जयपुर. पायलट कैम्प के वरिष्ठ कांग्रेस विधायक हेमाराम के इस्तीफे ने आज राजस्थान में 10 महीने से शांत चल रही राजनीति में फिर राजनीतिक उफान ला दिया है. कहने को तो कहा जा रहा है कि मंत्री हरीश चौधरी से नाराजगी, गुड़ामलानी विधानसभा में हेमाराम के काम नहीं होना और हाल ही में नियुक्त किये गए कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर की नियुक्ति में हेमाराम की अनदेखी इसका कारण बनी है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के पीछे असली कारण तो वो समझौता है, जो 10 महीने पहले पायलट कैम्प के साथ हुआ था और उसपर बनी कमेटी ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. इसपर भी प्रदेश कांग्रेस की दो दिन पहले हुई वर्चुअल बैठक ने भी आग में घी का काम किया, जिसमें सचिन पायलट को बोलने का मौका नहीं दिया गया. साथ ही मुख्यमंत्री के वे बयान, जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भरी मीटिंग में कहा था कि कोरोना काल में चाहे मेरे पक्ष के हो, विपक्षी हो या फिर मेरे विरोधी सभी को कोरोना काल में मिलकर काम करना चाहिए. कहा जा रहा है कि हेमाराम के इस्तीफे के पीछे यही कारण है.
और भी आ सकते हैं पायलट खेमे के इस्तीफे
आज के घटनाक्रम के बाद राजस्थान की कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर हलचल शुरू हो गई है और कहा जा रहा है कि हेमाराम के इस्तीफे में पूर्व राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट की सहमति थी, क्योंकि पायलट के साथ बगावत करने में हेमाराम केवल 19 में से एक विधायक नहीं थे, बल्कि पायलट के मुख्य सलाहकारों में से एक थे. ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि क्या पायलट कैम्प में रहे और भी विधायक इस्तीफे दे सकते हैं, तो इसका जवाब खुद पायलट कैम्प के वरिष्ठ विधायक विश्वेन्द्र सिंह के बेटे अनिरुद्ध सिंह ने अपने ट्वीट में आज के इस्तीफे को शुरुआत बताया है, जो इशारा कर रहा है कि आगे नाराजगी और बढ़ सकती है. वहीं पायलट की एमपी विधायक मुरारी लाल मीणा ने भी अपने ट्विटर अकाउंट पर हेमाराम के इस्तीफे के निर्णय को दुखद बताया है.
हरीश चौधरी का उभरना भी बना इस्तीफे का कारण
पायलट कैंप ने जब बगावती रुख अपनाया था, तो कहां जा रहा है कि समझौते में पायलट कैम्प के विधायकों को वापस सम्मान और पद देने की बात कही गई थी. मंत्री बनने वाले विधायकों में हेमाराम चौधरी का भी नाम था, लेकिन लगातार 10 महीने तक इंतजार करने के बाद भी कैबिनेट में न तो कोई विस्तार हुआ और न ही इस तरीके की कोई उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीनों में कोई कैबिनेट विस्तार होगा. ऐसे में पहले से ही बाड़मेर में अपने काम नहीं होने से नाराज चल रहे हेमाराम लगातार कैबिनेट मंत्री हरीश चौधरी के बढ़ते रसूख से आहत थे, जिसके चलते आज उन्होंने इस्तीफा देने का निर्णय लिया है.
दबाव की राजनीति का संकेत
हेमाराम का इस्तीफा साफ तौर पर पायलट कैंप की ओर से दबाव की राजनीति कहलाएगा, लेकिन जिस तरीके से स्पीकर सीपी जोशी ने शाम होते-होते यह स्वीकार कर लिया कि उनके पास विधायक हेमाराम चौधरी का इस्तीफा आ गया है और वह उस पर नियम अनुरूप कार्रवाई करेंगे. इससे साफ है कि दबाव की राजनीति के बदले दूसरे दबाव की राजनीति भी शुरू हो गई हैय. जहां एक ओर हेमाराम ने इस्तीफा देकर पायलट कैंप के साथ हुए समझौते को पूरा करने का दबाव बनाया है.
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वहीं अगर स्पीकर सीपी जोशी कहीं यह इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं तो सीधा संदेश यह भी चला जाएगा कि अगर दबाव बनाने की कोशिश की गई तो, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जिससे पायलट कैम्प के विधायकों में भी यह मैसेज चला जाए कि अगर वह भी इस्तीफा देंगे, तो उसे भी स्वीकार किया जा सकता है. बता दें कि इससे पहले भी जब हेमाराम चौधरी ने अपना इस्तीफा स्पीकर सीपी जोशी को दिया था, तो यह बात कभी सामने नहीं आई और न ही कभी विधानसभा ने ऐसा कोई बयान जारी किया कि उनके पास हेमाराम चौधरी का इस्तीफा आया था. ऐसे में इस बार इस्तीफा आते ही विधानसभा का यह बता देना कि उनको इस्तीफा मिल चुका है. अपने आप में यह बताता है कि कहीं दबाव की राजनीति उल्टी न पड़ जाए.