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समाज और परिवार के सहयोग के बिना संभव नहीं डिप्रेशन का इलाज : शुभ्रता प्रकाश - डिप्रेशन का इलाज

डिप्रेशन एक उदासी नहीं, बल्कि एक बीमारी है और बीमारी की तरह ही इसका इलाज किया जाना चाहिए. डिप्रेशन की शुरूआत परिवार और समाज से ही होती है. लिहाजा डिप्रेशन का इलाज परिवार और समाज के सहयोग के बिना संभव नहीं है.

IAS Association Jaipur, आई.ए.एस एसोसिएशन जयपुर
डिप्रेशन पर हुआ संवाद कार्यक्रम
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Published : Dec 2, 2019, 8:46 PM IST

जयपुर. IAS एसोसिएशन की तरफ से रविवार को साहित्यिक संवाद कार्यक्रम हुआ, जिसमें IRS अधिकारी और लेखक शुभ्रता प्रकाश की पुस्तक 'द वर्डः ए सर्वाइवर गाइड टू डिप्रेशन' पर संवाद हुआ. SMS हॉस्पिटल के मनोवैज्ञानिक हैड डॉ. आर के सोलंकी, अपेक्स हॉस्पिटल के निदेशक और फाउंडर शीनू झंवर ने संवाद किया.

शुभ्रता प्रकाश के मुताबिक वे खुद 10 सालों तक डिप्रेशन में रहीं और 5 साल तक उन्हें पता ही नहीं चला, कि वे डिप्रेशन की शिकार हैं. बीमारी से उबरने के बाद ही समाज की इस आम, लेकिन गंभीर बीमारी से लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से उन्होंने ये पुस्तक लिखी है, जो डिप्रेशन में आये लोगों को उबारने में मदद करती है.

'डिप्रेशन उदासी नहीं, बल्कि बीमारी है'

उन्होंने ये भी कहा, कि समाज में प्रचलित कई तरह की धारणाओं को तोड़ने के लिए ये किताब लिखी है, ताकि अवसाद पर काबू पाया जा सके और मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके. पुस्तक में बीमारी के लक्षण और उपाय हैं, साथ ही ये भी बताया गया है, कि पुस्तक में खुद से लड़ना और बीमारी से उबरना बताया गया है.

शुभ्रता ने कहा, कि कई लोगों को पता भी नहीं चलता,कि डिप्रेशन की कौन-सी स्टेज से गुजर रहे हैं. डिप्रेशन से उबरने के लिए दवाई के साथ ही साइको थैरेपी और परिवार का सहयोग बहुत जरूरी है. डिप्रेशन जेनेटिकल और वातावरण सहित दूसरे प्रभावों से होता है और आज तक इसका कोई कारण वैज्ञानिकों को भी पता नहीं चल पाया है, इसलिए समाज और परिवार की ये जिम्मेदारी है, कि बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं डालें, उनसे खुलकर बात करें और फ्रेंडली माहौल उपलब्ध कराएं.

डॉ. आर के सोलंकी ने कहा, कि ये पुस्तक डिप्रेशन के प्रति समाज मे फैली खराब मानसिकता को दूर करती है और लोगों को डिप्रेशन के प्रति सचेत कर सही इलाज के लिए प्रेरित करती है. उन्होंने कहा, कि अकेले उनके पास ही रोजाना डिप्रेशन के दो से चार बच्चे आते हैं. ऐसे में इस बीमारी की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है. इस गंभीर बीमारी से जागरूक हो कर सही समय पर इलाज करना जरूरी है. डिप्रेशन की वजह से कई लोग वीआरएस लेने को मजबूर हो रहे हैं. सामाजिक वातावरण को सुधार कर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है.

पढ़ें- पहली बार वेयरहाउस ई-रिसिप्ट के माध्यम से किसानों को हो रहा भुगतान, 7 दिन के अंदर पहुंच रहा खाते में पैसा

वहीं शीनू झंवर ने कहा, कि डिप्रेशन दिमाग में रसायन के स्राव के कारण होता है और प्रत्येक व्यक्ति में इसके अलग-अलग लक्षण होते हैं. सभी का इलाज भी अलग-अलग तरीके से होता है. जिसे डिप्रेशन होता है, उसे इसका पता नहीं चलता है और ये धीरे-धीरे गंभीर हो जाता है. इसके कारण व्यक्ति मौत को गले लगा लेता है, लिहाजा समय पर इसका इलाज जरूरी है.

IAS एसोसिएशन की साहित्यिक सचिव मुग्धा सिन्हा ने कहा, कि डिप्रेशन पीड़ित व्यक्ति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और समय पर परिजन सहयोग करें और इलाज कर उसे उबारने में सहयोग करें, ताकि वो बेहतर जीवन के साथ समाज को भी खुशियां दे सकें. इस अवसर पर वरिष्ठ अधिकारी, डॉक्टर्स, प्रोफेसर, मनोवैज्ञानिक और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे.

जयपुर. IAS एसोसिएशन की तरफ से रविवार को साहित्यिक संवाद कार्यक्रम हुआ, जिसमें IRS अधिकारी और लेखक शुभ्रता प्रकाश की पुस्तक 'द वर्डः ए सर्वाइवर गाइड टू डिप्रेशन' पर संवाद हुआ. SMS हॉस्पिटल के मनोवैज्ञानिक हैड डॉ. आर के सोलंकी, अपेक्स हॉस्पिटल के निदेशक और फाउंडर शीनू झंवर ने संवाद किया.

शुभ्रता प्रकाश के मुताबिक वे खुद 10 सालों तक डिप्रेशन में रहीं और 5 साल तक उन्हें पता ही नहीं चला, कि वे डिप्रेशन की शिकार हैं. बीमारी से उबरने के बाद ही समाज की इस आम, लेकिन गंभीर बीमारी से लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से उन्होंने ये पुस्तक लिखी है, जो डिप्रेशन में आये लोगों को उबारने में मदद करती है.

'डिप्रेशन उदासी नहीं, बल्कि बीमारी है'

उन्होंने ये भी कहा, कि समाज में प्रचलित कई तरह की धारणाओं को तोड़ने के लिए ये किताब लिखी है, ताकि अवसाद पर काबू पाया जा सके और मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके. पुस्तक में बीमारी के लक्षण और उपाय हैं, साथ ही ये भी बताया गया है, कि पुस्तक में खुद से लड़ना और बीमारी से उबरना बताया गया है.

शुभ्रता ने कहा, कि कई लोगों को पता भी नहीं चलता,कि डिप्रेशन की कौन-सी स्टेज से गुजर रहे हैं. डिप्रेशन से उबरने के लिए दवाई के साथ ही साइको थैरेपी और परिवार का सहयोग बहुत जरूरी है. डिप्रेशन जेनेटिकल और वातावरण सहित दूसरे प्रभावों से होता है और आज तक इसका कोई कारण वैज्ञानिकों को भी पता नहीं चल पाया है, इसलिए समाज और परिवार की ये जिम्मेदारी है, कि बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं डालें, उनसे खुलकर बात करें और फ्रेंडली माहौल उपलब्ध कराएं.

डॉ. आर के सोलंकी ने कहा, कि ये पुस्तक डिप्रेशन के प्रति समाज मे फैली खराब मानसिकता को दूर करती है और लोगों को डिप्रेशन के प्रति सचेत कर सही इलाज के लिए प्रेरित करती है. उन्होंने कहा, कि अकेले उनके पास ही रोजाना डिप्रेशन के दो से चार बच्चे आते हैं. ऐसे में इस बीमारी की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है. इस गंभीर बीमारी से जागरूक हो कर सही समय पर इलाज करना जरूरी है. डिप्रेशन की वजह से कई लोग वीआरएस लेने को मजबूर हो रहे हैं. सामाजिक वातावरण को सुधार कर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है.

पढ़ें- पहली बार वेयरहाउस ई-रिसिप्ट के माध्यम से किसानों को हो रहा भुगतान, 7 दिन के अंदर पहुंच रहा खाते में पैसा

वहीं शीनू झंवर ने कहा, कि डिप्रेशन दिमाग में रसायन के स्राव के कारण होता है और प्रत्येक व्यक्ति में इसके अलग-अलग लक्षण होते हैं. सभी का इलाज भी अलग-अलग तरीके से होता है. जिसे डिप्रेशन होता है, उसे इसका पता नहीं चलता है और ये धीरे-धीरे गंभीर हो जाता है. इसके कारण व्यक्ति मौत को गले लगा लेता है, लिहाजा समय पर इसका इलाज जरूरी है.

IAS एसोसिएशन की साहित्यिक सचिव मुग्धा सिन्हा ने कहा, कि डिप्रेशन पीड़ित व्यक्ति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और समय पर परिजन सहयोग करें और इलाज कर उसे उबारने में सहयोग करें, ताकि वो बेहतर जीवन के साथ समाज को भी खुशियां दे सकें. इस अवसर पर वरिष्ठ अधिकारी, डॉक्टर्स, प्रोफेसर, मनोवैज्ञानिक और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे.

Intro:जयपुर। समाज में आम धारणा है कि डिप्रेशन एक उदासी है जबकि वास्तविकता यह है कि यह एक उदासी नही बल्कि एक बीमारी है और बीमारी की तरह ही इसका इलाज किया जाना चाहिए। समाज डिप्रेशन को एक कंलक के रूप में मानता है। इसकी शुरूआत परिवार एवं समाज से ही होती है अतः ऎसे में डिप्रेशन का इलाज परिवार एवं समाज के सहयोग के बिना संभव नही है। यह जानकारी आई.आर.एस अधिकारी शुभ्रता प्रकाश ने दी।Body:आई.ए.एस एसोसियेशन की तरफ से रविवार को साहित्यिक संवाद कार्यक्रम के तहत आई.आर.एस शुभ्रता प्रकाश की पुस्तक ‘द वर्डः ए सर्वाइवर गाइड टू डिप्रेशन‘ पर एस.एम.एस हॉस्पिटल के मनोवैज्ञानिक हैड डॉ.आर. के. सोलंकी तथा अपेक्स हॉस्पिटल के निदेशक एवं फाउंडर शीनू झंवर लेखिका से उनकी पुस्तक पर संवाद किया। लेखिका ने कहा कि वे स्वयं 10 वर्षों तक डिप्रेशन में रही और 5 वर्ष तक मुझे पता ही नही चला, कि मुझे डिप्रेशन की बीमारी है। बीमारी से उबरने के बाद ही समाज की इस आम लेकिन गंभीर बीमारी से लोगो को जागरूक करने के उद्दे्श्य से इस पुस्तक की रचना की गई है। उन्होने कहा कि मेरे जीवन और मेरी बीमारी ,मेरी गोपनीयता और मेरे परिवार के बीच संतुलन की यह कहानी मेरी जीवन की नही बल्कि मेरी बीमारी की कहानी है जो डिप्रेशन मे आये लोगो को उबारने में मदद करती है। उन्होंने कहा कि कई प्रकार की धारणाएं जो समाज में प्रचलित है उन्हें तोड़ने के लिए यह किताब लिखी है ताकि अवसाद पर काबू पाया जा सके और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहा जा सके। इसके माध्यम से इस बीमारी के लक्षण और उपायों के बारे में बताते हुए खुद से लड़ना और बीमारी से उबरना बताया गया है।
शुभ्रता ने कहा कि कई लोगो को पता भी नही चलता की डिप्रेशन की कौनसी स्टेज से गुजर रहे है। डिप्रेशन से उबरने के लिए दवाई के साथ-साथ साइको थैरेपी एवं परिवार का सहयोग होना बहुत आवश्यक है। डिप्रेशन जेनेटिकल एवं वातावरण सहित अन्य प्रभावो से होता है और आज तक इसका कोई कारण वैज्ञानिकों को भी पता नही चल पाया है अतः समाज एवं परिवार की यह जिम्मेदारी है कि बच्चो पर किसी प्रकार का दबाव नही डाले , उनसे खुलकर बात करे एवं फ्रेंडली माहौल उपलब्ध करायें।
डॉ. आर.के.सोलंकी ने कहा कि लेखिका की यह पुस्तक डिप्रेशन की प्रति समाज मे फैली इस कंलक की मानसिकता को दूर करती है एवं लोगो को डिप्रेशन के प्रति सचेत कर सही इलाज के लिए प्रेरित करती है । उन्होंने कहा कि प्रति दिन डिप्रेशन के दो से चार बच्चें मेरे पास आते है ऎसे में और कितने बच्चे अन्य डॉक्टर्स के पास जाते होंगे। ऎसे में इस गम्भीर बीमारी से जागरूक हो कर इस का सही समय पर इलाज करना आवश्यक है। डिप्रेशन के कारण कही लोग वीआरएस लेने को मजबूर हो रहे है। अतः सामाजिक वातावरण को सुधार कर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
शीनू झंवर ने कहा कि डिप्रेशन दिमाग में रसायन के स्राव के कारण होता है और प्रत्येक व्यक्ति में इसके अलग-अलग लक्षण होते है और सभी का इलाज भी अलग -अलग तरीके से होता है। जिसको होता है। उसको पता नहीं चलता है और धीरे-धीरे गंभीर होता है। इसके कारण व्यक्ति मृत्यु को गले लगा लेता है। अतः समय पर इसका इलाज जरूरी है ।
आई.ए.एस एसोसियेशन की साहित्यिक सचिव मुग्धा सिन्हा ने कहा कि डिप्रेशन पीडित व्यक्ति को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए और समय पर परिवार उसका सहयोग करें एवं इलाज कर उसे उबारने में सहयोग करें ताकि वह बेहतर जीवन के साथ समाज को भी खुशियां दे सकें। इस अवसर पर वरिष्ठ अधिकारी, डॉक्टर्स, प्रोफेसर,मनोवैज्ञानिक एवं छात्र -छात्रायें उपस्थित थें।

बाईट आई.आर.एस अधिकारी शुभ्रता प्रकाश, लेखिकाConclusion:
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