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स्पेशल स्टोरी : इन 'छोटू' के लिए कब आएगा बाल दिवस

आज देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की याद में उनकी जयंती को बाल दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन आज भी छोटू के लिए बाल दिवस नहीं आया. आखिर ये छोटू कौन है, क्यों आज के दिन उसे याद किया जा रहा है. क्या वो कोई खास शख्सियत है. या हम में से कोई एक. देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

special story on children's day, बाल दिवस स्पेशल
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Published : Nov 14, 2019, 10:57 PM IST

जयपुर. ए छोटू ओ छोटू...आखिर ये छोटू कौन है. जिसे इस तरह पुकारा जा रहा है. ओह तो ये छोटू वो है, जो अपने पेट की आग बुझाने के लिए आज रेस्टोरेंट, ढाबा और चाय की थड़ी पर काम करते दिख जाता है.

ए छोटू ओ छोटू... आखिर ये छोटू कौन है...कब आएगा इनका बाल दिवस

ये छोटू वो है, जिसके कंधों पर कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का भार आ जाता हैं. ये छोटू वो है, जो दूसरे बच्चों की तरह स्कूल में बाल दिवस नहीं, बल्कि दो वक्त की रोटी के लिए अपने नाम को भी भूल जाता है. इनका नाम जो भी हो जहां ये काम कर रहा होता है, वहां इसे छोटू कह कर ही पुकारा जाता है.

पढ़ेंः स्पेशल स्टोरीः 'सुनीता यादव और गोपाल सिंह' जयपुर के इस पाठशाला के बच्चों के सपनों में लगा रहे पंख

आज देशभर के स्कूलों में बाल दिवस के कार्यक्रम हुए. कहीं पर ढोल तो कहीं नगाड़ों से चाचा नेहरू को याद किया गया. लेकिन किसी को इन बच्चों की याद नहीं आई. जो पेट के लिए बाल दिवस भी नहीं मना पाते. हां, आज के दिन कार्यक्रमों के मंच से बाल श्रम खत्म करने, आखिरी बच्चे तक शिक्षा पहुंचने जैसे कई दावे किए जाते हैं. लेकिन इन दावों की हकीकत बयां करता है ये नाम, छोटू.

पढ़ेंः स्पेशल स्टोरी: मासूम चेहरों पर खिलौनों से खिलखिलाहट, 'संदीप और स्वाति' ने गरीब बच्चों की मुस्कुराहट को बना लिया Mission

हम किसी गांव या कस्बे की बात नहीं कर रहे राजधानी में ही इन छोटू को देखा जा सकता है. जो किसी के लिए चाय तो किसी के लिए खाना सर्व कर रहे होते हैं. लेकिन जिम्मेदार इन छोटू को पूरी तरह बिसराए हुए हैं. इनके लिए योजना जरूर आती है, लेकिन वो सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाती हैं. और इनके बंट में आता है सिर्फ एक नाम, छोटू.

पढ़ेंः स्पेशल स्टोरीः 'सुनीता यादव और गोपाल सिंह' जयपुर के इस पाठशाला के बच्चों के सपनों में लगा रहे पंख

चाचा नेहरू के नाम से जाने जाने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू बच्चों को देश के भविष्य की तरह देखते थे. लेकिन देश का भविष्य तो तब संवरेगा जब किसी भी रेस्टोरेंट, ढाबा, दुकान या चाय की थड़ी पर ये छोटू नजर नहीं आएगा. ये छोटू मिले तो सिर्फ किसी विद्यालय में जहां उसे अपना और देश का नाम रोशन करने का पूरा मौका मिले.

जयपुर. ए छोटू ओ छोटू...आखिर ये छोटू कौन है. जिसे इस तरह पुकारा जा रहा है. ओह तो ये छोटू वो है, जो अपने पेट की आग बुझाने के लिए आज रेस्टोरेंट, ढाबा और चाय की थड़ी पर काम करते दिख जाता है.

ए छोटू ओ छोटू... आखिर ये छोटू कौन है...कब आएगा इनका बाल दिवस

ये छोटू वो है, जिसके कंधों पर कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का भार आ जाता हैं. ये छोटू वो है, जो दूसरे बच्चों की तरह स्कूल में बाल दिवस नहीं, बल्कि दो वक्त की रोटी के लिए अपने नाम को भी भूल जाता है. इनका नाम जो भी हो जहां ये काम कर रहा होता है, वहां इसे छोटू कह कर ही पुकारा जाता है.

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आज देशभर के स्कूलों में बाल दिवस के कार्यक्रम हुए. कहीं पर ढोल तो कहीं नगाड़ों से चाचा नेहरू को याद किया गया. लेकिन किसी को इन बच्चों की याद नहीं आई. जो पेट के लिए बाल दिवस भी नहीं मना पाते. हां, आज के दिन कार्यक्रमों के मंच से बाल श्रम खत्म करने, आखिरी बच्चे तक शिक्षा पहुंचने जैसे कई दावे किए जाते हैं. लेकिन इन दावों की हकीकत बयां करता है ये नाम, छोटू.

पढ़ेंः स्पेशल स्टोरी: मासूम चेहरों पर खिलौनों से खिलखिलाहट, 'संदीप और स्वाति' ने गरीब बच्चों की मुस्कुराहट को बना लिया Mission

हम किसी गांव या कस्बे की बात नहीं कर रहे राजधानी में ही इन छोटू को देखा जा सकता है. जो किसी के लिए चाय तो किसी के लिए खाना सर्व कर रहे होते हैं. लेकिन जिम्मेदार इन छोटू को पूरी तरह बिसराए हुए हैं. इनके लिए योजना जरूर आती है, लेकिन वो सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाती हैं. और इनके बंट में आता है सिर्फ एक नाम, छोटू.

पढ़ेंः स्पेशल स्टोरीः 'सुनीता यादव और गोपाल सिंह' जयपुर के इस पाठशाला के बच्चों के सपनों में लगा रहे पंख

चाचा नेहरू के नाम से जाने जाने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू बच्चों को देश के भविष्य की तरह देखते थे. लेकिन देश का भविष्य तो तब संवरेगा जब किसी भी रेस्टोरेंट, ढाबा, दुकान या चाय की थड़ी पर ये छोटू नजर नहीं आएगा. ये छोटू मिले तो सिर्फ किसी विद्यालय में जहां उसे अपना और देश का नाम रोशन करने का पूरा मौका मिले.

Intro:जयपुर - आज देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की याद में उनकी जयंती को बाल दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन आज भी छोटू के लिए बाल दिवस नहीं आया। आखिर ये छोटू कौन है, क्यों आज के दिन उसे याद किया जा रहा है। क्या वो कोई खास शख्सियत है। या हम में से कोई एक। रिपोर्ट देखिए।


Body:ए छोटू ओ छोटू... आखिर ये छोटू कौन है। जिसे इस तरह पुकारा जा रहा है। ओह तो ये छोटू वो है, जो अपने पेट की आग बुझाने के लिए आज रेस्टोरेंट, ढाबा और चाय की थड़ी पर काम करते दिख जाता है। ये छोटू वो है, जिसके कंधों पर कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का भार आ जाता हैं। ये छोटू वो है, जो दूसरे बच्चों की तरह स्कूल में बाल दिवस नहीं, बल्कि दो वक्त की रोटी के लिए अपने नाम को भी भूल जाता है। इनका नाम जो भी हो जहां ये काम कर रहा होता है, वहां इसे छोटू कह कर ही पुकारा जाता है।

आज देशभर के स्कूलों में बाल दिवस के कार्यक्रम हुए। कहीं पर ढोल तो कहीं नगाड़ों से चाचा नेहरू को याद किया गया। लेकिन किसी को इन बच्चों की याद नहीं आई। जो पेट के लिए बाल दिवस भी नहीं मना पाते। हां, आज के दिन कार्यक्रमों के मंच से बाल श्रम खत्म करने, आखिरी बच्चे तक शिक्षा पहुंचने जैसे कई दावे किए जाते हैं। लेकिन इन दावों की हकीकत बयां करता है ये नाम, छोटू। हम किसी गांव या कस्बे की बात नहीं कर रहे राजधानी में ही इन छोटू को देखा जा सकता है। जो किसी के लिए चाय तो किसी के लिए खाना सर्व कर रहे होते हैं। लेकिन जिम्मेदार इन छोटू को पूरी तरह बिसराए हुए हैं। इनके लिए योजना जरूर आती है, लेकिन वो सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाती हैं। और इनके बंट में आता है सिर्फ एक नाम, छोटू।


Conclusion:चाचा नेहरू के नाम से जाने जाने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू बच्चों को देश के भविष्य की तरह देखते थे। लेकिन देश का भविष्य तो तब संवरेगा जब किसी भी रेस्टोरेंट, ढाबा, दुकान या चाय की थड़ी पर ये छोटू नजर नहीं आएगा। ये छोटू मिले तो सिर्फ किसी विद्यालय में जहां उसे अपना और देश का नाम रोशन करने का पूरा मौका मिले।
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