जयपुर. जेडीए को लगातार बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने और शहर में आवश्यक विस्तार के लिए जिम्मेदार बनाया गया है. ताकि प्रभावी निगरानी और विनियमन के साथ स्थाई और व्यवस्थित विकास सुनिश्चित हो सके. जब भी कोई नई योजना, सड़क विस्तार या फ्लाईओवर निर्माण किया जाता है तो जेडीए के सामने भूमि अधिग्रहण करने की सबसे बड़ी चुनौती होती है. इस चुनौती से कैसे पार पाया जाता है. इस बारे में ईटीवी भारत ने बात की जेडीसी गौरव गोयल से...
अमूमन शहर के किसी प्रोजेक्ट या विकास कार्य के बीच कुछ स्ट्रक्चर या काश्तकार/खातेदार की जमीन आती है. जिन्हें संतुष्ट करने के लिए मुआवजे के तौर पर पैसा या आवासीय/व्यवसायिक जमीन दी जाती है. राजधानी में ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं जो जेडीए और काश्तकार के बीच रजामंदी नहीं होने के चलते अटके पड़े हैं. अब इन प्रोजेक्ट्स को जेडीए की धारा 44 के तहत सुलझाया जा रहा है.
शहर की सीकर रोड स्थित लोहामंडी योजना, अजमेर रोड स्थित वेस्टवे हाइट्स योजना जैसे जेडीए के कई प्रोजेक्ट भूमि अधिग्रहण करने के दौरान काश्तकार और जेडीए के बीच उलझ गए. इन प्रोजेक्ट को अब अदालत के बाहर है जेडीए एक्ट की धारा 44 के तहत काश्तकार खातेदार की रूचि को प्राथमिकता देते हुए सुलझाने की कोशिश की जा रही है.
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ईटीवी भारत से खास बातचीत में जेडीसी गौरव गोयल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर सेक्शन 44 के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ट्रैफिक इंप्रूवमेंट के प्रोजेक्ट एलिवेटेड रोड, अंडरपास बनाने में कम से कम लैंड एक्विजिशन हो, कम से कम समस्याएं आए, इसके लिए स्लीक और स्टील स्ट्रक्चर प्लान किए जाते हैं.
जहां लोगों की आवाजाही ज्यादा रहती है वहां सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने, नई सड़कें निकालने, फ्लाईओवर बनाने की आवश्यक होता है. उसके लिए अनिवार्य अधिग्रहण कानून है. जेडीए एक्ट की धारा 44 के तहत आपसी सहमति से भूमि क्रय करने के प्रावधान हैं. इसमें काश्तकारों की जितनी जमीन अधिग्रहण करनी है, उनकी जमीन कितनी चौड़ी सड़क पर स्थित है, जमीन की प्रकृति क्या है (आवासीय, व्यावसायिक और कृषि) उसके अनुसार वर्तमान मार्केट रेट से मूल्यांकन कर राशि के अलावा विकसित जमीन का भी प्रस्ताव दिया जाता है.
सरकार की जो पॉलिसी के तहत विभिन्न विकल्प
सामान्य रूप से यदि कृषि भूमि अधिग्रहण की जाती है, तो उसके मुआवजे के रूप में 25% विकसित भूमि, जिसमें 20% आवासीय और 5% व्यवसायिक जमीन का प्रावधान है. यदि रिंग रोड पर जमीन अधिग्रहण की गई है तो स्पेशल प्रोजेक्ट होने के चलते 25% मिश्रित जमीन काश्तकारों/खातेदारों को देने का प्रावधान है. यदि किसी सेक्टर रोड पर जमीन अधिग्रहण की जाती है और वहां सेक्टर कमर्शियल का प्रोविजन है, तो वहां 25% सेक्टर कमर्शियल का प्रावधान है. यदि किसी योजना में उचित आवासीय भूमि उपलब्ध नहीं है तो 20+5 की बजाय 15% व्यवसायिक जमीन भी दी जा सकती है. यदि व्यावसायिक जमीन उपलब्ध नहीं हो तो 20+5 के जगह 30% आवासीय जमीन भी दी जा सकती हैं
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स्ट्रक्चर मुआवजे का प्रावधान
जेडीसी गौरव गोयल ने बताया कि भूमि का स्वामित्व जिस व्यक्ति या संस्था के नाम पर है. उन्हें तो जमीन का मुआवजा दिया जाता है. यदि कोई स्ट्रक्चर है, तो उसका वर्तमान बीएसआर रेट पर मूल्यांकन कर स्ट्रक्चर का भी मुआवजा दिया जाता है.
कई बार ऐसे प्रकरण भी आते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग मकान बनाकर रहते हैं. तो उनको पुनर्वास नीति के तहत अफोर्डेबल हाउसिंग का मकान उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है. उन्हें पुनर्वासित करने के बाद ही जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई की जाती है.
झोटवाड़ा एलिवेटेड रोड प्रकरण :
झोटवाड़ा एलिवेटेड रोड की बात की जाए तो उसमें कालवाड रोड की तरफ करीब 600 दुकानें हैं. जो इस निर्माण से प्रभावित हो रही हैं. जिन का पुनर्वास किया जाना है. उसके लिए जेडीए ने झोटवाड़ा औद्योगिक क्षेत्र के पास निवारू रोड पर जमीन देखी है. उस पर प्लानिंग की जा चुकी है.
अधिकतर दुकानदार उसके लिए सहमत भी हैं. जेडीसी ने बताया कि चूंकि ये जमीन जिला प्रशासन के कार्यालयों के लिए आरक्षित थी. ऐसे में जमीन जेडीए के नाम करने के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है.
जल्द ही उस जमीन को जेडीए में आवंटित करा कर दुकानदारों के पुनर्वास की जो योजना बनाई गई है. उसके अनुरूप प्रभावित दुकानों की लॉटरी निकलवाई जाएगी.
नींदड़ आवासीय योजना प्रकरण :
बहुचर्चित नींदड़ आवासीय योजना में दो समितियां बनी हुई हैं. एक संघर्ष समिति है, एक आरक्षण पत्रधारी किसानों की समिति है. जेडीए ने दोनों से वार्ता की है. चूंकि भूमि अधिग्रहण कानून का मूल भाव है कि अधिकतम लोगों के हित में यदि भूमि अधिग्रहण की जानी है. तो जिस खातेदार/काश्तकार की जमीन अधिग्रहण की जा रही है उसे उस जमीन का पर्याप्त मुआवजा मिले.
यदि उसकी रोजी-रोटी प्रभावित हो रही है, तो उसे पुनर्वासित भी किया जाए. इसे लेकर नींदड़ के किसानों की कुछ मांगे हैं. उनकी मांगों का प्रस्ताव बनाकर नीतिगत निर्णय के लिए राज्य सरकार को भेजा है.
जेडीसी गौरव गोयल ने जेडीए एक्ट सेक्शन 44 को प्रोग्रेसिव लॉ बताते हुए कहा कि वर्तमान नीति के तहत काश्तकारी या जमीन मालिक की रुचि को प्राथमिकता दी जाती है. इसी मंशा के साथ हाल ही में लोहा मंडी और वेस्टवे हाइट में जमीन अधिग्रहण से जुड़े विवादों का समाधान करने के लिए एंपावर्ड कमेटी की बैठक में नीतिगत निर्णय लिए गए हैं.
कई अन्य प्रकरण जो लंबे समय से विवादित हैं. उन्हें भी यूडीएच मंत्री के निर्देश पर समाधान की ओर ले जाया जा रहा है.