जयपुर. निराश्रितों को सहारा देने के लिए नगर निगम ने शहर में 14 आश्रय स्थल खोल रखे हैं. इनमें से कुछ जयपुर के निगमों तो कुछ टेंडर के जरिए एनजीओ की ओर से संचालित हो रहे हैं. निगम प्रशासन ने करोड़ों रुपए खर्च कर शहर में वृद्ध आश्रम, बाल आश्रम, आरोग्य के नाम से स्थाई आश्रय स्थल शुरू कर वाहवाही तो बटोरी लेकिन आज ये आश्रय स्थल महज रैन बसेरे के रूप में संचालित हो रहे हैं.
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन शुरू होने के बाद देशभर के शहरों में आश्रय स्थलों के संचालन का जिम्मा एनयूएलएम को सौंपा गया. इसी के तहत जयपुर में भी एनयूएलएल ने इन आश्रय स्थलों के संचालन का जिम्मा उठाया. निगम इन आश्रय स्थल या रैन बसेरे के संचालन का काम पंजीकृत एनजीओ के माध्यम से कराते आया है.
शहर के ग्रेटर और हेरिटेज में कुल 14 स्थाई रैन बसेरे संचालित हैं. अस्थाई रैन बसेरे सर्दी के मौसम में चलाए जाते हैं, जो अमूमन दिसंबर से फरवरी तक रहते हैं. फिलहाल स्थाई रैन बसेरों में कुछ एनजीओ तो कुछ निगम की ओर से संचालित किए जा रहे हैं. हर महीने इनके संचालन पर 35 हजार से 50 हजार रुपए का भुगतान किया जाता है. यहां ठहरने वालों को सोने के लिए बिस्तर, नजदीकी सुलभ शौचालय का उपयोग और दानदाताओं की तरफ से कई बार भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है. कुछ रैन बसेरों में महिला-पुरुषों के लिए अलग-अलग व्यवस्था की गई है.
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आश्रय स्थल | क्षमता | औसत संख्या |
एसएमएस अस्पताल | 70 | 25 |
राजा पार्क (वृद्धाश्रम) | 30 | 5 |
झालाना (आरोग्य) | 50 | 25 |
सांगानेर | 50 | 5 |
जगतपुरा | 30 | 10 |
भांकरोटा | 30 | 5 |
मानसरोवर | 50 | 18 |
रेलवे स्टेशन | 70 | 25 |
पानी पेज | 50 | 22 |
शास्त्री नगर | 40 | 5 |
हटवाड़ा (वृद्धाश्रम) | 40 | 15 |
लाल कोठी 40 | 40 | 20 |
गोविंद देव जी मंदिर | 40 | 10 |
रेलवे स्टेशन (बाल बसेरा) | 50 | 25 |
निगम की ओर से संचालित आश्रय स्थलों में कोई वृद्धाश्रम है, तो कोई आरोग्य आश्रय स्थल है. यही नहीं महिला और बाल बसेरा भी बनाया गया है. निगम के दावों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत शहर के कुछ आश्रय स्थल पहुंचा. एसएमएस अस्पताल स्थित गांधी घर रैन बसेरे पर मौजूद कर्मचारी ने बताया कि दिन-रात रैन बसेरा लोगों के लिए संचालित रहता है. यहां सामान रखने के लिए लॉकर, सोने के लिए बिस्तर और चारपाई की भी व्यवस्था है.
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ईटीवी भारत जब राजा पार्क स्थित वृद्धाश्रम और लाल कोठी स्थित आश्रय स्थल में पहुंचा. यहां नाम के अनुसार रैन बसेरे संचालित होते नहीं दिखे. वृद्ध आश्रम के ग्राउंड फ्लोर पर ताला जड़ा हुआ था और प्रथम तल रैन बसेरा संचालित था. लेकिन यहां बुजुर्गों के लिए कोई खास व्यवस्था देखने को नहीं मिली. वहीं लाल कोठी स्थित आश्रय स्थल में महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग हॉल की व्यवस्था की गई थी लेकिन अब महिलाओं के हॉल में इंदिरा रसोई संचालित हो रही है. इस पर ग्रेटर और हेरिटेज नगर निगम के आला अधिकारियों से भी जवाब देते नहीं बना.
नगर निगम प्रशासन शहर के बेसहारा लोगों को रैन बसेरे में जगह उपलब्ध कराने में कितना कामयाब साबित हुआ है, इसका अंदाजा आश्रय स्थलों की दशा देखकर लगाया जा सकता है. यही नहीं इन आश्रय स्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है. ऐसे में नगर निगम प्रशासन भले ही स्थाई रैन बसेरे बनाकर अपनी पीठ थपथपाता हो. लेकिन यहां नाम बड़े दर्शन छोटे जैसी स्थिति देखने को मिली.