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नए साल में इन चुनौतियों से घिरी है कांग्रेस...'खेवनहार' ही हैं उलझन में

बीते वर्ष राजस्थान में सत्ता में काबिज कांग्रेस राजनीतिक उधेड़बुन से बाहर नहीं निकल पाई. कभी सरकार बचाने तो कभी पार्टी में उपजे असंतोष को कम करने में ही सीएम अशोक गहलोत से लेकर पार्टी के आला नेता जुटे रहे. नए साल में भी कांग्रेस के सामने चुनौतियां सिर उठाए खड़ी हैं. इनसे सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा समेत पार्टी के आला नेता कैसे पार पाएंगे यह बड़ी बात है...

Rajasthan Congress, Congress Challenges in 2021
नए साल में इन चुनौतियों से घिरी है कांग्रेस
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Published : Jan 1, 2021, 4:52 PM IST

Updated : Jan 1, 2021, 11:04 PM IST

जयपुर. कांग्रेस पार्टी राजस्थान में बीते वर्ष राजनीतिक चुनौतियों के बीच घिरी रही. सरकार बचाने और संगठन के बीच तालमेल बैठाने में फंसी कांग्रेस सरकार के खेवनहार सालभर उलझनों को सुलझाने में लगे रहे. भले ही उस घटनाक्रम को अब 6 महीने का समय हो चुका हो, लेकिन हालात अब भी विपरीत ही बने हुए हैं.

कांग्रेस पार्टी सत्ताधारी दल होने के बावजूद चुनौतियों का सामना कर रही है. ये चुनौतियां साल 2021 में भी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने सिर उठाए खड़ी हैं. हालात यह है कि राजस्थान में चाहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हो, सेवादल अध्यक्ष हो, यूथ कांग्रेस अध्यक्ष हो सभी राजनीतिक उठापटक के चलते बदले गए हैं. अभी हालात यह है कि यूथ कांग्रेस को छोड़ दिया जाए तो प्रदेश कांग्रेस समेत तीनों अग्रिम संगठनों के पास उनकी कार्यकारिणी ही नहीं है. प्रदेश कार्यकारिणी 31 दिसंबर गठित होनी थी, लेकिन अब उसमें भी समय लगता दिखाई दे रहा है. वहीं प्रदेश कांग्रेस के सामने नए साल में राजनीतिक नियुक्तियों, मंत्रिमंडल विस्तार, विधानसभा उपचुनाव के साथ ही 20 जिलों के स्थानीय निकाय चुनाव भी बड़ी चुनौती साबित होने वाली है.

नए साल में इन चुनौतियों से घिरी है कांग्रेस

कार्यकारिणी का गठन बड़ी चुनौती

प्रदेश में कांग्रेस के सामने प्रदेश कार्यकारिणी का गठन बड़ी चुनौती बनी हुई है. इससे पार पाना प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के लिए भी आसान नजर नहीं आ रहा है. 14 जुलाई को गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. करीब 6 महीने बाद भी वह अकेले ही राजस्थान कांग्रेस की कमान हाथ में लिए हुए हैं. हालांकि प्रदेश प्रभारी महासचिव अजय माकन ने 31 दिसंबर को प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन के लिए अंतिम दिन तय किया था, लेकिन अब नए साल में ही कार्यकारिणी का गठन होगा.

पढ़ें- जनवरी में होगा प्रदेश भाजपा संगठन का विस्तार, नए साल में कार्यकर्ताओं को नई जिम्मेदारी मिलने की आस

कार्यकारिणी के गठन में सबसे बड़ा चिंता का सबब यह है कि जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष खुद स्वीकार कर चुके हैं कि उनके पास करीब 800 आवेदन कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए नेताओं के आए थे. लेकिन उन्हें फिलहाल 30 से 35 लोगों की कार्यकारिणी ही बनानी है. ऐसे में पीछे छूटने वाले नेता निश्चित तौर पर नाराज होंगे और उस नाराजगी से पार पाना कांग्रेस के लिए और खुद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा के लिए एक काफी मुश्किलों भरा हो सकता है. हालांकि नाराजगी से पहले गोविंद डोटासरा के सामने पहली चुनौती अपनी प्रदेश कार्यकारिणी घोषित करना ही होगा.

राजनीतिक नियुक्ति टेढ़ा मामला

राजनीतिक नियुक्तियां प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती होगा. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से ही कांग्रेस कार्यकर्ता यह आस लगाए बैठा है कि उसे राजनीतिक नियुक्तियां मिलेंगी. लेकिन अब सरकार के 2 साल पूरे होने के बावजूद भी कांग्रेस कार्यकर्ता के हाथ खाली हैं. वही, राजनीतिक नियुक्तियां करने में कांग्रेस के सामने चुनौती यह भी है कि अगर वह कांग्रेस कार्यकर्ता को यह राजनीतिक नियुक्तियां दे देंगे तो फिर उन विधायकों का क्या होगा, जिन्होंने सरकार बचाने में अपना पूरा योगदान दिया था.

जिनसे सरकार में हिस्सेदारी का वादा किया जा चुका है. ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि कैसे राजनीतिक नियुक्तियों में वह कांग्रेस नेताओं और विधायकों को मैनेज कर पाती है. राजनीतिक नियुक्तियों के लिए प्रदेश प्रभारी महासचिव ने 31 जनवरी तक का समय तय किया है. हालांकि अभी इस में और समय लगने की आशंका जताई जा रही है.

3 सीटों पर उपचुनाव में जीत की रणनीति

3 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत हासिल करना भी पार्टी के लिए चुनौती से कम नहीं है. राज्य में सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद सीट पर उपचुनाव होना है. 3 सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस काबिज थी. ऐसे में कांग्रेस के सामने चुनौती होगी कि वह कैसे इन 2 सीटों पर फिर से जीत दर्ज करे. क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस सत्ताधारी दल है ऐसे में कांग्रेस पार्टी की हार और जीत राजस्थान में सरकार के कामकाज पर भी मुहर लगाएगी.

कैबिनेट विस्तार और नेताओं की आस

कैबिनेट विस्तार या फेर बदल कांग्रेस पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि इस विस्तार में शामिल होने की आस लगाए बैठे नेताओं की संख्या ज्यादा है और मंत्रिमंडल में जगह सीमित. ऐसे में किसे शामिल किया जाए और किसे बाहर रखा जाए, यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती है. कैबिनेट विस्तार में पायलट कैंप के नेताओं को कैसे एडजस्ट किया जाए. यह चुनौती भी बनी हुई है. हालांकि अभी कैबिनेट फेरबदल या विस्तार की आशंका कम दिखाई देती है, क्योंकि बजट सत्र से पहले कैबिनेट विस्तार या फेरबदल नहीं किया जाता है. बजट के बाद ही कैबिनेट विस्तार को लेकर काम शुरू होगा. लेकिन कैबिनेट विस्तार ही राजस्थान में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी. क्योंकि फिर से विधायकों की नाराजगी झेलने की स्थिति में राजस्थान में कांग्रेस पार्टी नहीं है.

20 जिलों के स्थानीय निकायों में जीत की रणनीति

20 जिलों के स्थानीय निकाय चुनाव प्रदेश कांग्रेस के लिए साल 2021 में बड़ी चुनौती है. प्रदेश में 90 निकायों के चुनाव होंगे. बीते वर्ष हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता मिली थी. ऐसे में सफलता को पुराने अंदाज में दोबारा दोहराना भी बड़ी चुनौती है. 20 जिलों में 1 नगर निगम, 9 नगर परिषद और 80 नगर पालिकाओं में चुनाव होने हैं. जिनमें अजमेर, बांसवाड़ा, बीकानेर, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बूंदी, डूंगरपुर, हनुमानगढ़, चूरू, झालावाड़, जैसलमेर, नागौर, जालौर, पाली, राजसमंद, उदयपुर, सीकर और टोंक जिले शामिल हैं.

सभी गुटों को साधना आसान नहीं

सभी गुटों को साधते हुए तालमेल बनाए रखना पार्टी के लिए आसान नहीं है. सच्चाई यह है कि राजस्थान में कांग्रेस सचिन पायलट और अशोक गहलोत के गुटों में बंटी हुई है. ऐसे में इन दोनों बड़े गुटों को साधते हुए कांग्रेस पार्टी को एक रखना अपने आप में सबसे बड़ी चुनौती है.

जयपुर. कांग्रेस पार्टी राजस्थान में बीते वर्ष राजनीतिक चुनौतियों के बीच घिरी रही. सरकार बचाने और संगठन के बीच तालमेल बैठाने में फंसी कांग्रेस सरकार के खेवनहार सालभर उलझनों को सुलझाने में लगे रहे. भले ही उस घटनाक्रम को अब 6 महीने का समय हो चुका हो, लेकिन हालात अब भी विपरीत ही बने हुए हैं.

कांग्रेस पार्टी सत्ताधारी दल होने के बावजूद चुनौतियों का सामना कर रही है. ये चुनौतियां साल 2021 में भी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने सिर उठाए खड़ी हैं. हालात यह है कि राजस्थान में चाहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हो, सेवादल अध्यक्ष हो, यूथ कांग्रेस अध्यक्ष हो सभी राजनीतिक उठापटक के चलते बदले गए हैं. अभी हालात यह है कि यूथ कांग्रेस को छोड़ दिया जाए तो प्रदेश कांग्रेस समेत तीनों अग्रिम संगठनों के पास उनकी कार्यकारिणी ही नहीं है. प्रदेश कार्यकारिणी 31 दिसंबर गठित होनी थी, लेकिन अब उसमें भी समय लगता दिखाई दे रहा है. वहीं प्रदेश कांग्रेस के सामने नए साल में राजनीतिक नियुक्तियों, मंत्रिमंडल विस्तार, विधानसभा उपचुनाव के साथ ही 20 जिलों के स्थानीय निकाय चुनाव भी बड़ी चुनौती साबित होने वाली है.

नए साल में इन चुनौतियों से घिरी है कांग्रेस

कार्यकारिणी का गठन बड़ी चुनौती

प्रदेश में कांग्रेस के सामने प्रदेश कार्यकारिणी का गठन बड़ी चुनौती बनी हुई है. इससे पार पाना प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के लिए भी आसान नजर नहीं आ रहा है. 14 जुलाई को गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. करीब 6 महीने बाद भी वह अकेले ही राजस्थान कांग्रेस की कमान हाथ में लिए हुए हैं. हालांकि प्रदेश प्रभारी महासचिव अजय माकन ने 31 दिसंबर को प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन के लिए अंतिम दिन तय किया था, लेकिन अब नए साल में ही कार्यकारिणी का गठन होगा.

पढ़ें- जनवरी में होगा प्रदेश भाजपा संगठन का विस्तार, नए साल में कार्यकर्ताओं को नई जिम्मेदारी मिलने की आस

कार्यकारिणी के गठन में सबसे बड़ा चिंता का सबब यह है कि जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष खुद स्वीकार कर चुके हैं कि उनके पास करीब 800 आवेदन कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए नेताओं के आए थे. लेकिन उन्हें फिलहाल 30 से 35 लोगों की कार्यकारिणी ही बनानी है. ऐसे में पीछे छूटने वाले नेता निश्चित तौर पर नाराज होंगे और उस नाराजगी से पार पाना कांग्रेस के लिए और खुद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा के लिए एक काफी मुश्किलों भरा हो सकता है. हालांकि नाराजगी से पहले गोविंद डोटासरा के सामने पहली चुनौती अपनी प्रदेश कार्यकारिणी घोषित करना ही होगा.

राजनीतिक नियुक्ति टेढ़ा मामला

राजनीतिक नियुक्तियां प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती होगा. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से ही कांग्रेस कार्यकर्ता यह आस लगाए बैठा है कि उसे राजनीतिक नियुक्तियां मिलेंगी. लेकिन अब सरकार के 2 साल पूरे होने के बावजूद भी कांग्रेस कार्यकर्ता के हाथ खाली हैं. वही, राजनीतिक नियुक्तियां करने में कांग्रेस के सामने चुनौती यह भी है कि अगर वह कांग्रेस कार्यकर्ता को यह राजनीतिक नियुक्तियां दे देंगे तो फिर उन विधायकों का क्या होगा, जिन्होंने सरकार बचाने में अपना पूरा योगदान दिया था.

जिनसे सरकार में हिस्सेदारी का वादा किया जा चुका है. ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि कैसे राजनीतिक नियुक्तियों में वह कांग्रेस नेताओं और विधायकों को मैनेज कर पाती है. राजनीतिक नियुक्तियों के लिए प्रदेश प्रभारी महासचिव ने 31 जनवरी तक का समय तय किया है. हालांकि अभी इस में और समय लगने की आशंका जताई जा रही है.

3 सीटों पर उपचुनाव में जीत की रणनीति

3 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत हासिल करना भी पार्टी के लिए चुनौती से कम नहीं है. राज्य में सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद सीट पर उपचुनाव होना है. 3 सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस काबिज थी. ऐसे में कांग्रेस के सामने चुनौती होगी कि वह कैसे इन 2 सीटों पर फिर से जीत दर्ज करे. क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस सत्ताधारी दल है ऐसे में कांग्रेस पार्टी की हार और जीत राजस्थान में सरकार के कामकाज पर भी मुहर लगाएगी.

कैबिनेट विस्तार और नेताओं की आस

कैबिनेट विस्तार या फेर बदल कांग्रेस पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि इस विस्तार में शामिल होने की आस लगाए बैठे नेताओं की संख्या ज्यादा है और मंत्रिमंडल में जगह सीमित. ऐसे में किसे शामिल किया जाए और किसे बाहर रखा जाए, यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती है. कैबिनेट विस्तार में पायलट कैंप के नेताओं को कैसे एडजस्ट किया जाए. यह चुनौती भी बनी हुई है. हालांकि अभी कैबिनेट फेरबदल या विस्तार की आशंका कम दिखाई देती है, क्योंकि बजट सत्र से पहले कैबिनेट विस्तार या फेरबदल नहीं किया जाता है. बजट के बाद ही कैबिनेट विस्तार को लेकर काम शुरू होगा. लेकिन कैबिनेट विस्तार ही राजस्थान में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी. क्योंकि फिर से विधायकों की नाराजगी झेलने की स्थिति में राजस्थान में कांग्रेस पार्टी नहीं है.

20 जिलों के स्थानीय निकायों में जीत की रणनीति

20 जिलों के स्थानीय निकाय चुनाव प्रदेश कांग्रेस के लिए साल 2021 में बड़ी चुनौती है. प्रदेश में 90 निकायों के चुनाव होंगे. बीते वर्ष हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता मिली थी. ऐसे में सफलता को पुराने अंदाज में दोबारा दोहराना भी बड़ी चुनौती है. 20 जिलों में 1 नगर निगम, 9 नगर परिषद और 80 नगर पालिकाओं में चुनाव होने हैं. जिनमें अजमेर, बांसवाड़ा, बीकानेर, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बूंदी, डूंगरपुर, हनुमानगढ़, चूरू, झालावाड़, जैसलमेर, नागौर, जालौर, पाली, राजसमंद, उदयपुर, सीकर और टोंक जिले शामिल हैं.

सभी गुटों को साधना आसान नहीं

सभी गुटों को साधते हुए तालमेल बनाए रखना पार्टी के लिए आसान नहीं है. सच्चाई यह है कि राजस्थान में कांग्रेस सचिन पायलट और अशोक गहलोत के गुटों में बंटी हुई है. ऐसे में इन दोनों बड़े गुटों को साधते हुए कांग्रेस पार्टी को एक रखना अपने आप में सबसे बड़ी चुनौती है.

Last Updated : Jan 1, 2021, 11:04 PM IST
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