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'जादूगर' गहलोत के जादू पर कब और किसने उठाई ऊंगली, देखें ईटीवी भारत की विशेष पेशकश - Rajasthan politics latest news

मरुधरा के सियासी दंगल का 'जादूगर' कहे जाने वाले अशोक गहलोत पिछले 40 साल से राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में बने हुए हैं. इस दौरान कई बार जादूगर के खिलाफ नेताओं ने अपनी आवाज बुलंद की है. इस रिपोर्ट में देखिए कब-कब और किसने उठाई जादूगर के जादू पर ऊंगली.

Chief Minister Ashok Gehlot latest news,  Rajasthan politics latest news
राजस्थान का सियासी जादूगर
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Published : Jul 25, 2020, 4:24 PM IST

जयपुर. मरुधरा के सियासी दंगल का 'जादूगर' कहे जाने वाले अशोक गहलोत पिछले 40 साल से राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में बने हुए हैं. इन दिनों गहलोत के खिलाफ उन्ही के पार्टी के नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है. ये कोई नई बात नहीं है. इसके पहले भी कई नेताओं ने इस जादूगर के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. इस रिपोर्ट में देखिए कब-कब और किसने उठाई जादूगर के जादू पर ऊंगली.

राजस्थान का सियासी 'जादूगर'

परसराम मदेरणा का नहीं चला 'जादू'

साल 1998 राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे परसराम मदेरणा. पश्चिमी राजस्थान में उस वक्त मदेरणा कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा और जाट नेता थे. मदेरणा की अगुवाई में कांग्रेस ने 1998 में विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन उस वक्त मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए मदेरणा का जादू नहीं चल पाया और पार्टी ने युवा नेता अशोक गहलोत की ताजपोशी कर दी. ऐसे में जाट समुदाय के बीच गहलोत को लेकर काफी नाराजगी बढ़ गई.

सियासी दंगल से कर्नल सोनाराम चौधरी गायब

साल 2003 जादूगर की अगुवाई में कांग्रेस विधानसभी चुनाव हार गई. जिसके बाद बाड़मेर से तत्कालीन सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला दिया. उस वक्त सोनाराम खुद जाट चेहरे के रूप में उभरना चाह रहे थे. लेकिन जादूगर ने उनकी एक ना चलने दी और बाड़मेर में ही नए युवा जाट नेता हरीश चौधरी और अनुभवी हेमाराम चौधरी के जरिए जादू दिखाया और सोनाराम को सियासी दंगल से गायब कर दिया.

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राजस्थान का राजनीतिक द्वंद

ताजपोशी से चूक गए डॉ. जोशी

साल 2008 में राहुल गांधी की पसंद माने जाने वाले डॉ. सीपी जोशी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे. माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस जोशी की अगुवाई में चुनाव जीती तो अगले सीएम डॉ. जोशी होंगे. चुनाव हुए और जोशी महज एक वोट से हार गए. इसके बावजूद सीपी जोशी ने सीएम पद के लिए ताल ठोक दी. लेकिन यहां भी गहलोत का जादू चला और एक बार फिर गहलोत की ताजपोशी हुई.

सचिन पायलट Vs अशोक गहलोत

ऐसा भी एक वक्त आया जब गहलोत का जादू नहीं चल पाया. मदेरणा के समय जिस तरह गहलोत युवा नेता थे, उसी तरह गहलोत के समय सचिन पायलट युवा नेता बन कर उभरे. 2013 में मुख्यमंत्री रहते हुए भी जब गहलोत राजस्थान में कमाल नहीं कर पाए और कांग्रेस को 200 में महज 21 सीटें मिली. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को किनारे कर राजस्थान कांग्रेस की कमान 2014 में सचिन पायलट के हाथ में दे दी.

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राजस्थान का सियासी घमासान

पढ़ें- राजस्थान का यह है सियासी इतिहास, पहले भी हुए हैं शह और मात के खेल

राहुल गांधी की पसंद वाले सचिन पायलट महज 40 साल में PCC अध्यक्ष बने. राजस्थान में पायलट ने खूब दौरे किए और युवाओं को कांग्रेस से जोड़ा. इस दौरान पायलट की तेज आंधी गहलोत के जादू को अपने साथ उड़ा ले गई. लेकिन इस दौरान गहलोत ने हार नहीं मानी और लगे रहे. मरूधरा के इस जादूगर ने गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के चुनाव प्रचार में पहली बार सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेला और राहुल को मंदिरों की खूब परिक्रमा करवाई.

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राजस्थान का सियासी संकट

भले ही गुजरात चुनाव कांग्रेस हार गई. लेकिन इन दिनों अशोक गहलोत राहुल के करीब आ गए. देखते ही देखते गहलोत को जनार्दन द्विवेदी की जगह कांग्रेस का संगठन महासचिव बना दिया गया. ऐसे में एक बार फिर पावर लेस हो चुके गहलोत अचानक से ताकतवर हो गए. अब जादूगर ने वापस मरुधरा का रुख किया और 2018 में तमाम चुनावी समीकरण की पोटली बनाकर आगे चल रहे पायलट को जादू के पिटारे में बंद कर दिया और खुद कुर्सी पर बैठ गए. फिलहाल, प्रदेश में चल रहे सियासी समीकरण में गहलोत के पायलट पर लगातार हमले से 'मारवाड़ के गांधी' का पल्ला भारी दिख रहा है.

1980 से 1990 के बीच सबसे ज्यादा CM बदले गए...

  • मार्च 1980 से मार्च 1990 तक के शासन काल में सबसे ज्यादा सीएम बदले गए. राष्ट्रपति शासन के बाद चुनावों में मार्च 1980 में कांग्रेस ने जगन्नाथ पहाड़िया को सीएम बनाया. उनके काम करने के तरीके और ब्यूरोक्रेसी के फीडबैक के बाद आलाकमान ने जुलाई 1981 में उन्हें हटाकर शिवचरण माथुर को सीएम बना दिया.
  • फरवरी 1985 में भरतपुर में मानसिंह एनकाउंटर की घटना हुई. कांग्रेस से जुड़ते जाट समाज के आक्रोश को शांत करने के लिए आलाकमान ने शिवचरण माथुर को हटा दिया और हीरालाल देवपुरा को कार्यवाहक सीएम बना दिया.
  • मार्च 1985 में हरिदेव जोशी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन पार्टी का विरोधी गुट लगातार जोशी के खिलाफ एक्टिव रहा. इसके बाद राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को बुलाकर इस्तीफा ले लिया और असम का राज्यपाल बना कर भेज दिया.
  • जनवरी 1988 में शिवचरण माथुर को फिर से मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन लोकसभा चुनावों में हुई हार के बाद सीएम शिवचरण माथुर का इस्तीफा हो गया. हरिदेव जोशी को फिर से दिसंबर 1989 में मुख्यमंत्री बनाया गया.

जयपुर. मरुधरा के सियासी दंगल का 'जादूगर' कहे जाने वाले अशोक गहलोत पिछले 40 साल से राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में बने हुए हैं. इन दिनों गहलोत के खिलाफ उन्ही के पार्टी के नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है. ये कोई नई बात नहीं है. इसके पहले भी कई नेताओं ने इस जादूगर के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. इस रिपोर्ट में देखिए कब-कब और किसने उठाई जादूगर के जादू पर ऊंगली.

राजस्थान का सियासी 'जादूगर'

परसराम मदेरणा का नहीं चला 'जादू'

साल 1998 राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे परसराम मदेरणा. पश्चिमी राजस्थान में उस वक्त मदेरणा कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा और जाट नेता थे. मदेरणा की अगुवाई में कांग्रेस ने 1998 में विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन उस वक्त मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए मदेरणा का जादू नहीं चल पाया और पार्टी ने युवा नेता अशोक गहलोत की ताजपोशी कर दी. ऐसे में जाट समुदाय के बीच गहलोत को लेकर काफी नाराजगी बढ़ गई.

सियासी दंगल से कर्नल सोनाराम चौधरी गायब

साल 2003 जादूगर की अगुवाई में कांग्रेस विधानसभी चुनाव हार गई. जिसके बाद बाड़मेर से तत्कालीन सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला दिया. उस वक्त सोनाराम खुद जाट चेहरे के रूप में उभरना चाह रहे थे. लेकिन जादूगर ने उनकी एक ना चलने दी और बाड़मेर में ही नए युवा जाट नेता हरीश चौधरी और अनुभवी हेमाराम चौधरी के जरिए जादू दिखाया और सोनाराम को सियासी दंगल से गायब कर दिया.

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राजस्थान का राजनीतिक द्वंद

ताजपोशी से चूक गए डॉ. जोशी

साल 2008 में राहुल गांधी की पसंद माने जाने वाले डॉ. सीपी जोशी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे. माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस जोशी की अगुवाई में चुनाव जीती तो अगले सीएम डॉ. जोशी होंगे. चुनाव हुए और जोशी महज एक वोट से हार गए. इसके बावजूद सीपी जोशी ने सीएम पद के लिए ताल ठोक दी. लेकिन यहां भी गहलोत का जादू चला और एक बार फिर गहलोत की ताजपोशी हुई.

सचिन पायलट Vs अशोक गहलोत

ऐसा भी एक वक्त आया जब गहलोत का जादू नहीं चल पाया. मदेरणा के समय जिस तरह गहलोत युवा नेता थे, उसी तरह गहलोत के समय सचिन पायलट युवा नेता बन कर उभरे. 2013 में मुख्यमंत्री रहते हुए भी जब गहलोत राजस्थान में कमाल नहीं कर पाए और कांग्रेस को 200 में महज 21 सीटें मिली. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को किनारे कर राजस्थान कांग्रेस की कमान 2014 में सचिन पायलट के हाथ में दे दी.

Chief Minister Ashok Gehlot latest news,  Rajasthan politics latest news
राजस्थान का सियासी घमासान

पढ़ें- राजस्थान का यह है सियासी इतिहास, पहले भी हुए हैं शह और मात के खेल

राहुल गांधी की पसंद वाले सचिन पायलट महज 40 साल में PCC अध्यक्ष बने. राजस्थान में पायलट ने खूब दौरे किए और युवाओं को कांग्रेस से जोड़ा. इस दौरान पायलट की तेज आंधी गहलोत के जादू को अपने साथ उड़ा ले गई. लेकिन इस दौरान गहलोत ने हार नहीं मानी और लगे रहे. मरूधरा के इस जादूगर ने गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के चुनाव प्रचार में पहली बार सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेला और राहुल को मंदिरों की खूब परिक्रमा करवाई.

Chief Minister Ashok Gehlot latest news,  Rajasthan politics latest news
राजस्थान का सियासी संकट

भले ही गुजरात चुनाव कांग्रेस हार गई. लेकिन इन दिनों अशोक गहलोत राहुल के करीब आ गए. देखते ही देखते गहलोत को जनार्दन द्विवेदी की जगह कांग्रेस का संगठन महासचिव बना दिया गया. ऐसे में एक बार फिर पावर लेस हो चुके गहलोत अचानक से ताकतवर हो गए. अब जादूगर ने वापस मरुधरा का रुख किया और 2018 में तमाम चुनावी समीकरण की पोटली बनाकर आगे चल रहे पायलट को जादू के पिटारे में बंद कर दिया और खुद कुर्सी पर बैठ गए. फिलहाल, प्रदेश में चल रहे सियासी समीकरण में गहलोत के पायलट पर लगातार हमले से 'मारवाड़ के गांधी' का पल्ला भारी दिख रहा है.

1980 से 1990 के बीच सबसे ज्यादा CM बदले गए...

  • मार्च 1980 से मार्च 1990 तक के शासन काल में सबसे ज्यादा सीएम बदले गए. राष्ट्रपति शासन के बाद चुनावों में मार्च 1980 में कांग्रेस ने जगन्नाथ पहाड़िया को सीएम बनाया. उनके काम करने के तरीके और ब्यूरोक्रेसी के फीडबैक के बाद आलाकमान ने जुलाई 1981 में उन्हें हटाकर शिवचरण माथुर को सीएम बना दिया.
  • फरवरी 1985 में भरतपुर में मानसिंह एनकाउंटर की घटना हुई. कांग्रेस से जुड़ते जाट समाज के आक्रोश को शांत करने के लिए आलाकमान ने शिवचरण माथुर को हटा दिया और हीरालाल देवपुरा को कार्यवाहक सीएम बना दिया.
  • मार्च 1985 में हरिदेव जोशी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन पार्टी का विरोधी गुट लगातार जोशी के खिलाफ एक्टिव रहा. इसके बाद राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को बुलाकर इस्तीफा ले लिया और असम का राज्यपाल बना कर भेज दिया.
  • जनवरी 1988 में शिवचरण माथुर को फिर से मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन लोकसभा चुनावों में हुई हार के बाद सीएम शिवचरण माथुर का इस्तीफा हो गया. हरिदेव जोशी को फिर से दिसंबर 1989 में मुख्यमंत्री बनाया गया.
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