जयपुर. सीवरेज मैनहोल में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों की जिंदगी कितनी सस्ती है, शायद ये कोई नहीं जानता. हर साल सीवरेज मैनहोल की सफाई करने वाले सैकड़ों सफाई कर्मचारी जहरीली गैस से काल का ग्रास बन जाते हैं. बावजूद इसके आज भी सीवरेज मैनहोल में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों को बिना संसाधनों के ही सीवरेज मैनहोल में उतरना पड़ रहा है.
ये है शंकर, जिसकी उम्र महज 27 साल है. शंकर नगर निगम में कॉन्ट्रैक्ट पर सीवरेज सफाई का काम करता है. जिसकी दिहाड़ी महज 300 से 400 रुपए है. शंकर का ना तो कोई हेल्थ इंश्योरेंस है, और ना ही उसकी कोई मेडिकल जांच होती है.
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हैरानी की बात तो यह है कि राज्य सरकार के लाख दावों के बावजूद आज भी शंकर और शंकर जैसे सैकड़ों सीवरेज सफाई कर्मचारी बिना संसाधनों और सुरक्षा उपकरण के सीवरेज मैनहोल की सफाई कर रहे हैं. इन मैनहोल में कई जहरीली गैस मौजूद होती हैं और बिना संसाधनों के सफाई करना इन सफाई कर्मचारियों की मौत का कारण बनता है.
सुरक्षा उपकरणों के बिना ही सीवरेज मैनहोल में काम करने को मजबूर सफाईकर्मी
सीवरेज चैंबर में उतरने वाले कर्मचारी को गैस मास्क, हेलमेट, गम बूट, ग्लव्स, सेफ्टी बेल्ट उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य है. यहीं नहीं मौके पर ऑक्सीजन सिलेंडर की मौजूदगी भी सुनिश्चित करना होता है, लेकिन इन सब के विपरीत महज एक ऑरेंज जैकेट पहना कर इतिश्री कर ली जाती है. आलम ये है कि इन सफाई कर्मचारियों को कोई मेडिकल सुविधा तक उपलब्ध नहीं कराई जाती है.
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हालांकि, दिसंबर 2013 में सरकार की ओर से प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन रूल्स को लागू किया गया. इन्हें MM रूल्स के नाम से जाना जाता है. सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 2014 में निर्णय लिया था कि जहां तक सीवर सफाई के दौरान मृत्यु का संबंध है, आपात स्थितियों में भी बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर लाइन में प्रवेश अपराध की श्रेणी में आएगा और ऐसे हर मामले में 10 लाख रुपए मुआवजा भी दिया जाएगा.
यही नहीं हाल ही में प्रदेश के मुखिया अशोक गहलोत से लेकर यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने सीवरेज सफाई कर्मचारियों को आवश्यक उपकरण और संसाधन उपलब्ध कराए जाने का दावा किया, लेकिन हकीकत आज भी इसके विपरीत है.