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Bhuteshwar Mahadev temple: वीराने में बसे हैं बाबा भूतेश्वर नाथ, सावन में दर्शनार्थियों का लगता है तांता

बाबा औढरदानी की महिमा अपरम्पार है. भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं. भगवान भोले के भक्त भी निराले ही होते हैं अपने ईष्ट देवता के दर्शन लाभ लेने के लिए हर पड़ाव, हर व्यवधान को सुगमता से पार कर लेते हैं. जयपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर बसे हैं भूतेश्वर नाथ (Bhuteshwar Mahadev temple In Jaipur). यहां सावन में श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ जुटती है. क्या है महिमा इस बरसों पुराने मंदिर की! आइए जानते हैं.

Bhuteshwar Mahadev temple:
वीराने में बसे हैं बाबा भूतेश्वर नाथ
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Published : Jul 15, 2022, 7:55 AM IST

Updated : Jul 15, 2022, 10:07 AM IST

जयपुर. शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर नाहरगढ़ के घने जंगलों में विराजे हैं बाबा भूतेश्वर महादेव (Bhuteshwar Mahadev temple In Jaipur). बाबा के दर्शनार्थ भक्तों का जमावड़ा लगता है यहां. सावन मास में तो संख्या हजारों तक पहुंच जाती है. सैकड़ों बरस पहले बने इस मंदिर की महिमा अपरम्पार है. समयानुसार इसमें कुछ परिवर्तन भी हुए. मान्यता है कि वीराने में बसे महादेव जी के दर्शन से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. भक्तों को यहां पहुंचने में पापड़ भी कम नहीं बेलने पड़ते! चूंकि मंदिर नाहरगढ़ वन्य अभयारण्य क्षेत्र में आता है इस वजह से सीधे-सीधे भोलेनाथ तक पहुंच पाना आसान भी नहीं होता. वन विभाग की चौकी से होकर गुजरना पड़ता है (Shankar Puja in Sawan 2022).

यूं पड़ा भूतेश्वर नाम!: जयपुर के नाहरगढ़ जंगल में मौजूद भूतेश्वर नाथ महादेव आमेर की पहाड़ियों के ठीक पीछे स्थित हैं. इस ऐतिहासिक मंदिर को लेकर अलग-अलग दावे हैं. किंवदंती है कि किसी दौर में यहां पूरे वीराने के बीच में महादेव की मूर्ति स्थापित थी. भूत प्रेतों का बसेरा था. फिर सिद्ध संतों ने इस स्थान पर पूजा के जरिए उन आसुरी शक्ति को भगाया बाबा का आह्वान किया. भूत भागे और बाबा भूतेश्वर महादेव यहां पर बस गए. धीरे धीरे संतों ने आम लोगों को जुटाना शुरू किया. ख्याति बढ़ी तो लोग अपनी इच्छाओं संग इस मंदिर में आने लगे. सावन के महीने में हल्की बरसात के बाद मंदिर के चारों ओर की पहाड़ियां हरी भरी हो जाती हैं. नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क के दरवाजे से लेकर मंदिर तक करीब 8 किलोमीटर तक गहरे जंगल में सफर करना होता है. इस दौरान जंगली जानवरों से भी सामना होता है.

वीराने में बसे हैं बाबा भूतेश्वर नाथ

स्वयंभू बताया जाता है शिवलिंग: भूतेश्वर नाथ महादेव के मंदिर में विराजमान शिवलिंग को लेकर यह दावा किया जाता है कि यह विग्रह स्वयंभू है यानी इन्हें किसी ने बनवाया नहीं ,बल्कि यह स्वयं प्रकट हुए. आस्थावान मानते हैं कि सावन में यहां जलाभिषेक या रुद्राभिषेक करने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती है. बनावट देख कर स्पष्ट होता है कि मंदिर का मंडप और गुंबद 17वीं ही शताब्दी में तैयार किया गया है. वास्तुकला उस समय में बनी इमारतों से मिलती जुलती है. समय के साथ कुछ आधुनिक निर्माण भी यहां पर किए गए हैं. मंदिर की विशेषता यही है कि इससे गहरे और घने विशाल जंगल के बीच स्थापित किया गया है. पहाड़ों पर ट्रैकिंग के जरिए भी लोग यहां पर पहुंचते हैं.

पढ़ें-Sawan 2022 : जयपुर शहर के इतिहास से भी पुराना है ये शिव मंदिर, पूरे सावन गूंजेगा 'बोल बम ताड़क बम' का जयकारा

बरसों पुराना मंदिर: साल 1727 में राजा जयसिंह ने जयपुर की स्थापना की थी. इससे पहले कच्छावा वंश की राजधानी आमेर हुआ करती थी जिसे मीणा शासकों से हासिल किया गया था. मत्स्य भगवान के वंशज मीणा राजा दुल्हे राय का पहले राज था. मंदिर के महंत ओम प्रकाश पारीक के अनुसार इस मंदिर को मीणा राज से पहले का बताया जाता है. लेकिन कुशलगढ़ की स्थापना के बाद इस मंदिर का कायाकल्प किया गया और मीणा शासकों ने इस मंदिर के मंडप का निर्माण किया. इसके बाद चार संत यहां आकर रुके मंदिर को सिद्ध स्थान के रूप में स्थापित किया गया. इन संतों में से एक ने जीवित समाधि ली थी, अन्य तीन समय अनुसार देवलोक गमन कर गए. इन संतों की समाधि अभी मंदिर परिसर के अंदर ही बनाई गई है. मंदिर परिसर में एक धूणा (तपस्या का स्थान) भी है, जहां यह लोग तपस्या किया करते थे.आम लोगों को धूणे तक जाने की इजाजत नहीं होती है.

क्या कहते हैं इतिहासकार?: भूतेश्वर महादेव मंदिर को लेकर इतिहासकार देवेंद्र भगत बताते हैं कि ये मंदिर 400 से 500 साल पुराना है. जयपुर के विद्धान भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने जयपुर वैभवम् में इसका जिक्र किया है. लिखा है कि मंदिर छठ की परिक्रमा का एक पड़ाव रहा है. आमेर के प्राचीन अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के बाद भूतेश्वर मंदिर को लेकर क्षेत्र में आस्था है. जयपुर के राज परिवार की भी इस मंदिर में गहरी आस्था रही है. जब मिर्जा राजा जय सिंह दक्षिण में विजय के लिए जा रहे थे, तब उन्होंने भूतेश्वर मंदिर में ही मन्नत मांगी थी, जिसके बाद उन्हें विजय हासिल हुई.

जयपुर. शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर नाहरगढ़ के घने जंगलों में विराजे हैं बाबा भूतेश्वर महादेव (Bhuteshwar Mahadev temple In Jaipur). बाबा के दर्शनार्थ भक्तों का जमावड़ा लगता है यहां. सावन मास में तो संख्या हजारों तक पहुंच जाती है. सैकड़ों बरस पहले बने इस मंदिर की महिमा अपरम्पार है. समयानुसार इसमें कुछ परिवर्तन भी हुए. मान्यता है कि वीराने में बसे महादेव जी के दर्शन से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. भक्तों को यहां पहुंचने में पापड़ भी कम नहीं बेलने पड़ते! चूंकि मंदिर नाहरगढ़ वन्य अभयारण्य क्षेत्र में आता है इस वजह से सीधे-सीधे भोलेनाथ तक पहुंच पाना आसान भी नहीं होता. वन विभाग की चौकी से होकर गुजरना पड़ता है (Shankar Puja in Sawan 2022).

यूं पड़ा भूतेश्वर नाम!: जयपुर के नाहरगढ़ जंगल में मौजूद भूतेश्वर नाथ महादेव आमेर की पहाड़ियों के ठीक पीछे स्थित हैं. इस ऐतिहासिक मंदिर को लेकर अलग-अलग दावे हैं. किंवदंती है कि किसी दौर में यहां पूरे वीराने के बीच में महादेव की मूर्ति स्थापित थी. भूत प्रेतों का बसेरा था. फिर सिद्ध संतों ने इस स्थान पर पूजा के जरिए उन आसुरी शक्ति को भगाया बाबा का आह्वान किया. भूत भागे और बाबा भूतेश्वर महादेव यहां पर बस गए. धीरे धीरे संतों ने आम लोगों को जुटाना शुरू किया. ख्याति बढ़ी तो लोग अपनी इच्छाओं संग इस मंदिर में आने लगे. सावन के महीने में हल्की बरसात के बाद मंदिर के चारों ओर की पहाड़ियां हरी भरी हो जाती हैं. नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क के दरवाजे से लेकर मंदिर तक करीब 8 किलोमीटर तक गहरे जंगल में सफर करना होता है. इस दौरान जंगली जानवरों से भी सामना होता है.

वीराने में बसे हैं बाबा भूतेश्वर नाथ

स्वयंभू बताया जाता है शिवलिंग: भूतेश्वर नाथ महादेव के मंदिर में विराजमान शिवलिंग को लेकर यह दावा किया जाता है कि यह विग्रह स्वयंभू है यानी इन्हें किसी ने बनवाया नहीं ,बल्कि यह स्वयं प्रकट हुए. आस्थावान मानते हैं कि सावन में यहां जलाभिषेक या रुद्राभिषेक करने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती है. बनावट देख कर स्पष्ट होता है कि मंदिर का मंडप और गुंबद 17वीं ही शताब्दी में तैयार किया गया है. वास्तुकला उस समय में बनी इमारतों से मिलती जुलती है. समय के साथ कुछ आधुनिक निर्माण भी यहां पर किए गए हैं. मंदिर की विशेषता यही है कि इससे गहरे और घने विशाल जंगल के बीच स्थापित किया गया है. पहाड़ों पर ट्रैकिंग के जरिए भी लोग यहां पर पहुंचते हैं.

पढ़ें-Sawan 2022 : जयपुर शहर के इतिहास से भी पुराना है ये शिव मंदिर, पूरे सावन गूंजेगा 'बोल बम ताड़क बम' का जयकारा

बरसों पुराना मंदिर: साल 1727 में राजा जयसिंह ने जयपुर की स्थापना की थी. इससे पहले कच्छावा वंश की राजधानी आमेर हुआ करती थी जिसे मीणा शासकों से हासिल किया गया था. मत्स्य भगवान के वंशज मीणा राजा दुल्हे राय का पहले राज था. मंदिर के महंत ओम प्रकाश पारीक के अनुसार इस मंदिर को मीणा राज से पहले का बताया जाता है. लेकिन कुशलगढ़ की स्थापना के बाद इस मंदिर का कायाकल्प किया गया और मीणा शासकों ने इस मंदिर के मंडप का निर्माण किया. इसके बाद चार संत यहां आकर रुके मंदिर को सिद्ध स्थान के रूप में स्थापित किया गया. इन संतों में से एक ने जीवित समाधि ली थी, अन्य तीन समय अनुसार देवलोक गमन कर गए. इन संतों की समाधि अभी मंदिर परिसर के अंदर ही बनाई गई है. मंदिर परिसर में एक धूणा (तपस्या का स्थान) भी है, जहां यह लोग तपस्या किया करते थे.आम लोगों को धूणे तक जाने की इजाजत नहीं होती है.

क्या कहते हैं इतिहासकार?: भूतेश्वर महादेव मंदिर को लेकर इतिहासकार देवेंद्र भगत बताते हैं कि ये मंदिर 400 से 500 साल पुराना है. जयपुर के विद्धान भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने जयपुर वैभवम् में इसका जिक्र किया है. लिखा है कि मंदिर छठ की परिक्रमा का एक पड़ाव रहा है. आमेर के प्राचीन अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के बाद भूतेश्वर मंदिर को लेकर क्षेत्र में आस्था है. जयपुर के राज परिवार की भी इस मंदिर में गहरी आस्था रही है. जब मिर्जा राजा जय सिंह दक्षिण में विजय के लिए जा रहे थे, तब उन्होंने भूतेश्वर मंदिर में ही मन्नत मांगी थी, जिसके बाद उन्हें विजय हासिल हुई.

Last Updated : Jul 15, 2022, 10:07 AM IST
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