जयपुर. आदिशक्ति की उपासना का महापर्व नवरात्र के मौके पर हर मंदिर में भक्तों की भीड़ और जय माता दी की गूंज सुनाई दे रही है. इस विशेष पर्व के मौके पर मंदिर पहुंचकर भक्त मइया के दर्शन करते हुए मनोती मांग रहे हैं. साथ ही विशेष-पूजा अर्चना का दौर भी जारी है. इसी कड़ी में आज हम आपको जयपुर में हरियाली की गोद में पहाड़ियों के बीच राजवंश और कछवाह वंश की कुलदेवी जमवाय माता के मंदिर का इतिहास (Jamwai Mata Temple has an interesting history) बताने जा रहे हैं. यह मंदिर 350 वर्ष से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
मंदिर के पुजारी घनश्याम शर्मा ने कहा कि जयपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर पूर्व में जमवा रामगढ़ की पहाड़ियों की घाटी में विराजमान जमवाय माता मंदिर स्थापना कछवाह वंश के पूर्व राजा दुल्हरायजी (Kachwah dynasty related to Jamwai Mata Temple) कराया था. जमवाय माता मंदिर रोचक कथा के इतिहास को समेटे हुए है.
ये कथा है मंदिर के इतिहास से जुड़ीः मंदिर के पुजारी घनश्याम शर्मा ने बताया कि दुल्हरायजी ने 11वीं सदी के अंत में मीणाओं से युद्ध किया. शिकस्त खाकर वे अपनी फौज के साथ में बेहोशी की अवस्था में रणक्षेत्र में गिर गए. राजा समेत फौज को रणक्षेत्र में पड़ा देखकर विपक्षी सेना खुशी के कारण जश्न मनाने लगी. तब देवी बुढवाय अपनी गाय के साथ सामान्य रूप में प्रकट हुई. वे पहले दुल्हराय को होश में लेकर आईं. जब दुल्हराय खड़े होकर देवी की स्तुति करने लगे और अपने साथियों के लिए जीवनदान मांगा. तब माता ने अपनी गाय के दूध के छींटे सेना पर डाले. इससे पूरी फौज होश में आई.
अगले दिन दुल्हराय ने आक्रमण किया और उनकी विजय हुई. जिस स्थान पर दुल्हराय बेहोश होकर गिरे और देवी ने दर्शन दिए थे, उसी स्थान पर उन्होंने माता का मंदिर (Jamwai Mata Temple in Jaipur) बनवाया. माता के चमत्कार से सेना को जीवनदान मिला इसलिए माता का नाम जमवाय माता रखा गया. इस घटना का उल्लेख कई इतिहासकारों ने भी किया है.
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वट वृक्ष की छाया में जमवाय माता: मंदिर के गर्भगृह के मध्य में जमवाय माता की प्रतिमा है. दाहिनी ओर धेनु और बछड़े जबकि बायीं ओर मां बुढवाय की प्रतिमा स्थापित है. मंदिर परिसर में शिवालय, चौसठ योगिनी, भैरव का स्थान, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और भोमिया जी महाराज भी विराजमान हैं. माता का ये मंदिर वट वृक्ष की छत्रछाया में है. जिस पर श्रद्धालु मन्नत का डोरा भी बांधते हैं. राज्यारोहण और बच्चों के मुंडन संस्कारों के लिए कछवाहा वंश के लोग यहां आते हैं. राजा ने अपने अराध्य देव रामचंद्र और कुलदेवी जमवाय के नाम पर क्षेत्र का नाम जमवारामगढ़ रखा था.
वहीं कुछ लोगों की मान्यता है कि ये एक शक्तिपीठ भी है. जहां सती माता की तर्जनी उंगली गिरी थी. बहरहाल, रामगढ़ बांध के नजदीक कछवाहों और अन्य समाज के लोगों की आस्था के केंद्र जमवाय माता मंदिर में नवरात्र में मेले जैसा माहौल रहता है. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पदयात्रा करते हुए पहुंचते हैं और माता का आशीर्वाद लेते हैं.