जयपुर. वैश्विक महामारी ने इस साल सभी त्योहारों का मजा खराब कर दिया है. नवरात्रि पर होने वाले खास बंगाली समाज के दुर्गा पूजा महोत्सव पर भी इस बार कोरोना का काला साया नजर आ रहा है. 70 साल में पहली बार ऐसा होगा जब शहरवासी बंगाली संस्कृति की झलक नहीं देख सकेंगे. शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र पर धारा 144 के चलते कोलकाता की तर्ज पर सजने वाले मां दुर्गा के भव्य पंडाल भी नहीं सजेंगे.
नवरात्र का पर्व सभी के लिए उत्साह और उमंग लेकर आता है लेकिन इस बार कोरोना ने इसमें खलल डालने का काम किया है. जयपुर में हर साल बंगाली समाज के लोग परंपरा के अनुसार नवरात्रि की षष्ठी पर दुर्गा माता की भव्य प्रतिमा स्थापित करते हैं. इस सिलसिले में कोलकाता से कारीगरों का पूरा परिवार आता है और यहां दुर्गा मां की मूर्तियों को मूर्तरूप देता है.
हांलाकि इस बार कोलकाता से कलाकार आएं है लेकिन इनकी संख्या काफी कम हैं. जयपुर शहर में धारा 144 लग जाने से वह काफी मायूस हैं. जहां हर वर्ष बालू मिट्टी से वह मां दुर्गा की विशालकाय मूर्तियों को मूर्तरूप देते थे, इस बार उन्हें मूर्ति बनाने के आर्डर ही नहीं मिल रहे हैं. जबकि हर वर्ष 20 कलाकारों की एक टीम कोलकाता से जयपुर मूर्तियां बनाने आती है लेकिन इस बार सिर्फ 2 कलाकार आए हैं.
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पहले जहां वे 10 से ज्यादा बड़ी और भव्य मूर्तियों बनाने के साथ सैंकड़ों छोटी मूर्तियां तैयार करते थे. वहीं अब सिर्फ शहर में दुर्गाबाड़ी एसोसिएशन की ओर से मां दुर्गा की प्रतिमाएं तैयार की गई हैं और इसपार मूर्ति का आकार भी काफी कम कर दिया गया है. यहां हर साल 15-20 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित की जाती थी लेकिन इस बार सिर्फ 10 फीट की ही मूर्ति का निर्माण कराया गया है.
दुर्गा पूजा पर फीका हुआ उत्साह
• हर साल शहर में 12 स्थानों पर सजते हैं बंगाली संस्कृति पर आधारित भव्य पूजा मंडप
• गली-मोहल्लों और कॉलोनियों में 5,000 से अधिक पंडाल सजाकर की जाती है नवदुर्गा की पूजा
• भव्य मंडप और झांकियों पर होता है 25-30 करोड़ खर्च
• 20-25 फीट लंबी और ऊंची मूर्तियां की जाती हैं स्थापित
• इस बार सिर्फ दुर्गाबाड़ी में 10 फीट की ही मूर्ति की गईं तैयार
• 5 लाख से लेकर 50 लाख तक के सजते हैं पंडाल
• 3 माह पहले ही कोलकाता से आ जाते हैं मूर्तिकार
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दरअसल जयपुर शहर में हर वर्ष 8 संस्थाओं के लिए मूर्तियां 3 माह पहले से ही बनना शुरू हो जाती हैं लेकिन इस बार सिर्फ एकमात्र दुर्गाबाड़ी बनीपार्क के लिए ही मूर्ति बनाई जा रही है. उसका आकार भी पहले से बहुत छोटा कर दिया गया है. यहां सिर्फ 5 दिन के सभी आयोजन होंगे लेकिन दर्शनार्थियों के लिए मंडप का गेट बिल्कुल बंद रहेगा. सिर्फ पंडित ही पूजा करेंगे. एसोसिएशन के सदस्यों तक को मंडप में जाने की इजाजत नहीं होगी. हालांकि भक्तों की आस्था को ध्यान में रखते हुए सोशल मीडिया के जरिए दुर्गा पूजा के दर्शन करवाए जाएंगे लेकिन पंडाल और झांकियां नहीं सजेंगी.
गुलाबी नगरी में हर रोज बढ़ते कोरोना के मरीज और 31 अक्टूबर तक लागू धारा 144 के बीच नवरात्रि को लेकर सरकारी गाइडलाइन का स्पष्ट खुलासा अब तक न होने से आयोजक इस बार आयोजन को लेकर संशय में हैं. 17 अक्टूबर से नवरात्रि शुरू होगी लेकिन अभी तक पंडाल सजने शुरू भी नहीं हुए हैं. ऐसे में इस बार दुर्गा पूजा पर न तो सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और न ही मां को भक्त अंजलि भेंट कर सकेंगे. और तो और इस बार बंगाली महिलाओं का पारंपरिक सिंदूर खेलने का आयोजन भी देखने को नहीं मिलेगा.