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Special : काबुल के पठानों पर विजय का प्रतीक है जयपुर में फहरने वाला पचरंगा ध्वज - taliban

आज भले ही अफगानिस्तान तालिबान (taliban) के आतंक से थर्रा रहा है. लेकिन करीब साढ़े चार सौ साल पहले आमेर के राजा मानसिंह (raja mansingh) ने भी अफगानी पठानों को नाकों चने चबवाकर अपना लोहा मनवाते हुए उनके कबीलों पर जीत का परचम फहराया था. विजयश्री की इसी कहानी को बयां करता है जयपुर के सिटी पैलेस (City Palace) और जयगढ़ (jaygarh fort) पर फहरता पचरंगा ध्वज...

जयपुर का पचरंगा झंडा
जयपुर का पचरंगा झंडा
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Published : Sep 3, 2021, 5:56 PM IST

Updated : Sep 3, 2021, 7:49 PM IST

जयपुर. किसी भी राजा का ध्वज उनके वर्चस्व, प्रतिष्ठा, बल और इष्टदेव का प्रतीक होता है. इन्हीं भावों को प्रकट करने के लिए आमेर के राजा मानसिंह ने अपने राज्य के सफ़ेद रंग के ध्वज को पंचरंग ध्वज (pacharanga flag of jaipur) के रूप में स्वीकार किया.

दरअसल, राजा मानसिंह (Raja Mansingh of Amber) ने मुगलों से सन्धि के बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) (काबुल) के उन पांच कबीलों पर आक्रमण किया, जो भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे. बदले में भारत से लूटकर ले जाए जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे. राजा मानसिंह ने उन्हें तहस-नहस कर दिया. श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों और कारीगरों को वहां से लाकर जयगढ़ (Jaigarh Palace) में शस्त्र बनाने का कारखाना स्थापित करवाया.

जयपुर के पचरंगे ध्वज की शान है निराली

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत (Devendra Kumar Bhagat) के अनुसार जयपुर के पंचरंगा ध्वज के बारे में कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों में वर्णन किया है. हनुमान शर्मा (Hanuman Sharma) की किताब जयपुर का इतिहास और राजीव नयन (Rajeev Nayan) की पीएचडी रिसर्च में स्पष्ट लिखा है कि तत्कालीन समय में अफगानिस्तान में अफरीदी, यूसुफजई, करजई, गजना खेल, मुहम्मद कबीले मौजूद थे. जो हिंसक लोग माने जाते थे और इनकी अपनी संस्कृति थी. ये मुख्य रूप से गोरिल्ला पद्धति से युद्ध (gorilla warfare) किया करते थे.

जयपुर का पचरंगा झंडा
इतिहास में मिलता है काबुल विजय का उल्लेख

पढ़ें- Special : जयपुर के परकोटा क्षेत्र में सैकड़ों भवन जर्जर हालत में...दुर्घटना को दे रहे न्योता

अकबर (akbar) के समय मानसिंह को अफगानिस्तान को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. ऐसे में मानसिंह ने अपने सरदारों को इकट्ठा किया, जिनमें चौमूं के राजा मनोहरदास (raja manohar das) भी शामिल थे. उन्होंने ही काबुल (kabul) पर अटैक किया और उन हिंसक कबीलों को पीछे हटने पर मजबूर किया. वहां बकायदा मानसिंहपुरा, मानगढ़ी और मुगल चौकी बसाई गई. यही नहीं, तूरान के बादशाह अब्दुल्ला खां भी काबुल तक चढ़ आया था. उसकी मदद के लिए अफगान के 5 पठान राजा साथ आये. लेकिन इन सभी को परास्त कर हथियार डालने पर मजबूर कर दिया.

जयपुर का पचरंगा झंडा
आमेर का जयगढ़ फोर्ट

इन पठान कबीलों ने मानसिंह की अधीनता स्वीकार करते हुए अपने ध्वज या पगड़ी का हिस्सा फाड़ कर राजा मानसिंह को दिया. इन ध्वज और पगड़ी के कपड़े के पांच रंग (नीले, पीले, लाल, हरे और काले) जयपुर रियासत के महत्वपूर्ण अंग बन गए. इन्हीं 5 रंगों को मिलाकर जयपुर का पचरंगा झंडा बना. इससे पहले वाल्मीकि रामायण (valmiki ramayana) के अनुसार सूर्यवंशियों का सफेद झंडा जयपुर (jaipur) का ध्वज हुआ करता था.

जयपुर का पचरंगा झंडा
पचरंगा ध्वज के बारे में ऐतिहासिक तथ्य

इतिहासकार के अनुसार इन कबीलों में कुछ लोगों के पास ऐसी कलाएं थी, जिसकी वजह से राजा मानसिंह उन्हें जयपुर लेकर आए. चौमूं में पठानों का चौक, जयपुर के ब्रह्मपुरी में पठानों का चौक और रामगंज में पठानों का मोहल्ला आज भी मौजूद है. जयपुर में इन्हीं अफगानी पठानों ने सूखे मेवे के व्यापार में अहम रोल भी निभाया.

इसके अलावा मान चरितावली में दोहों के रूप में काबुल विजय का जिक्र किया गया है. यही नहीं, आज भी जयपुर में पचरंगा झंडा एक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है. सिटी पैलेस के चंद्र महल में आज भी पचरंगा झंडा फहरता है. उसके ऊपर यदि एक और छोटा पचरंगा झंडा फहर रहा है तो इसका मतलब यही होता है कि जयपुर के पूर्व महाराजा जयपुर शहर में मौजूद हैं.

जयपुर. किसी भी राजा का ध्वज उनके वर्चस्व, प्रतिष्ठा, बल और इष्टदेव का प्रतीक होता है. इन्हीं भावों को प्रकट करने के लिए आमेर के राजा मानसिंह ने अपने राज्य के सफ़ेद रंग के ध्वज को पंचरंग ध्वज (pacharanga flag of jaipur) के रूप में स्वीकार किया.

दरअसल, राजा मानसिंह (Raja Mansingh of Amber) ने मुगलों से सन्धि के बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) (काबुल) के उन पांच कबीलों पर आक्रमण किया, जो भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे. बदले में भारत से लूटकर ले जाए जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे. राजा मानसिंह ने उन्हें तहस-नहस कर दिया. श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों और कारीगरों को वहां से लाकर जयगढ़ (Jaigarh Palace) में शस्त्र बनाने का कारखाना स्थापित करवाया.

जयपुर के पचरंगे ध्वज की शान है निराली

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत (Devendra Kumar Bhagat) के अनुसार जयपुर के पंचरंगा ध्वज के बारे में कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों में वर्णन किया है. हनुमान शर्मा (Hanuman Sharma) की किताब जयपुर का इतिहास और राजीव नयन (Rajeev Nayan) की पीएचडी रिसर्च में स्पष्ट लिखा है कि तत्कालीन समय में अफगानिस्तान में अफरीदी, यूसुफजई, करजई, गजना खेल, मुहम्मद कबीले मौजूद थे. जो हिंसक लोग माने जाते थे और इनकी अपनी संस्कृति थी. ये मुख्य रूप से गोरिल्ला पद्धति से युद्ध (gorilla warfare) किया करते थे.

जयपुर का पचरंगा झंडा
इतिहास में मिलता है काबुल विजय का उल्लेख

पढ़ें- Special : जयपुर के परकोटा क्षेत्र में सैकड़ों भवन जर्जर हालत में...दुर्घटना को दे रहे न्योता

अकबर (akbar) के समय मानसिंह को अफगानिस्तान को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. ऐसे में मानसिंह ने अपने सरदारों को इकट्ठा किया, जिनमें चौमूं के राजा मनोहरदास (raja manohar das) भी शामिल थे. उन्होंने ही काबुल (kabul) पर अटैक किया और उन हिंसक कबीलों को पीछे हटने पर मजबूर किया. वहां बकायदा मानसिंहपुरा, मानगढ़ी और मुगल चौकी बसाई गई. यही नहीं, तूरान के बादशाह अब्दुल्ला खां भी काबुल तक चढ़ आया था. उसकी मदद के लिए अफगान के 5 पठान राजा साथ आये. लेकिन इन सभी को परास्त कर हथियार डालने पर मजबूर कर दिया.

जयपुर का पचरंगा झंडा
आमेर का जयगढ़ फोर्ट

इन पठान कबीलों ने मानसिंह की अधीनता स्वीकार करते हुए अपने ध्वज या पगड़ी का हिस्सा फाड़ कर राजा मानसिंह को दिया. इन ध्वज और पगड़ी के कपड़े के पांच रंग (नीले, पीले, लाल, हरे और काले) जयपुर रियासत के महत्वपूर्ण अंग बन गए. इन्हीं 5 रंगों को मिलाकर जयपुर का पचरंगा झंडा बना. इससे पहले वाल्मीकि रामायण (valmiki ramayana) के अनुसार सूर्यवंशियों का सफेद झंडा जयपुर (jaipur) का ध्वज हुआ करता था.

जयपुर का पचरंगा झंडा
पचरंगा ध्वज के बारे में ऐतिहासिक तथ्य

इतिहासकार के अनुसार इन कबीलों में कुछ लोगों के पास ऐसी कलाएं थी, जिसकी वजह से राजा मानसिंह उन्हें जयपुर लेकर आए. चौमूं में पठानों का चौक, जयपुर के ब्रह्मपुरी में पठानों का चौक और रामगंज में पठानों का मोहल्ला आज भी मौजूद है. जयपुर में इन्हीं अफगानी पठानों ने सूखे मेवे के व्यापार में अहम रोल भी निभाया.

इसके अलावा मान चरितावली में दोहों के रूप में काबुल विजय का जिक्र किया गया है. यही नहीं, आज भी जयपुर में पचरंगा झंडा एक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है. सिटी पैलेस के चंद्र महल में आज भी पचरंगा झंडा फहरता है. उसके ऊपर यदि एक और छोटा पचरंगा झंडा फहर रहा है तो इसका मतलब यही होता है कि जयपुर के पूर्व महाराजा जयपुर शहर में मौजूद हैं.

Last Updated : Sep 3, 2021, 7:49 PM IST
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