जयपुर. एनजीटी के निर्देशों के अनुसार वर्षों से शहरों में लगे कचरे के ढेर को निस्तारित किया जाना है. इसके लिए तकरीबन 400 करोड़ रुपए की आवश्यकता है. लेकिन अभी विभाग के पास ये फंड उपलब्ध नहीं है. जिसकी वजह से सभी नगरीय निकायों में मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी प्लांट नहीं लग पाए हैं. यही नहीं, प्रदेश में महज एक शहर ऐसा है जहां सीएंडडब्लू वेस्ट प्लांट है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, मेडिकल कचरा और निर्माण कार्यों के कचरे के निस्तारण से संबंधित कचरा प्रबंधन नियम 2016 लागू किए थे. लेकिन एनजीटी की गाइडलाइन को धरातल पर उतारने के लिए नगरीय निकायों के सामने बजट की समस्या देखने को मिली. नतीजन राजस्थान में नगरीय निकायों में डोर टू डोर कचरा संग्रहण तो हो रहा है, लेकिन इस कचरे का सेग्रीगेशन और उसे रीसाइकिल करने में विभाग फेल साबित हुआ है. इसे लेकर ईटीवी भारत ने स्वायत्त शासन विभाग के चीफ इंजीनियर भूपेंद्र माथुर से बात की.
उन्होंने बताया कि एनजीटी के दिशा निर्देशों की पालना की जा रही है. जनवरी 2020 को एनजीटी द्वारा जो निर्देश जारी किए गए थे, उसमें डोर टू डोर कचरा संग्रहण, सेग्रीगेशन, कचरे का निस्तारण और लेगीसी वेस्ट (सालों से पड़ा हुआ पुराना कचरा) के निस्तारण के निर्देश दिए गए थे. उन्होंने माना कि एनजीटी के निर्देशों पर पूरी तरह तो काम नहीं किया जा सका है, लेकिन प्रयास जारी हैं. हालांकि उन्होंने बजट अभाव का हवाला देते हुए कहा कि फिलहाल नगरीय निकायों के फंड से ही प्लांट तैयार किए जा रहे हैं.
भूपेंद्र माथुर ने दावा किया कि स्वच्छ भारत मिशन 1.0 के तहत सभी वार्डों में डोर टू डोर कचरा संग्रहण तो किया जा रहा है. लेकिन सेग्रीगेशन तब तक संभव नहीं, जब तक पब्लिक गीला और सूखा कचरा अलग अलग कर नहीं देती. वर्तमान में कचरे को रीसाइकिल करने के 10 प्लांट चालू है। और 20 प्लांट टेंडर प्रक्रिया में चल रहे हैं. वहीं जयपुर और जोधपुर में वेस्ट टू एनर्जी प्लांट तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही एनजीटी के निर्देश के बाद 78 मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी प्लांट विकसित कर लिए हैं. ये फिलहाल मैनुअल बेस पर काम कर रहे हैं. वहीं 82 एमआरएफ वर्क इन प्रोग्रेस में है। प्रदेश में 171 नगरीय निकायों में एमआरएफ प्लांट को विकसित करने का प्लान है.
जहां तक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की बात है, तो आरयूआईडीपी के माध्यम से ये काम किया जा रहा है. जिसके तहत 89 एसटीपी प्लांट फंक्शनल है. आरयूआईडीपी के तीसरे और चौथे चरण में अन्य निकायों में भी एसटीपी प्लांट विकसित किए जाएंगे. हालांकि बिल्डिंग मटेरियल वेस्ट को ट्रीट करने का प्रदेश में एकमात्र प्लांट उदयपुर में है. इस संबंध में भूपेंद्र माथुर ने बताया कि पहले चरण में बड़े शहरों में ही सी एंड डी वेस्ट प्लांट बनाए जाएंगे. जबकि छोटे शहरों में लो लाइन एरिया के भराव में सीएंडडी वेस्ट को इस्तेमाल किया जा रहा है. उदयपुर में 50 टीपीडी का प्लांट चालू है. जबकि जयपुर में सीएंडडी वेस्ट प्लांट के लिए जमीन चिन्हित कर ली गई है.
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चूंकि एनजीटी से किसी तरह का फंड उपलब्ध नहीं होता. ऐसे में राज्य को अपने रिसोर्सेज ही बजट लेना होता है. वर्तमान में विभाग के सामने लेगेसी वेस्ट हो ट्रीट करने की सबसे बड़ी चुनौती है. चीफ इंजीनियर ने बताया कि प्रदेश में करीब 81 लाख टन पुराना कचरा मौजूद है. करीब 25 शहरों में लेगेसी वेस्ट को निस्तारित करने का काम शुरू कर दिया गया है. फंड की कमी की वजह से दूसरे शहरों में अभी ये काम शुरू नहीं हो पाया है. पुराने कच्चे को निस्तारित करने के लिए करीब 400 करोड़ रुपए की आवश्यकता है. यदि स्वच्छ भारत मिशन 2.0 में लेगेसी वेस्ट से जुड़ा कोई कंपोनेंट आता है, तो उससे फंड लेकर इस काम को पूरा किया जाएगा.
आपको बता दें कि हाल ही में एनजीटी ने बीकानेर के नोखा में कृषि भूमि पर अनट्रीटेड सीवेज और औद्योगिक कचरा डालने से रोकने में नाकाम रहने पर राजस्थान सरकार का 50 लाख का अंतरिम जुर्माना लगाया है. हालांकि नोखा में करीब 60 करोड़ से ज्यादा का सीवरेज नेटवर्क की डीपीआर तैयार है. फंड की कमी के चलते फिलहाल ये काम हो नहीं पा रहा, लेकिन एनजीटी के निर्देशों की पालना में राज्य स्तर से रास्ता निकालने का प्रयास किया जाएगा.