जयपुर. 'साहित्य के महाकुंभ' जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 14वें संस्करण का शुक्रवार को वर्चुअल आगाज हुआ. पहले सत्र की शुरुआत गीतकार प्रसून जोशी और शास्त्रीय गायिका विद्या शाह के सेशन की हुई. विद्या शाह के सवालों का गीतकार प्रसून जोशी ने खूबसूरत जवाब दिए. वहीं, प्रसून जोशी ने कहा कि लोक संगीत बार-बार सुनने के बावजूद पुराना नहीं पड़ता है.
साथ ही उन्होंने कहा कि ये अगर उन्हीं लोगों के हाथ में रहती है, जिनसे उनको प्यार है, तो उसकी खूबसूरती और बढ़ती है. यदि वह गलत हाथों में पड़ जाता है तो बुरा होता है. मैंने एक शब्द का प्रयोग किया था, पाठशाला, पहले सोचा कि उसे लोग नहीं समझेंगे, लेकिन लोग समझने लगे. ऐसे ही लोक संगीत में कोई मिलावट करे तो वह नहीं चलेगा. प्रसून जोशी ने कहा कि राग पहाड़ी का जन्म तो कहीं पहाड़ों से ही हुआ है. चाहे उसे लोक में सुनें या क्लासिकल में.
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यह कई अलग-अलग रूप में मिलेगा. बात यह है कि लोक संगीत इतना हाथों-हाथ लिया जाता है कि आपके मन-मस्तिष्क में बैठ जाता है. यह वह पत्थर है जो बेहद तराशा हुआ है. वह सदियों से एक चट्टान से घिसता हुआ आता है. वह इतने लोगों के हाथों से गुजरता है और अंतत: उसमें गहराई आ जाती है. विद्या शाह ने कहा कि लोक संगीत की उपस्थिति हिन्दुस्तानी संगीत की दुनिया में रही है. उसमें 200 साल पहले ठुमरी-दादरा गाया जाता था. लोक संगीत इतना तराशा हुआ क्यों है, इसकी वजह यहीं हो सकती है कि वह हर जनता के लिए है. लोक संगीत की दुनिया में जो भी थीम हैं, वे शास्त्रीय संगीत में भी शामिल हैं. इसके प्रसंग भी बेहद सुंदर हैं.
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इसके जवाब में प्रसून ने कहा कि संगीत में कहीं न कहीं एक सामूहिक अवचेतन है, एक सामूहिक क्रिएशन है. जब भी आप अपनी छाप छोड़ने की बात करते हैं. उसमें एक अलग चीज आती है. इसमें कलाकार की इगो सामने आती है. मैं इसके इगो पार्ट की आलोचना नहीं कर रहा, बल्कि यह इसकी सुंदरता है. एक आदमी कितना तराश सकता है. जब एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे तक जाता है तो उसकी जो खूबसूरती होती है. वह उसकी चमक के रूप में रिफ्लेक्ट होती है.
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प्रसून जोशी ने कहा कि वह इन दिनों ठुमरी पर काम कर रहे हैं. उसमें भी लोक संगीत का अंश है. उन्होंने यह भी कहा कि हमारी परंपरा आज लोकगीतों की वजह से ही जिंदा है. फसल और जमीन के लिए क्या-क्या करना चाहिए, यह आपको गीतों में मिलता है. श्रम गीत- जैसे जोर लगाकर होई श्या, बाल गीत, तीज त्योहारों से जुड़े गीत होते थे. जो हमारे जीवन को परिलक्षित करते थे. यह लोक, खुशी, उल्लास, दुख भी तो लोक संगीत है.