफ की फसलों जैसे कि बाजरा, मूंगफली, मूंग, मोठ और सब्जियों के पौधों की जड़ों को काटकर नुकसान पहुंचाती है. परंतु मूंगफली जैसी मुसला जड़ वाली फसलों में, बाजरा जैसी झकड़ा जड़ वाली फसलों की अपेक्षा अधिक नुकसान करती है. वैसे तो भृंगों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं और सभी भृंगों की लटें सफेद होती है. परंतु राजस्थान के हल्के बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में होलोट्रीचिया कंसुआंगिना नामक प्रजाति के भृंगों की सफेद लटें अत्याधिक हानि पहुंचाती है.

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लट का सिर भूरा और जबड़ा काफी शक्तिशाली होता है

यह भी पढ़ेंः SPECIAL: अब नहीं झोंका जाएगा किसानों के आंखों में धूल, यहां होगी बीज के गुणवत्ता की जांच

बता दें कि, हल्की बलुई मिट्टी वाले खेत में उगने वाले खरीफ की फसलों के लिए सफेद लट सबसे बड़ी दुश्मन है. फसलों को इस कीट का प्रौढ़ और लट दोनों ही अवस्थाएं हानि पहुंचाती हैं. प्रौढ़ अवस्था में ये पेड़ों की पत्तियों को खाती हैं, जबकि लट अवस्था जमीन में रहकर जीवित पौधों को पूरा नष्ट कर देती है.

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टिड्डी के आंतक से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है सफेद लट

राजस्थान में होलोट्रीचिया कंसुआंगिना प्रजाति भृंगों की सफेद लट एक साल में केवल एक पीढ़ी पूरी करती है. मानसून अथवा इससे पहले की अच्छी वर्षा के बाद इस कीट के भृंग सायंकाल गोधूलि वेला यानि लगभग साढ़े सात बजे से लेकर सात बजकर पैंतालीस मिनट के बीच के समय रोजाना भूमि से बाहर निकलकर आसपास के पोषि वृक्षों पर बैठते हैं.

क्या कहना है कृषि विशेषज्ञों का...

ऑल इंडियन नेटवर्क प्रोजेक्ट नेशनल कोऑर्डिनेटर और कीट विशेषज्ञ डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा के मुताबिक मानसून आने को है और इसका इंतजार किसानों को भी है. लेकिन इसी के साथ सेफद लट का प्रकोप भी शुरू हो जाएगा. जो कि इस बार टिड्डियों से भी ज्यादा खतरनाक साबित होगा. बारिश के समय मादा भृंग के समागम के तीन-चार दिन के बाद गीली मिट्टी में लगभग 8 से 10 सेमी गहराई में अंडे देने शुरू कर देती है. परंतु यह सारे अंडे एक साथ ना देकर किश्तों में एक से दो सप्ताह तक अंडे देती रहती हैं, जिसके बाद उनमें से सफेद लटें निकलती हैं. जो कि अलग-अलग अवस्थाओं में जुलाई के मध्य से अक्टूबर तक पौधों की जड़ों को खाती रहती है.

बहरहाल, किसानों के लिए ये बड़ी आने वाली समस्या जरूर है, लेकिन फिर भी ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. इस विनाशकारी कीट के प्रकोप से खरीफ की फसलों की रक्षा के लिए प्रदेश के किसान कृषि अनुसंधान केंद्र जयपुर में संपर्क करें और वहां से निःशुल्क फेरोमोन ले जाएं. इस फेरोमोन से किसान समय रहते विनाशकारी कीट को मार सकते हैं. अगर एक बार भी सफेद लट खेत में आ गई तो फिर उसको मारना मुश्किल होगा, इसके लिए समय रहते किसान सावधान हो जाएं.

जयपुर. कोरोना के चलते लागू हुए लॉकडाउन के बीच किसानों की फसल खेतों में ही सड़ गई. नई बुवाई की तो उसे टिड्डी चट कर गई और अब रही-सही कसर पूरी करने के लिए एक और आफत आन खड़ी हुई. वो अपने छोटे-छोटे पैरों से चलकर किसानों के खेतों तक जा पहुंची है. आफत का ये नया चेहरा भले ही छोटा है, लेकिन खेतों की फसल का सफाया करने के लिए काफी है. हम बात कर रहे हैं 'सफेद लट' की...सफेद रंग की इस लट का सिर भूरा और जबड़ा काफी शक्तिशाली होता है, ये बहुभक्षी भी होती है.

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खासतौर पर ये खरीफ की फसलों जैसे कि बाजरा, मूंगफली, मूंग, मोठ और सब्जियों के पौधों की जड़ों को काटकर नुकसान पहुंचाती है. परंतु मूंगफली जैसी मुसला जड़ वाली फसलों में, बाजरा जैसी झकड़ा जड़ वाली फसलों की अपेक्षा अधिक नुकसान करती है. वैसे तो भृंगों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं और सभी भृंगों की लटें सफेद होती है. परंतु राजस्थान के हल्के बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में होलोट्रीचिया कंसुआंगिना नामक प्रजाति के भृंगों की सफेद लटें अत्याधिक हानि पहुंचाती है.

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बता दें कि, हल्की बलुई मिट्टी वाले खेत में उगने वाले खरीफ की फसलों के लिए सफेद लट सबसे बड़ी दुश्मन है. फसलों को इस कीट का प्रौढ़ और लट दोनों ही अवस्थाएं हानि पहुंचाती हैं. प्रौढ़ अवस्था में ये पेड़ों की पत्तियों को खाती हैं, जबकि लट अवस्था जमीन में रहकर जीवित पौधों को पूरा नष्ट कर देती है.

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टिड्डी के आंतक से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है सफेद लट

राजस्थान में होलोट्रीचिया कंसुआंगिना प्रजाति भृंगों की सफेद लट एक साल में केवल एक पीढ़ी पूरी करती है. मानसून अथवा इससे पहले की अच्छी वर्षा के बाद इस कीट के भृंग सायंकाल गोधूलि वेला यानि लगभग साढ़े सात बजे से लेकर सात बजकर पैंतालीस मिनट के बीच के समय रोजाना भूमि से बाहर निकलकर आसपास के पोषि वृक्षों पर बैठते हैं.

क्या कहना है कृषि विशेषज्ञों का...

ऑल इंडियन नेटवर्क प्रोजेक्ट नेशनल कोऑर्डिनेटर और कीट विशेषज्ञ डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा के मुताबिक मानसून आने को है और इसका इंतजार किसानों को भी है. लेकिन इसी के साथ सेफद लट का प्रकोप भी शुरू हो जाएगा. जो कि इस बार टिड्डियों से भी ज्यादा खतरनाक साबित होगा. बारिश के समय मादा भृंग के समागम के तीन-चार दिन के बाद गीली मिट्टी में लगभग 8 से 10 सेमी गहराई में अंडे देने शुरू कर देती है. परंतु यह सारे अंडे एक साथ ना देकर किश्तों में एक से दो सप्ताह तक अंडे देती रहती हैं, जिसके बाद उनमें से सफेद लटें निकलती हैं. जो कि अलग-अलग अवस्थाओं में जुलाई के मध्य से अक्टूबर तक पौधों की जड़ों को खाती रहती है.

बहरहाल, किसानों के लिए ये बड़ी आने वाली समस्या जरूर है, लेकिन फिर भी ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. इस विनाशकारी कीट के प्रकोप से खरीफ की फसलों की रक्षा के लिए प्रदेश के किसान कृषि अनुसंधान केंद्र जयपुर में संपर्क करें और वहां से निःशुल्क फेरोमोन ले जाएं. इस फेरोमोन से किसान समय रहते विनाशकारी कीट को मार सकते हैं. अगर एक बार भी सफेद लट खेत में आ गई तो फिर उसको मारना मुश्किल होगा, इसके लिए समय रहते किसान सावधान हो जाएं.

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