जयपुर. विश्व के सात आश्चर्य में शुमार आगरा के ताजमहल को शाहजहां और मुमताज महल के अमर प्रेम का स्मारक बताया जाता है. हालांकि इतिहासकार डॉ आनंद शर्मा की मानें तो ये भव्य महल आमेर के राजा मानसिंह (प्रथम) का महल (Historian Anand Sharma on Taj Mahal) था. जिसे शाहजहां ने मिर्जाराजा जयसिंह से छीन कर कब्रगाह में बदल दिया था. शर्मा के मुताबिक ताजमहल जैसे भव्य भवन में रहने वाले मातहत सामन्त का वैभव बादशाह शाहजहां को बर्दाश्त नहीं था. इसलिए अपनी बेगम मुमताज महल की 7 जून, 1631 को दक्षिण के बुरहानपुर में मृत्यु हो जाने और उसे वहीं जैनाबाद उद्यान में दफना देने के बावजूद, दिसम्बर में आगरा लाकर इस महल में दोबारा दफनाया गया.
डॉ शर्मा ने बताया कि मुमताज को दफनाने के लिए शाहजहां ने राजा मानसिंह के भव्य महल को मिर्जाराजा जयसिंह से नाम मात्र की कीमत पर खरीद लिया था. जयसिंह को आगरा में चार हवेलियां दी गई, जो आज भी राजा भगवानदास, राजा माधोसिंह, रूपसी बैरागी और चाँदसिंह की हवेलियों के नाम से प्रसिद्ध हैं. जयपुर राज्य के 'कपड़द्वारा' में मिले दो फरमान इस भवन की आवाप्ति और मुआवजे (Claim And Compensation) के रूप में उपरोक्त चार हवेलियां देने का प्रमाण हैं. डॉ. पुरुषोत्तम नागेश ओक ने तो अपनी पुस्तक 'ताजमहल वाज राजपूत पैलेस' में इस सत्य को अकाट्य प्रमाणों से सिद्ध भी किया (Uproar On Taj Mahal) है.
उन्होंने सवाल उठाया कि इस भव्य इमारत के निर्माण की शुरुआत और पूरी होने की तारीखें, इस पर आई लागत और कारीगरों का उल्लेख 'शाहजहांनामा' में क्यों नहीं मिलता? जबकि इसमें शाहजहां काल की सभी छोटी-बड़ी घटनाओं का उल्लेख किया गया है. वहीं डॉ आनंद ने फ्रांसिसी यात्री टेबरनियर का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी यात्रा प्रसंग में लिखा था कि उन्होंने ताजमहल का निर्माण शुरू और पूरा होते देखा है. जबकि टेवरनियर खुद महज छह महीने आगरा में रहा था. तो क्या छह महीने में ताजमहल बन गया था? स्पष्ट है कि उसने ताजमहल में कुरान की आयतें बनाते हुए बांसों के ढांचे को देख कर ताजमहल निर्माण होना समझ लिया था.
यही नहीं शाहजहां के आदेश पर मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी की ओर से लिखे 'बादशाहनामा' (दरबारी इतिहास) को 'एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल' ने मूल फारसी में दो खण्डों में प्रकाशित किया था. इसके पहले खण्ड के पेज नं. 403 पर मुमताज बेगम के अवशेषों को भिजवाने का उल्लेख किया गया है - 'हजरत मुमताजुल जमानी को, जिसे अस्थायी रूप से दफना दिया गया था, भेजा गया.' वहीं अवशेषों को लाने वालों के नाम, आगरा के 'मानसिंह के प्रासाद' में दफनाने, भवन के बदले जयसिंह को जमीन देने का उल्लेख भी किया गया है. इतिहासकार डॉ आनंद शर्मा ने कहा कि मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी की बादशाहनामा, जयपुर राज्य के पोथीखाना में उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर ताजमहल को राजा मानसिंह का निवास कहना गलत नहीं होगा. जिसे शाहजहां ने हथियाने का काम किया.
ताजमहल के निर्माण में मिर्जा राजा जयसिंह की रही महत्वपूर्ण भूमिकाः बीकानेर के राजस्थान राज्य अभिलेखागार में ताजमहल के निर्माण से जुड़े कुछ दस्तावेज हैं, जिनको देखने के बाद यह साफ होता है कि ताजमहल के निर्माण में मिर्जा राजा जयसिंह की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है. दरअसल आगरा में बने ताजमहल की खूबसूरती उसका सफेद संगमरमर से झलकती है और जो संगमरमर ताजमहल में लगा है उसको भिजवाने का काम मिर्जा राजा जयसिंह के सुपुर्द किया गया था. राजस्थान राज्य अभिलेखागार के बीकानेर निदेशालय में ऐतिहासिककालीन कुछ ऐसे दस्तावेज हैं जिनमें शाहजहां की ओर से मिर्जा राजा जयसिंह को एक नहीं बल्कि 4 फरमान जारी कर ताजमहल के निर्माण के लिए संगमरमर भिजवाने के निर्देश दिए गए थे.
क्या लिखा है इन फरमानों मेंः दरअसल इन फरमानों में मिर्जा राजा जयसिंह को जयपुर रियासत के आमेर और मकराना से संगमरमर भिजवाने के निर्देश दिए गए थे. साथ ही इसके लिए माकूल व्यवस्था जिसमें मजदूर और गाड़ियां उपलब्ध कराने के लिए भी कहा गया. मिर्जा राजा जयसिंह को उसके लिए शाहजहां ने होने वाले खर्च के भुगतान मुगल सल्तनत से कराए जाने की बात इन फरमान में लिखी है.
यूपी के इतिहासकार बोले- ताजमहल की जमीन जयपुर के राजा मान सिंह की थीः इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि 'ताजमहल की जमीन जयपुर के राजा मान सिंह की थी. मुगलिया सल्तनत के शहंशाह शाहजहां ने मान सिंह के पोते राजा जय सिंह को ताजमहल के बदले में गांव और चार इमारत दी थीं. जो उस प्रॉपर्टी की वेल्यू के आगे कुछ भी नहीं है. इतिहासकार राजकिशोर शर्मा यह भी बताते हैं कि, उनके पास वो फरमान भी हैं. जिसमें मकराना और अन्य जगह से ताजमहल के निर्माण के लिए 230 बैलगाड़ी सफेद संगमरमर लाने का जिक्र है.