जयपुर. राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों में संगठन के समीकरणों को बागी बिगड़ाते दिख रहे हैं. हालांकि टिकट वितरण के समय लग रहा था कि मुकाबला इस बार दोनों छात्र संगठनों के बीच होगा लेकिन वोटिंग के दिन नजदीक आते-आते यह समीकरणों के दम पर टिक गए हैं.
बता दें कि अध्यक्ष पद के लिए 5 प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन मुकाबले में 3 प्रत्याशी आगे दिख रहे हैं, जिसमें एबीवीपी के अमित बड़बड़वाल और एनएसयूआई के उत्तम चौधरी को एनएसयूआई की बागी प्रत्याशी पूजा वर्मा चुनौती देते दिख रही है. वहीं इस बीच बागी मुकेश चौधरी भी वोट में सेंधमारी कर रहे हैं जो संगठनों के प्रत्याशियों को ही भारी पड़ रहा है. अध्यक्ष पद पर मुकाबला 2018 की तर्ज पर दिख रहा है लेकिन इस बार संगठनों के पदाधिकारी बागी का सहयोग ना करके संगठनों के साथ ही लगे हैं, जिससे संगठन अपने आप को जीत के करीब मान रहा है.
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वहीं महासचिव पद की बात करें तो यहां पर भी संगठनों के बागी मुकाबले को रोचक बनाए हुए हैं. एबीवीपी के बागी नितिन शर्मा इस मुकाबले में है तो वहीं राजेश चौधरी ने मुकाबले को चतुष्कोणीय बना दिया है. यहां पर एनएसयूआई के महावीर गुर्जर और एबीवीपी के अरुण शर्मा मैदान में हैं लेकिन एबीवीपी के बागी नितिन शर्मा मुकाबले में संगठन के प्रत्याशियों को चैलेंज करते दिख रहे हैं. बता दें कि महासचिव पद पर 7 प्रत्याशी मैदान में है और उपाध्यक्ष पद पर 3 प्रत्याशी हैं, जिनमें एबीवीपी के दीपक कुमार, एनएसयूआई की कोमल मीणा और एसएफआई की कोमल चुनावी मैदान में है जिसमें इस बार कोमल और प्रियंका में मुकाबला बन रहा है.
बता दें कि संयुक्त सचिव पद का भी कुछ ऐसा ही हाल है जहां पर एनएसयूआई की लक्ष्मी प्रताप खंगारोत, एबीवीपी की किरण मीणा चुनावी मैदान में है. वहीं अशोक चौधरी भी इस पद पर चुनाव लड़ रहे है लेकिन मुकाबला दोनों संगठनों के बीच लग रहा है. वहीं शोध प्रतिनिधि पर 2 प्रत्याशी हैं . बागी पूजा वर्मा को एबीवीपी के रामकेश मीना और कई छात्र नेताओं ने भी समर्थन दिया है.
छात्र संगठनों ने जातिगत समीकरणों को देखते हुए किया है टिकटों का वितरण
छात्र राजनीति की सबसे हॉट सीट कही जाने वाली राजस्थान विश्वविद्यालय में एक बार फिर से दोनों ही प्रमुख छात्र संगठन एबीवीपी और एनएसयूआई ने जातिगत समीकरणों को देखते हुए टिकटों का वितरण किया है. बीते कुछ सालों में यह नजारा दोनों ही छात्र संगठनों के टिकट वितरण में देखने को मिला है. इस साल भी दोनों ही छात्र संगठनों ने अपने पैनल में चारों समुदाय के प्रतिनिधित्व को टिकट देकर सभी जातियों को साधने की कोशिश की है.
एक बार फिर जाट समुदाय पर लगाया दांव
दोनों संगठनों ने अध्यक्ष सीट पर लगातार दूसरे वर्ष भी जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारकर जातिवाद के समीकरणों को साधने का प्रयास किया है. बता दें कि विश्वविद्यालय में सबसे अधिक जाट और फिर मीणा जाति के छात्र मतदाता हैं. ऐसे में बीते कुछ सालों से दोनों संगठन इन दोनों जातियों के दावेदारों को ही मैदान में उतार रही है.
12 फीसदी एसटी, 16 फीसदी एससी और 5 एसबीसी फीसदी वोटर्स
यूनिवर्सिटी में इस साल कुल 23 हजार 853 वोटर्स हैं. बता दें कि इस साल सबसे अधिक करीब 6 हजार जाट वोटर्स हैं, जबकि 4 हजार मीणा वोटर्स हैं. वही 12 फीसदी एसटी, 16 फीसदी एससी और एसबीसी के 5 फीसदी वोटर्स माने जा रहे हैं. वहीं शेष सामान्य वर्ग के वोटर्स हैं. जानकारी के अनुसार बीते 3 सालों से इसी कैंपस में जातियों की गणित को नकारते हुए आम मतदाता ने निर्दलीय प्रत्याशी पर भरोसा जताया है. वहीं इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी संगठन पर भारी पड़ते दिख रहे हैं.