जयपुर. IAS एसोसिएशन की तरफ से रविवार को साहित्यिक संवाद कार्यक्रम हुआ, जिसमें IRS अधिकारी और लेखक शुभ्रता प्रकाश की पुस्तक 'द वर्डः ए सर्वाइवर गाइड टू डिप्रेशन' पर संवाद हुआ. SMS हॉस्पिटल के मनोवैज्ञानिक हैड डॉ. आर के सोलंकी, अपेक्स हॉस्पिटल के निदेशक और फाउंडर शीनू झंवर ने संवाद किया.
शुभ्रता प्रकाश के मुताबिक वे खुद 10 सालों तक डिप्रेशन में रहीं और 5 साल तक उन्हें पता ही नहीं चला, कि वे डिप्रेशन की शिकार हैं. बीमारी से उबरने के बाद ही समाज की इस आम, लेकिन गंभीर बीमारी से लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से उन्होंने ये पुस्तक लिखी है, जो डिप्रेशन में आये लोगों को उबारने में मदद करती है.
उन्होंने ये भी कहा, कि समाज में प्रचलित कई तरह की धारणाओं को तोड़ने के लिए ये किताब लिखी है, ताकि अवसाद पर काबू पाया जा सके और मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके. पुस्तक में बीमारी के लक्षण और उपाय हैं, साथ ही ये भी बताया गया है, कि पुस्तक में खुद से लड़ना और बीमारी से उबरना बताया गया है.
शुभ्रता ने कहा, कि कई लोगों को पता भी नहीं चलता,कि डिप्रेशन की कौन-सी स्टेज से गुजर रहे हैं. डिप्रेशन से उबरने के लिए दवाई के साथ ही साइको थैरेपी और परिवार का सहयोग बहुत जरूरी है. डिप्रेशन जेनेटिकल और वातावरण सहित दूसरे प्रभावों से होता है और आज तक इसका कोई कारण वैज्ञानिकों को भी पता नहीं चल पाया है, इसलिए समाज और परिवार की ये जिम्मेदारी है, कि बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं डालें, उनसे खुलकर बात करें और फ्रेंडली माहौल उपलब्ध कराएं.
डॉ. आर के सोलंकी ने कहा, कि ये पुस्तक डिप्रेशन के प्रति समाज मे फैली खराब मानसिकता को दूर करती है और लोगों को डिप्रेशन के प्रति सचेत कर सही इलाज के लिए प्रेरित करती है. उन्होंने कहा, कि अकेले उनके पास ही रोजाना डिप्रेशन के दो से चार बच्चे आते हैं. ऐसे में इस बीमारी की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है. इस गंभीर बीमारी से जागरूक हो कर सही समय पर इलाज करना जरूरी है. डिप्रेशन की वजह से कई लोग वीआरएस लेने को मजबूर हो रहे हैं. सामाजिक वातावरण को सुधार कर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है.
वहीं शीनू झंवर ने कहा, कि डिप्रेशन दिमाग में रसायन के स्राव के कारण होता है और प्रत्येक व्यक्ति में इसके अलग-अलग लक्षण होते हैं. सभी का इलाज भी अलग-अलग तरीके से होता है. जिसे डिप्रेशन होता है, उसे इसका पता नहीं चलता है और ये धीरे-धीरे गंभीर हो जाता है. इसके कारण व्यक्ति मौत को गले लगा लेता है, लिहाजा समय पर इसका इलाज जरूरी है.
IAS एसोसिएशन की साहित्यिक सचिव मुग्धा सिन्हा ने कहा, कि डिप्रेशन पीड़ित व्यक्ति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और समय पर परिजन सहयोग करें और इलाज कर उसे उबारने में सहयोग करें, ताकि वो बेहतर जीवन के साथ समाज को भी खुशियां दे सकें. इस अवसर पर वरिष्ठ अधिकारी, डॉक्टर्स, प्रोफेसर, मनोवैज्ञानिक और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे.