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अस्पताल में 22 दिन से शव पड़े होने पर RSHRC ने लिया प्रसंज्ञान, 'मृत्यु के बाद भी विद्यमान रहते हैं मानव अधिकार'

राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Rights Commission) ने जोधपुर महानगर के मथुरादास माथुर अस्पताल (Mathuradas Mathur Hospital) में बीते करीब 22 दिन से पड़े एक शव के मामले में प्रसंज्ञान (Processing) लिया है. आयोग के मुताबिक मृत्यु के बाद भी मानव अधिकार विद्यमान रहते हैं.

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राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग
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Published : Feb 24, 2021, 5:13 AM IST

जयपुर. राज्य मानवाधिकार आयोग ने जोधपुर महानगर के मथुरादास माथुर अस्पताल में बीते करीब 22 दिन से पड़े एक शव के मामले में प्रसंज्ञान लिया है. मानवाधिकार आयोग ने कहा कि मृत्यु के बाद भी मानव अधिकार विद्यमान रहते हैं. संविधान के अनुच्छेद- 21 के अनुसार, मानव गरिमा का अधिकार सिर्फ जिंदा मानव को ही नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद उसके शरीर को भी प्राप्त है.

बता दें कि जोधपुर महानगर के मथुरादास माथुर अस्पताल में करीब 22 दिन से एक ऐसा शव पड़ा है, जिसका दाह संस्कार अभी तक नहीं किया गया है. यह सूचना मनोरोगियों के लिए कार्य करने वाली मन: संस्था के सचिव योगेश दाधीच ने दी है.

क्या कहना है मानवाधिकार आयोग का?

राज्य मानवाधिकार आयोग का स्पष्ट मत रहा है कि मृत्यु के बाद भी मानव अधिकार विद्यमान रहते हैं. यह मानव अधिकार मानव स्वयं उपयोग में नहीं ले सकता है और इसी कारण से यह एक पारिवारिक दायित्व के रूप अति प्राचीन काल (Time Immemorial) से लगभग विश्व के सभी क्षेत्रों में स्वीकार किया हुआ है. मृतक के परिवार की ओर से अंतिम क्रिया नहीं करने पर यह क्रिया मृतक के सगे संबंधी, रिश्तेदार, मोहल्ले और क्षेत्रवासी ही नहीं, बल्कि मृतक से पूरी तरह से असम्बद्ध व्यक्ति/संस्थाएं भी कर सकती हैं. इनके दाह संस्कार के लिए कोई जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करता है, उसका दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है, जिस प्रकार से भ्रूण स्वयं की रक्षा नहीं कर सकता है, उसकी रक्षा करने का दायित्व माता-पिता का होता है. भ्रूण हत्या, जिसने पृथ्वी पर जन्म ही नहीं लिया है, उसकी हत्या भी जघन्य अपराध है. उसी प्रकार मृत देह का अधिकार है कि अन्य व्यक्ति उसकी देह का अंतिम संस्कार करे. मृत शरीर सैंकड़ों और हजारों साल की रूढ़ि (Custom) के अनुसार एक निश्चित समय सीमा में अन्तिम संस्कार प्राप्त करने का अधिकारी है.

यह भी पढ़ें: कागजी कार्रवाई में हुई गफलत के चलते 22 दिन बाद होगा लावारिस शव का अंतिम संस्कार

और क्या कहना है?

  • 22 दिन तक किसी मनुष्य के लावारिस शव का दाह संस्कार नहीं करना, प्रथम दृष्ट्या प्रकृति के सिद्धांतों के विपरीत कृत्य ही नहीं है, अपितु मृतक के मानव अधिकारों का घोर उल्लघन होने के साथ ही मानव गरिमा के भी विपरीत है.
  • चूंकि: यह अत्यन्त आवश्यक प्रकृति का प्रकरण है. राज्य के अधीन संचालित अस्पताल की अभिरक्षा में होने के बावजूद एक मानव शरीर का लम्बे समय से दाह संस्कार नहीं किया जा रहा है. अतः इस मामले पर राज्य आयोग स्वतः प्रसंज्ञान लेता है.
  • इस आदेश की प्रतिलिपि जिला कलेक्टर, जोधपुर महानगर, जोधपुर, प्राचार्य डॉ. सम्पूर्णानन्द चिकित्सा महाविद्यालय, जोधपुर और अधीक्षक, मथुरादास माथुर अस्पताल, जोधपुर को जरिए फैक्स/ईमेल/व्हाट्सएप अविलम्ब भेज कर निर्देशित किया गया कि तत्काल कार्रवाई कर नियमानुसार मृतक की देह का दाह संस्कार कर राज्य आयोग को अवगत करवाया जाए.
  • जिला कलेक्टर, जोधपुर महानगर- जोधपुर, प्राचार्य डॉ. सम्पूर्णानन्द चिकित्सा महाविद्यालय- जोधपुर और अधीक्षक, मथुरादास माथुर अस्पताल- जोधपुर राज्य आयोग द्वारा 4 मार्च को जोधपुर महानगर में प्रस्तावित कैम्प कोर्ट में व्यक्तिगत उपस्थित होकर प्रकरण के संबंध में विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत कर, 22 दिन तक मृत देह को बिना दाह संस्कार रखने के कारणों से राज्य आयोग को अवगत कराएं. पत्रावली 4 मार्च को जोधपुर महानगर में प्रस्तावित राज्य आयोग के कैंप कोर्ट में प्रस्तुत की जाए.

जयपुर. राज्य मानवाधिकार आयोग ने जोधपुर महानगर के मथुरादास माथुर अस्पताल में बीते करीब 22 दिन से पड़े एक शव के मामले में प्रसंज्ञान लिया है. मानवाधिकार आयोग ने कहा कि मृत्यु के बाद भी मानव अधिकार विद्यमान रहते हैं. संविधान के अनुच्छेद- 21 के अनुसार, मानव गरिमा का अधिकार सिर्फ जिंदा मानव को ही नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद उसके शरीर को भी प्राप्त है.

बता दें कि जोधपुर महानगर के मथुरादास माथुर अस्पताल में करीब 22 दिन से एक ऐसा शव पड़ा है, जिसका दाह संस्कार अभी तक नहीं किया गया है. यह सूचना मनोरोगियों के लिए कार्य करने वाली मन: संस्था के सचिव योगेश दाधीच ने दी है.

क्या कहना है मानवाधिकार आयोग का?

राज्य मानवाधिकार आयोग का स्पष्ट मत रहा है कि मृत्यु के बाद भी मानव अधिकार विद्यमान रहते हैं. यह मानव अधिकार मानव स्वयं उपयोग में नहीं ले सकता है और इसी कारण से यह एक पारिवारिक दायित्व के रूप अति प्राचीन काल (Time Immemorial) से लगभग विश्व के सभी क्षेत्रों में स्वीकार किया हुआ है. मृतक के परिवार की ओर से अंतिम क्रिया नहीं करने पर यह क्रिया मृतक के सगे संबंधी, रिश्तेदार, मोहल्ले और क्षेत्रवासी ही नहीं, बल्कि मृतक से पूरी तरह से असम्बद्ध व्यक्ति/संस्थाएं भी कर सकती हैं. इनके दाह संस्कार के लिए कोई जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करता है, उसका दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है, जिस प्रकार से भ्रूण स्वयं की रक्षा नहीं कर सकता है, उसकी रक्षा करने का दायित्व माता-पिता का होता है. भ्रूण हत्या, जिसने पृथ्वी पर जन्म ही नहीं लिया है, उसकी हत्या भी जघन्य अपराध है. उसी प्रकार मृत देह का अधिकार है कि अन्य व्यक्ति उसकी देह का अंतिम संस्कार करे. मृत शरीर सैंकड़ों और हजारों साल की रूढ़ि (Custom) के अनुसार एक निश्चित समय सीमा में अन्तिम संस्कार प्राप्त करने का अधिकारी है.

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और क्या कहना है?

  • 22 दिन तक किसी मनुष्य के लावारिस शव का दाह संस्कार नहीं करना, प्रथम दृष्ट्या प्रकृति के सिद्धांतों के विपरीत कृत्य ही नहीं है, अपितु मृतक के मानव अधिकारों का घोर उल्लघन होने के साथ ही मानव गरिमा के भी विपरीत है.
  • चूंकि: यह अत्यन्त आवश्यक प्रकृति का प्रकरण है. राज्य के अधीन संचालित अस्पताल की अभिरक्षा में होने के बावजूद एक मानव शरीर का लम्बे समय से दाह संस्कार नहीं किया जा रहा है. अतः इस मामले पर राज्य आयोग स्वतः प्रसंज्ञान लेता है.
  • इस आदेश की प्रतिलिपि जिला कलेक्टर, जोधपुर महानगर, जोधपुर, प्राचार्य डॉ. सम्पूर्णानन्द चिकित्सा महाविद्यालय, जोधपुर और अधीक्षक, मथुरादास माथुर अस्पताल, जोधपुर को जरिए फैक्स/ईमेल/व्हाट्सएप अविलम्ब भेज कर निर्देशित किया गया कि तत्काल कार्रवाई कर नियमानुसार मृतक की देह का दाह संस्कार कर राज्य आयोग को अवगत करवाया जाए.
  • जिला कलेक्टर, जोधपुर महानगर- जोधपुर, प्राचार्य डॉ. सम्पूर्णानन्द चिकित्सा महाविद्यालय- जोधपुर और अधीक्षक, मथुरादास माथुर अस्पताल- जोधपुर राज्य आयोग द्वारा 4 मार्च को जोधपुर महानगर में प्रस्तावित कैम्प कोर्ट में व्यक्तिगत उपस्थित होकर प्रकरण के संबंध में विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत कर, 22 दिन तक मृत देह को बिना दाह संस्कार रखने के कारणों से राज्य आयोग को अवगत कराएं. पत्रावली 4 मार्च को जोधपुर महानगर में प्रस्तावित राज्य आयोग के कैंप कोर्ट में प्रस्तुत की जाए.
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