जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि चिकित्सीय सुविधाओं सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं में पहचान पत्र के अभाव में ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव नहीं किया जाए.
इसके साथ ही अदालत ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए दिशा निर्देशों की पालना करने के निर्देश दिए हैं. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश शालिनी श्योराण की ओर दायर याचिका में पेश प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए दिए.
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प्रार्थना पत्र में कहा गया कि ट्रांसजेंडर्स को अलग से प्रमाण पत्र या परिचय पत्र नहीं दिया जाता है. इसके अभाव में उन्हें चिकित्सा सहित अन्य सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता. प्रार्थना पत्र पर जवाब देने के लिए अदालत ने राज्य सरकार को 1 माह का समय देते हुए पहचान पत्र के अभाव में ट्रांसजेंडर्स के साथ कल्याणकारी योजना में भेदभाव नहीं करने को कहा है.
याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2018 में ट्रांसजेंडर्स की जनसंख्या प्रदेश में करीब 75 हो गई है. राज्य सरकार ने इनके कल्याण के लिए ट्रांसजेंडर (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट, 2019 बनाया है.
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अधिनियम के तहत ट्रांसजेंडर को अपने परिवार से अलग नहीं किया जाएगा. वहीं इनके लिए अलग से शौचालय भी बनाए जाएंगे. याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 को आदेश जारी कर इन्हें सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा मानते हुए आरक्षण देने सहित अन्य प्रावधान 6 माह में लागू करने को कहा था.
इसके बावजूद इन्हें आज तक लागू नहीं किया गया. वहीं अधिनियम बनाने के बाद उसके प्रावधानों को लागू करने के संबंध में नियम ही नहीं बनाए गए हैं. इसके चलते अधिनियम भी लागू नहीं हो पा रहा है.