जयपुर. प्रदेश सरकार के निकाय चुनाव को लेकर हाईब्रिड सिस्टम के फैसले को राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने गलत करार दिया है. इससे अब ये बिल्कूल साफ हो चुका है कि जो बाते चल रही हैं वो केवल बातें नहीं है. उनमें सच्चाई भी है. हर कोई जानता है कि प्रदेश में किस तरह से पायलट और गहलोत के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान हुई थी. लेकिन आखिर में अशोक गहलोत ही प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस की कमान भी सौंपी गई.
राजस्थान में सरकार बने 9 महीने से अधिक समय हो चुका है. लेकिन इस दौरान कई ऐसे वाकये सामने आए हैं जहां पायलट और गहलोत के बीच जारी ये शीत युद्ध सामने आया है. दोनों ही नेताओं के बीच कई बार सियासी टकराव देखने को मिला है. जिस तरह से कांग्रेस में इन दोनो नेताओं के बीच राजनितीक शह और मात का शीत युद्ध चल रहा है उससे लगता है कि आने वाले समय में भी भाजपा को और मौके मिल सकती हैं, जब वो इसका फायदा उठा सके.
इस सियासी टकराव की पहली स्थिति तब सामने आई जब पायलट के प्रदेश के लॉ एण्ड आर्डर व्यवस्था पर सवाल उठाए. इसके बाद चाहे बीएसपी विधायकों का पार्टी में शामिल होना हो चाहे, सीएम पुत्र की राजस्थान क्रिकेट में ताजपोशी हो. कई मोर्चों पर पायलट ने इशारों में विरोध जताया.
अब हाईब्रिड तरीके से नगर निकाय चुनाव करवाने को सचिन पायलट ने लोकतंत्र को कमजोर करने की बात कही है. लेकिन इस बार पायलट ने ये विरोधाभास तब जाहिर किए जब दोनों ही नेता एक ही मौके पर थे. पायलट ने खुलेआम ये कहा कि संगठन और कैबिनेट के सदस्यों को इस बारे में बिल्कूल जानकारी नहीं थी कि सरकार इस तरह का फैसला लेने जा रही हैं. चलिए आपको बतातें है कि कब-कब दोनों दिग्गज नेताओं में टकराव सामने आया.
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1. जब पायलट ने उठाये प्रदेश की लॉ एण्ड आर्डर पर सवाल
11 सितम्बर को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने ये कहकर सबकों चौका दिया कि प्रदेश में लॉ एण्ड ऑर्डर की स्थिती पर ध्यान देना चाहिए पायलट ने कहा कि बीते दिनों से धोलपुर, बहरोड़ और अलवर मे जो घटनांए हुई उससे प्रदेश का लॉ एण्ड ऑर्डर प्रदेश का बिगड़ा है. इसपर सरकार को ध्यान देना चाहिए.
2.बसपा के विधायकों का कांग्रेस में शामिल होना
16 सितम्बर को रात को जब अचानक 6 बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हुए तो इसकी जानकारी खुद प्रदेश सगंठन के मुखिया पायलट को भी नहीं थी. और पायलट ने खुद ये बयान दिया था कि उनसे इस बारे में न कोई सलाह ली गई और ना ही उन्हें बताया गया. इसके बाद पायलट ने भी अपने तेवर दिखाए और ये संदेश दिया कि जो भी नेता कांग्रेस में आए हैं उन्हें पार्टी में कोई भी पद नहीं दिया जाएगा. पायलट ने नाराजगी के सवाल पर ये भी कहा था कि मेरे मन में क्या चल रहा है, उसे मत देखिये.
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3. अटकी राजनितीक नियुक्तियां
उपुचनाव और निकाय चुनावों के देखते हुए कहा जा रहा था कि राजस्थान में किसी भी समय राजनितीक नियुक्तियां की जा सकती हैं. इसके लिए मुख्यमंत्री ने लिस्ट भी तैयार कर ली है. लेकिन इस बात पर पायलट ने कह दिया कि राजनितीक नियुक्तियां उन्ही कार्यकर्ताओं को दी जाएंगी, जिन्होने पांच साल तक पार्टी की सेवा में खून-पसीना बहाया है. पायलट का ये इशारा भी गहलोत की ओर ही था. उनके इस बयान के मीडिया में आने के बाद से ही अभी तक एक भी सियासी नियुक्ति संगठन में नहीं हो पाई है.
4. जब गहलोत बोले-मुझे बोलने के लिए 10 मिनट दिये....
1 अक्टूबर को प्रदेश कांग्रेस की ओर से बिरला आडिटोरियम में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन आयोजित हुआ. इस दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने भाषण में कहा कि मुझ बोलने के लिए लिए केवल 10 मिनट दिये गये हैं. तो जब पायलट ने माइक थामा तो जवाब में मंच से कहा कि जब तक मैं कांग्रेस का अध्यक्ष हुं तब तक आपकों बोलने से कोई नही रोकेगा. इस दौरान पायलट ने मुख्यमंत्री पर कई तंज भी कसे थे.
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5. वैभव गहलोत और रामेश्वर डूडी के आरसीए रण पर पायलट का तंज
4 अक्टूबर को महात्मा गांधी के 150 वीं जयंती को लेकर हुए कार्यक्रम में पायलट ने आरसीए विवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलोत और रामेश्वर डूडी दोनो ही कांग्रेस के बड़े नेता हैं. आरसीए में मिल बैठकर सबको फैसला करना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ये दुर्भाग्यपूर्ण है. पायलट ने साफ तौर पर इसे उपचुनावों में जाटों के नाराज होने की चिंता जताई थी.
6. अब निकाय में हाइब्रिड चुनाव पर पायलट का जवाब
18 अक्टूबर यानि आज के दिन तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने सरकार के हाइब्रिड मेयर सभापति के चुनावों पर सीधा ही सवाल खड़ा कर दिया. पायलट ने कहा कि हाइब्रिड मेयर सभापति चुनने की केबिनेट मे चर्चा नहीं हुई है. हमने पहले सीधे अध्यक्ष चुनने की बात कही थी. लेकिन उसको बाद में बदल दिया गया, वहां तक तो ठीक था. लेकिन हाइब्रिड नाम दिया जा रहा है, मैं समझता हूं कि यह निर्णय सही नहीं है. पायलट ने गहलोत सरकार के इस निर्णय को अव्यवहारिक बताया है.
ये वो मामले हैं जो बीते एक माह में देखने को मिले. बीते एक माह में ये आधा दर्जन वाकये ये साफ कर रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी के मुखिया और सरकार के बीच में सब सही नहीं चल रहा. क्योकि अब संगठन के मुखिया और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सीधे सरकार के निर्णयों पर उंगली उठाना शुरू कर कर दी है और कहीं ना कहीं सरकार को असहज स्थिति में ला दिया है.